Thursday, 15 September 2016

परिक्रमा नजीक अर्श की

परिक्रमा नजीक अर्श की 

बेवरा अगली भोम का, मेहेराब और झरोखे ।
खूबी क्यों कहूं दिवाल की, सोभा लेत इत ए ।। १ ।।

साथ जी ,पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के आवेश से अवतरित यह वाणी दिव्य भूमि परमधाम की पहचान कराती हैं ,उन दिव्य भूमि में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी ब्रह्म प्रियाओं के साथ कैसे लीला करते हैं उनका दिव्य वर्णन तारतम वाणी में ब्रह्म सृष्टियों के वास्ते बार बार हुआ हैं ।

परिक्रमा ग्रन्थ के प्रकरण ३४ वें  "परिक्रमा नजीक अर्श की " के बेशक इलम से ब्रह्मसृष्टियों को आह्वान कर रहे हैं कि हे मेरे धाम कि ब्रह्म प्रियाओं ,यह दिव्य भूमि ,परमधाम आपका निजघर हैं ।परमधाम क्र ठीक मध्य भोम भर ऊंचे चबूतरे पर श्री रंगमहल स्थित हैं ।इसी रंगमहल में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी अंगनाओं (ब्रह्म सृष्टियों )के संग निवास करते हैं ।अक्षरातीत के मोहोल ,इन रंगमहल में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी ब्रह्म प्रियाओं के साथ कैसे प्रेममयी लीलाएं करते हैं इनकी सुध अक्षर को भी आज दिन तक नहीं थी ।यह हमारा धन भाग्य हैं कि हमारी उनसे अखंड निस्बत हैं जो यह सुख हमें सहेजे मिल रहा हैं ।

तो परमधाम की सखियों ,अपनी निज नजर को परमधाम की और मोड़े और बेशक इलम के प्रकाश में श्री रंगमहल की परिक्रमा करे
श्री रंगमहल की शोभा को देखिए --रंगमहल को घेर कर ६००० नूरी मंदिर आएं हैं जिनकी बाहिरी दीवार की शोभा अति मनोहारी हैं ।मंदिरों की बाहिरी दीवार पर मनोरम शोभा से युक्त मेहराबी द्वार और झरोखे की शोभा आयीं हैं ।अनंतानंत शोभा से युक्त इन नूरमयी दीवार की शोभा को परमधाम की ब्रह्म सृष्टियाँ चितवन ,ध्यान के माध्यम से ही महसूस करती हैं ।

गृदवाए मेहेराब झरोखे, फेर देखिए तरफ चार ।
इन मुख खूबी तो कहूं, जो होवे कहूं सुमार ।। २।।


श्री रंगमहल की बाहिरी दीवार पर आयें नूरमयी मेहराब ,झरोखे अत्यंत ही मनोहारी अद्भुत नक्काशी से जड़े हैं ।जवराहातो की रंगबिरंगी ज्योति ,उनसे निकलने वाली नूरी तरंगे, रंगमहल की चारों और की अलौकिक हैं ।श्री महामति जी कहते हैं की श्री रंगमहल की इन खूबी का वर्णन तो तब करूँ जब उसकी कोई उपमा हो ।दिव्य परमधाम के दिव्य ध्यान से ही शोभा महसूस की जा सकती हैं ।

दोऊ तरफ बडे द्वार के, ए जो हांसें कही पचास ।
सामी चौक चांदनी, क्यों कहूं खूबी खास ।। ६।। 


श्री रंगमहल की पूर्व दिशा में मुख्य द्वार की शोभा कहीं हैं जिसे धाम दरवाजा भी कहते हैं ।धाम दरवाजा बादशाही दरवाजों से कोट गुनी शोभा से युक्त हैं ।नूरमयी दर्पण का दरवाजा जिसमें अर्श के वनों की अद्भुत झलकार पढ़ रही हैं ,हरे रंग की सुंदर बेनी की शोभा आयीं हैं और सेंदुरिया रंग की चौखट ..नूरी चौखट ।धाम दरवाजे की शोभा और भी बढ़ जाती हैं जब ब्रह्म सृष्टियों की निज नजर में धाम दरवाजे के दोनों और आयें चबूतरों की अलौकिक शोभा बस जाती हैं ।नूरी धाम दरवाजा के दोनों और श्री रंगमहल को घेर कर पचास हांसें आयीं हैं ।धाम दरवाजे के सामने चांदनी चौक की शोभा आयीं हैं ।चांदनी चौक की उज्जवल झलकार आसमान को छू रही हैं ।चांदनी चौक में आयें चबूतरों की अपार शोभा हैं और उन पर मोहोल माफक आयें लाल हरे वृक्षों की शोभा तो वर्णन से परे हैं  ।

दोए भोम कही जो बन की, खिडकी मोहोल तिन बन ।
भोम दूजी मोहोल झरोखे, इत बसत पसु पंखियन ।। १०।। 


रंगमहल की पूर्व दिशा में आत्मिक नजर से परिक्रमा कीजिए दिव्य धाम की ब्रह्म सृष्टियों । पूर्व दिशा में सात वनों की बेहद ही प्यारी शोभा आयी हैं ।केल ,लिबोई ,अनार ,अमृत ,जाम्बु ,नारंगी और वट ये सात वन अपार शोभा से युक्त हैं  ।अनार ,अमृत ,जाम्बु वन की डालियाँ श्री रंगमहल से मिलान करती हैं । पहली भोम की डालियाँ झरोखों से जा मिली हैं और दूजी भोम की डालियों ने दूजी भोम के छज्जों से एक रूप मिलान किया हैं --इन नूरी वनों में पशु पक्षी निवास करते हैं जो पल पल अक्षरातीत ,पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का गुणगान करते हैं 
उतर झरोखों से जाइए, दूजी भोम बन माहें ।
बन सोभे पसु पंखियों, कै हक जस गावें जुबांए ।। ११ ।। 

चल जाइए सातों घाट लग, खूबी देख होइए खुसाल ।
कै विध हक जिकर करें, पसू पंखी अपने हाल ।। १२।। 

तो आइये ,ब्रह्मसृष्टियों  को आह्वान ,श्री रंगमहल के मंदिरों में चले आइये और झरोखों से उतर कर वनों की दूसरी भोम में जाइये 
।वनों की दूजी भोम की शोभा देखिए --नीचे फूलों की गिलम और ऊपर भी फूलों का नूरी चंदवा --और इन वन मोहोलातो में निवास करते पशु पक्षी देखिए जो हर पल धनी के गुणगान में रहते हैं ।


यहाँ से चलिए श्री जमुना जी के किनारे आयें सातों घाटों में --और वहां की खूबी देख देख ब्रह्म सृष्टियाँ खुशहाल होती हैं ।नूरी पशु पक्षी कई विध से प्रीतम अक्षरातीत का जिक्र करते हैं 

 इसक जुबां बानी गावहीं, खूब सोभित अति नैन ।
मगन होत हक सिफत में, मुख मीठी बानी बैन ।। १३/३४परिक्र्मा 

श्री रंगमहल की पूर्व दिशा में आएं सात वनों में जमुना जी के तट पर आएं घाटों में पशु पक्षी निवास करते हैं जो आठो जाम चौसठ घडी प्रियतम अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के गुणगान में रहते हैं --

देखिए तो इन नूरमयी पशु पक्षियों को प्रेम जो येन अपनी मीठी रसना से व्यक्त करते हैं ,उनके नयन अत्यंत ही सुन्दर हैं जिनमें प्रियतम की छबि बसी हुई हैं --अपनी मुख से मीठे स्वर निकाल प्रियतम के यश का गुणगान करते हैं और उनके इश्क में मगन रहते हैं --                         
 किन विध कहूं पसू पंखियों, परों पर चित्रामन ।
मुख बोलें हक के हालमें, तिन अंबर भरे रोसन ।। १४

अर्शे अजीम दिव्य परमधाम के नूरमयी पशु पक्षियों का जिक्र हो रहा हैं ,जो पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के ह्रदय का व्यक्त स्वरूप हैं तो ऐसे सिफ़त रखने वाले पशु पक्षियों की शोभा का वर्णन किन मुख से हो ?इनके नूरी परों पर अद्भुत चित्रामन हैं   जिनकी शोभा की नूरी जोत आसमान तक झलकती है।यह सभी अपनी जुबान से हक़ श्री राज जी ,पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के गुणगान करते हैं उन्हीं में आराम पाते हैं  
                       
 जैसी सोभा पसू पंखियों, सोभा तैसी भोम बीच बन ।
सो सोभा मीठी हक जिकर, यों हाल खुसाल रात दिन ।। १५

दिव्य  भूमि परमधाम के दिव्य पशु पक्षियों की जैसे अलौकिक शोभा हैं ठीक वैसे ही वहां की दिव्य भूमि हैं वहां के नूरमयी ,चेतन वन हैं ।इन्ही वनों मे पशु पक्षी रात-दिन खुश रहकर मीठी रसना से ज़िक्र -ए -सुभान करते हैं !  
                       
 सोभा जाए ना कही बन पंखियों, और जिकर करत हैं जे ।
तो हक हादी रूहें मिलावा, कहूं किन विध सोभा ए ।। १६

परमधाम के नूरमयी पक्षियों वहां के पशुओं की शोभा का वर्णन इन जुबान से नहीं हो सकता जो सदैव पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का जिक्र करते हैं --तुहि तुहि ,पिऊ पिऊ की गूंज से वन गुंजायमान रहते हैं तो अक्षरातीत युगल स्वरूप श्री राज श्याम जी और ब्रह्म सृष्टियों की शोभा ,उनकी सिफ़त का वर्णन किन मुख से हो ?

बार बार हर चौपाई में चितवन की और प्रेरित किया जा रहा हैं ,कि हे ब्रह्म प्रियाओं ,इन ब्रह्म वाणी की अलौकिक तेजोमयी प्रकाश में ही आप दिव्य भूमि अपने निजघर की शोभा ,वहां की लीला को ध्यान ,चितवन से  महसूस कर सकते हैं 
                        
 इतथें चलके जाइए, ऊपर दोऊ पुलन ।
ए खूबी मैं क्यों कहूं, जो नूर जमाल मोहोलन ।। १૭ ।


सातों घाटों की शोभा ,उनमें रहने वाली पशु पक्षियों की लीला देख अब चले जमुना जी --जमुना जी पर आएं दोनों पुलों की शोभा को धाम ह्रदय में दृढ करें --जमुना जी पर सुशोभित दोनों पुल ,केल पुल और बट का पुल ,अक्षरातीत नूरजमाल के नूर से हैं ,अक्षरातीत के मोहोल हैं ,जल पर बने पांच भोम छठी चांदनी के अत्यंत ही मनोहारी इन पुलों की शोभा का वर्णन कैसे हो ?

सात घाट कहे बीच में, माहें पसू पंखी खेलत ।
तलें भोम या ऊपर, बन में केल करत ।। १८/३४ परिक्रमा 

श्री जमुना जी पर चले आइये --यहाँ नूरी पुलों की शोभा आयीं हैं --इन दोनों पुलों के बीच में सात घाटों की शोभा आयीं हैं जिनमें श्री राज जी के आशिक पशु पक्षी कई प्रकार के खेल खेलते हैं --रेती  में खेल हो या वनों की ऊपरी भौमों ..सदैव हक़ के जिक्र में पशु पाखी प्रेममयी क्रीड़ाओं में खुशहाल रहते हैं

मोरो की सुंदरता और जब वह नृत्य करते हैं
पशुओं का स्नेह
रेती में मस्त हो दौड़ना और नूर की बरखा
 यह सब उदाहरण इन नासूत जमीं के हैं तो विचारे ..यहाँ के पशु पक्षी इतने मनोहारी लग सकते हैं तो दिव्य भूमि परमधाम के घाटों में रमण करने वाले ,क्रीड़ा करने वाले अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के आशिक पशु पक्षी कैसे होंगे ?                         

 केल लिबोई अनार, बांई तरफ खूबी देत ।
जांबू नारंगी बट दांहिने, नूर सनमुख सोभा लेत ।। १९

अब दिखा रहे हैं कि कौन कौन से घाट हैं जो यहाँ खूबी लेते हैं जिनमें पशु पक्षी परमात्मा के जिक्र में आराम पाते हैं 

रंगमहल के मुख्य द्वार के बाईं ओर केल, लिबोई और अनार के घाट आएं हैं और दाईं तरफ जांबू ,नारंगी और बट के घाट सुशोभित हैं --ऐसे ही घाट अक्षर धाम की तरफ भी शोभा देते हैं--इन नूरमयी घाटों कि शोभा देखे --जो नित नवीन  हैं ,जहाँ पल पल में और भी सरस होती शोभा हैं --जहाँ कभी कोई कमी नहीं आती तो साथ दिव्य परमधाम के दिव्य घाटों कि शोभा को दिल में धारण करें                         
 दोए पुल सात घाट बीच में, पाट घाट विराजत ।
बीच दोऊ दरबार के, बन अंबर जोत धरत ।। २०

श्री जमुना जी पर केल पल और बट पुल की अपार शोभा आयीं हैं ..अक्षरातीत परमात्मा के नूर से यह पल मोहोल माफक  सुशोभित हैं ..इनकी पांच भोम छठी चांदनी आयीं हैं जिनकी हर भोम में अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी ब्रह्म अंगनाओं के साथ हिंडोलों में झूलते हैं --इन समय की लीला बेहद ही सुखदायी होती हैं ,प्रियतम के साथ नयन से नयन मिला कर हिंडोलों में झूलना ,सुगन्धित  शीतल हवा के झोंकों का स्नेहिल स्पर्श और पशु पक्षियों की मीठी स्वर लहरी में गूंजता संगीत --                         
 दोनों पुलों के बीच में सात घाट सुशोभित हैं और ठीक मध्य जमुना  जी के जल पर पाट घाट की अद्भुत शोभा आयीं हैं --परमधाम और अक्षर धाम के बीच में आमने -सामने आए इन वनों और घाटो की ज्योति आसमान तक जगमगाती है

जो घडनाले पुल तलें, दस दस दोऊ के ।
दस नेहेरें चलें दोरी बंध, बडी अचरज खूबी ए ।। २१

जमुना जी पर शोभित केल पुल और बट पुल दोनों के नीचे से श्री जमुना जी का निर्मल ,उज्जवल ,सुगन्धित ,मीठा जल दस धाराओं द्वारा प्रवाहित होता है !यहां पर दस नहरे पंक्तीबंध दिखाई देती हैं !जमुनाजी की यह विशेषता बड़ी अदभुत है
 दोऊ पुल देख के आइए, निकुंज मंदिरों पर ।

इत देख देख के देखिए, खूबी जुबां कहे क्यों कर ।। २२

जमुना जी पर आएं दोनों पुल पांच भोम छठी चांदनी के नूरी मोहोलाते हैं जिनकी प्रत्येक भोम में हिंडोलों की शोभा हैं और छठी चांदनी पर सुन्दर बैठके आयीं हैं --इन वनों की शोभा देख कर कुञ्ज निकुंज वनों की अलौकिक शोभा को दिल में लीजिए -

कुञ्ज निकुंज में सम्पूर्ण शोभा नूरमयी फूलों की हैं ..वहां के मंदिर ,मोहोलाते ,नूरी सेज्या सब नूरी फूलों के हैं ..फूलों की कोमलता देखे उनमें कोई नसे नहीं हैं --अति कोमल हैं नूरी फूल और फूलों की सेज्या ,बैठक के सुख तो अपार सुखदायी हैं--कुंज वन में कई वन एक ही रंग के हैं और कई वनों में एक एक में दस रंग हैं --ऐसे कई तरह के रंगों के अनेक वन हैं जिनसे अनेक तरह की आनंद की रस धाराएँ प्रवाहित होती हैं --इश्क ,प्रेम ,प्रीति ,आनंद के रास में डूबी रूहें इन वनों में श्री राज श्याम जी के संग हान्स विलास करती हुई अखंड सुख लेती हैं--

जैसे जैसे इन अलौकि मशोभा को निरखते हैं आत्मा करार पाती हैं ..दिव्य भूमि परमधाम के कुञ्ज वन का वर्णन जुबान कैसे करें ?                         
 आगूं इतथें हिडोले, जित चौकी बट पीपल ।
चार चौकी बट हिडोले, इतथें न सकिए निकल ।। २३

कुंज-निकुंज मंदिरो के आगे बटपीपल की चौकी के हिंडोले देखिए !यहां चार चार वृक्षों की चौकियों के मेहराबो मे हिंडोले लगे हैं ! यहां की शोभा इतनी अच्छी है कि यहां से निकलने का मन ही नही होता 

Tuesday, 7 June 2016

भोम तले की क्यों कहूं,

❤ भोम तले की क्यों कहूं, विस्तार बडो है अत ।
नेक नेक निसान दिए हादियों, मैं करूं सोई सिफत ।। १ ।। ❤
चौसठ थंभ चबूतरा, दरबाजे तखत बरनन ।

रूह मोमिन होए सो देखियो, करके दिल रोसन ।। २ ।।

भोम तले की क्यों कहूँ ----भोम तले की अर्थात रंगमहल की पहली भोम की अलौकिक शोभा ---तो कहे भोम तले शब्द बोलते ही दिल में क्या भाव आते है

1-Hamare nij ghar ragmahal ki vo pratham bhom jaha hm dhani sang aur sakhiyo sang khub rang vilas karte h.jaha ki ahlokik shobha dekh ruh unme hi kho jati h

-Bhom  shabd sunte hi sbse pehle apna nij ghar yad ata h  apna paramdham jisme 9bhom 10vi aakashi ka rang mahal jilmila rha h 100 sidiya chad ke dham  darvaja jiski alokik shobha  h  28thambh ka chouk rasoi ki haveli aur usse age moolmilava jaha apne dhani  k charno m hm rooho k baithak h ye sochte hi ek ishq ki lehar chal padti h  dil  me k kaise  apne ghar m piyaji shree shyama maharani ji aur hmm  sakhiya mil k aatho  pahar ishq ki lila  e krte h aur phir yad  ata  h wo ishq rabd 😭 jo hmne dhani se kiya aur is maya  k khel dekhne  aai aur  yaha ake apne pritam ko bhul gai 😥

-Bhom shabd sunte hi hamare hadi satguru shri devchandra ji ne jo paramdh ka varnan apni charcha dvara hamme bataya voh chalchitr ki tarah aankho ke samne ghoom jata hai hamara apna nijghar jo 9 bhom dasvi akaashi hai rang mohal ki pehli bhom mool milave ka drashy jaha Rajji shyama ji ke sang hum sabhi ruhe baitthi hai jaha anand hi anand ishq hi ishq piya tu hi tu vahedat ka najara ek dili ke roop mei najar aa jata hai ruh uss appar sulh mei doob jati hai

 धनि की मौज देखो ,उनका लाड़ ,अनन्त शोभा नाम लेते ही नजरो में आ गयी 😍
और अनन्त शोभा में रमन
 थम्भो के
मोहोलों के अपार सुख
गलियों में  उनके साथ रमन
 इठलाती चाल से चल रिझाना और एकटक प्रीतम को निरखना
रंगमहल की पहली भोम  मे श्री राज श्यामा जी कैसे प्यारी अदा से रमण करते है उन समय के सुख क्या कहे जब हक हादी वहाँ हो और उनका नूर श्री रंगमहल को और नूरी बना रहा हो ! अरशे मिलावे के सन्मुख हवेली की दीवर मे आए चित्रामन सोहने हो उठे ! रूहे यहाँ रमण करती है तो उनका नूर भी मोहोल मंदिरो के नूर से टकरा कर सोहना लगता है ! रंगमहल मे हक हादी कभी गलियो मे फिरते है तो कभी मोहोलो मे आराम करते है तो कभी चबूतरो पर बैठ विलास करते है !

-Rangmohal 9 bhom dasvi aakashi....
Jiska varnan karte hue shri mahamatiji ne bhi prashn kar diya.
BHOM TALE KI KYO KAHU
VISTAR BADO H ANANT
Jaha ki upma dene ke liye n  to kisi  gadit ka sahara liya ja sakta h n kisi (vistar) mapdand ka. Phir pramukh to rangmahal ki pratham bhumika moolhaveli jaha Rajshyama our sakhiyo ki mool .....antrang beithak ka sthan h.....jaha  any kisi ka pravesh sambhav nahi.us moolmilave ki shobha ka to varnan hi is nasvar jaban se karna sambhav nahi

[3:55 PM, 5/9/2016] Sushila Ji: Pratham bhom ki vah gol haveli jo dhani our hamari paraatam ka mool mukam h vaha ke noori najare ki shobhavaha ki rooh hi kar sakti h.
Choushat tham ke gol chabutre ke madhy me ek bahut hi noori sighasan mere yugal swaroop ke beithne ke liye jisme jadit katheda....noori divale usme chitraman.....
......noori gilam bichi chahu our
.......gadi takiye bhare ati jor
......charno me bharkar yu bethiya
.....jyo dadim ki kaliya
Thambho ke rang jude jude h.rang ...rang se takrakar ek alag hi rang ki tarang ubhar deta h.chakle bhi pasmi h our jo do noor ki chouki dhani ke charan rakhne ke liye rakhi h choki pe charan rakhte hi noori  kirno ki bouchar se dharti ambar me noor hi noor cha gaya.shobha ka varnan sambhav hi nahi......sakhiya bhi teen pankitiyo me essi jud kar beithi dadim ki kaliyo jese ki kabhi bhi judai n ho sake.anokhi hi beithak......dhani se khel jo mang liya.
..........ango ang ruhe lag rahiya
........aaj anokhi beithak  bulai
.......lagan khel ki dil me bhari
.......dahsat bhi ......kahi ho n judai
Sakhiyo ko pareshan dekhkar dhani hans hans kar yahi santvna dete rahe ki apni najro me lekar hi tumhe us brahmand me bhejuga ....tum maya me raho khub sukh i rahna par apna vada kabhi mat bhulna ki mei tumhara khavind hu....mei tumhe yaad  dilane ke liye kuran to kya mei swaym bhi tumhe lene aauga tum apna vada yad rakhna...........

Parbrhm permatma ke chidanand swaroop ka unke paramdham ka yatharth gyan prapt karna usko vykt karna kisi bhi prakar sambhav nahi.swaym shri shyamaji maharani......brahmpriyaye sath hi sath agrni sundarsath  bhi unke chidanand swaroop ki satta.........mahtta mahima our gourav ko nahi vyakt kar sakte h..kyoki shri rajji ka chidanand swaroop our unka paramdham ek essa anantanant gahra...gambheer awam rahasmay sagar h....us  sagar ki ek boond usko kese maap sakegi.
Jankar samjhkar ham apna hriday hi aalokit kar sakte h.

Pranamji

Sunday, 3 April 2016

पुखराज की तरहती संपूर्ण शोभा








💃बडो वन से चलती हैं सखियाँ --पुखराज पहाड़ की और --वृक्षों की शीतल सुगंधित छाया --नीचे नरम रेती --मोती माणिक की तरह जगमगाती --नरम इतनी कि घुटनो तक पाँव धँस रहे हैं --चार -चार वृक्षों के मध्य बने नूरी अखाड़े --और भी खिल उठते हैं रूहों के अभिनंदन के लिए --उमड़ते पशु -पक्षी --पिऊ-पिऊ ,तूही -तूही की गूंजार --उड़ती रेती मानो रेती भी गुलाल बन पिया से मिलन करना चाहती हैं💞💞
एक एक कदम पुखराज पहाड़ की बढ़ता हुआ  --अंग-प्रत्यंग में उमंग --जैसे ही बडो वन को पार किया सामने नहर --अत्यंत ही प्यारी शोभा को धारण किए जो सीधा पुखराज पहाड़ की और ले जाती हैं ---नहर की अलौकिक शोभा --उज्जवल निरमल जल प्रवाहित हो रहा हैं और नहर के दोनों और जल रोंसो की शोभा और पाल --विशालता लिए पाल

पाल से चली सखियाँ --पुखराज की और --एक तरफ नहर की शोभा --शीतलता का अहसास  तो दूसरी और मधु वन के मनोहारी दृश्य -आड़ी -खड़ी -नहरों के दरम्यान बने चबूतरे और उन पर वृक्षों की शोभा और आपस में महेराबे बढ़ा कर मिलान कर एक रूप चंद्रवा करते वृक्ष --और उन महेराबों में आएँ नूरी हिंडोलें मानिंद बटपीपल की चौकी के समान🌴🌿

मधु बन से आगे महा वन भी सखियों ने पार किया तो सामने पुखराजी रोंस जो पुखराज के 1000 हांस के भोंम भर ऊँचे चबूतरा को घेर कर आईं हैं --पुखराजी रोंस पर  कुंड की शोभा --200 कोस का लंबा चौड़ा कुंड --और कुंड की शोभा देखते जैसे ही आगे बढ़े तो सामने भोंम भर ऊँचा पुखराज पहाड़ का हज़ार हांस का चबूतरा --हांस में आए गुर्ज --गुर्जों से सीढ़ियाँ चबूतरा पर ले जाती हैं और दो गुर्जों में मध्य आएँ बादशाही शोभा से भी कोट गुणी शोभा को धारण किए द्वार जिनसे सीढ़ियाँ तरहती में उतरी हैं --तो चले सखियों --तरहती में विलास करने

द्वार के सामने पहुँचते ही द्वार स्वतः ही खुल गये --सामने उतरती नूरमयी सीढ़ियाँ --अर्शे अज़ीम की लाड़ली सखियाँ सीढ़ियाँ उतर रही हैं बड़ी ही नज़ाकत से --सावधानी से कदम आगे बढ़ाती हुई --सीढ़ियाँ भी धाम धनी के ही दिल का व्यक्त स्वरूप हैं वो भी और कोमल होकर रूहों का अभिनंदन करती हैं 

सखी मेरी नज़र उठा कर शोभा तो देखो --हज़ार हांसों से उतरती सीढ़ियाँ कितनी मनोहारी प्रतीत हो रही हैं --रंगों-नंगों की जोत बिखेरती हमारी धाम की सीढ़ियाँ --और कठेड़े की झिलमिलाती जोत --

हज़ार हाँसो से इठलाती ,मस्ती में डूबी सखियाँ सीढ़ियाँ उतर रही हैं --सीढ़ियाँ उतर कर सीढ़ी वाले रोंस पर पहुँचे हम सब

इन्ही रोंस पर सब सीढ़ियाँ उतरी हैं --घेर कर हज़ार हांसों में आईं यह रोंस बहुत ही मनोरम शोभा को धारण किए हैं --अब बढ़े सखियों आगे ?

नज़र भीतर की ओर करी तो देखी शोभा --हांस -हांस से तीन- तीन सीढ़ियाँ बगीचा की रोंस पर उतरी हैं --तो सखी मेरी बगीचा की रोंस पर चले -

तीन सीढ़ियाँ उतर कर बगीचा की रोंस पर आती हैं सब सखियाँ --400 कोस की घेर कर आईं सुंदर रोंस --सुंदर शब्द बहुत फीका --रोंस की अलौकिक शोभा के आगे--रोंस पर बिछे फूलों की अनोखी जुगत मानो पशमी गिलम बिछी हो --सुगंधी ही सुगंधी --और फूलों की सुंदर बैठके --धाम धनी श्रीराज जी श्री श्यामा जी और हम सब धाम की सखियों के वास्ते --आइए कुछ पल बगीचा की रोंस पर धाम धनी बैठे --उनसे बाते करे --उनके स्वरूप को एकटक निहारे --वो उनकी मीठी मीठी मुसकनियां -उनकी चंचल निगाहें

बगीचा की रोंस की प्यारी सी शोभा देख ,सखी मेरी अब भीतर की और देखे --बगीचा की रोंस के आगे घेर कर गोलाई में 1000 हांसों में बगीचों की हज़ार हारें शोभित हैं --एक हार में हज़ार हांस आएँ हैं   तो हज़ार हांसों में हज़ार बगीचा --इस तरह से 52 हार बगीचों की शोभा देख सखी --

एक बगीचा की अलौकिक शोभा को फेर फेर देख --बगीचा को घेर कर नहरों की शोभा आईं हैं और चारों कोनों में चहेबच्चों की शोभा हैं और बगीचा के मध्य मे भी कई नहरों और चहेबच्चों की शोभा आईं हैं --बगीचों में बेशुमार फल-फूलों के वृक्ष शोभायमान हैं --कई स्वादों के फल और अनन्त रंगों के फूल --कहीं एक ही रंग में खिले बगीचें तो कहीं बेशुमार रंगों में खिले बगीचे शोभित हैं -
-
सुगंधी और शीतल अहसास कराते नूरी बगीचे और और बगीचों के ठीक मध्य में फिलपाए की शोभा --फिलपाए तरहती की छत को जाकर लगे हैं --ऐसा प्रतीत होता हैं मेरी सखी --मानो फूलों ने थम्भ रूप होकर शोभा धारण की हैं --

बगीचों में नहरे और उनकी नूरी पाले --अद्भुत शोभा से युक्त हैं और पालों ने बगीचा की रोंस से एकरूप मिलान किया हैं तो मेरी सखी ,आओ ,बगीचा की रोंस से पाल पर होकर भीतर चले ...52 हार बगीचों की अलौकिक शोभा में रमण करते हुए ,अखंड सुखों में विलसते हुए --

नूरी नहरों का प्रवाह --निरमल ,उज्ज्वल जल के नूर भरे फव्वारे --और बगीचों में रमण करती नूरी स्वरूप सखियाँ --और नूरी स्वरूपों को रिझाते परमधाम के नूरी पशु-पक्षी --देखे मोरों का पंख फैलाना और फव्वारों से उछलती नूरी बूँदियो की बरखा मे उलासित होकर नृत्य कर श्रीराज-श्यामा जी और सखियों को प्रसन्न करना --कोयल की कूहु-कूहु --पिऊ-पिऊ--तूही -तूही की गूंजार

श्रीराज-श्यामा जी और सखियों के संग हांस विलास करते करते बगीचों को पार किया ---देख तो सखी ,हम पुनः बगीचा की रोंस पर हैं --बगीचा की रोंस के आगे तीन सीधी चढ़ कर मोहोलों की रोंस पर आ पहुँचे हम --हांस हांस से चढ़ती सीढ़ियाँ --

मोहोलातों की नंगन जडित रोंस बेहद ही मनोरम शोभा से युक्त हैं --
मोहोलातों की रोंस पर सजी बैठके --सखी मेरी ,तुम्हारे लिए ही सजी हैं | आओ कुछ पल यहाँ बैठे | एक और बगीचों की खुशहाल कर देने वाली शोभा तो दूसरी और मोहोलातो की मनोहारी शोभा

आओ सखी ,,53 हार मोहोलातों  की  अलौकिक  ,मनोहारी शोभा में रमण करें ,
एक मोहोलात में आए तो देखा --घेर कर आएँ मंदिर  --चारों दिशा में बड़े द्वारों की शोभा और द्वार के दोनों और चबूतरे --
घर कर आईं मंदिरों की शोभा के भीतर एक नूर से जगमग करती गली ,आगे एक थम्भ की हार और पुनः गली और मध्य में कमर भर ऊँचा चबूतरा और चबूतरा की किनार पर थम्भो की अनोखी जुगत --थम्भो को भराए के चंद्रवा की झलकार --और चबूतरा पर पशमी गिलम की प्यारी शोभा और उन पर सजी नूरी बैठक मेरे धनी धाम के लिए --
और मोहोलों से बाहर आकर देख तो मेरी सखी - मोहोलातो के मध्य आएँ त्रिपोलियों की मनोहारी शोभा --जहाँ मोहोलों के द्वार आमने सामने पड़े वहाँ 24 महेराबे सुंदर लग रही हैं और जहाँ मोहोलों के कोने मिल रहें हैं वहाँ भी 24 महेराबे सुशोभित हैं --और वहाँ सजी हैं रमणीय बैठक 

मोहोलातों में रमण कर अब मेरी सखी ,आगे बढ़ते हैं 
मोहोलों की 53 हार पार कर फिर से मोहोलातों की रोंस पर खुद को महसूस किया 
अत्यंत ही सुंदर ,प्यारी ,झिलमिल करती रोंस --सिंहासन कुर्सियों की अपार शोभा 
मेरी सखी ,श्रीराज-श्यामा जी के संग कुछ पल यहाँ विराजो --मानो रोंस भी पुकार उठी 
बैठकों पर धाम दूल्हा संग आन विराजी हम सब सखियाँ 
और धाम धनी दिखा रहे हैं अद्भुत शोभा

मोहोलातों की रोंस से हांस -हांस से तीन तीन सीढ़ियाँ उतरी हैं ताल की पाल रोंस पर --
ताल की पाल बेहद ही मनोरम प्रतीत हो रही हैं --हीरा के मानिंद उज्जवल पाल --और उन पर आईं सुंदर बैठके हमारे लिए --
और फिर ताल की पाल से तीन सीढ़ियाँ ताल रोंस पर उतरी हैं --ताल रोंस की शोभा क्या कहें ? मेरी सखी ,ताल रोंस से आगे खजाने का ताल सुशोभित हैं और ताल रोंस जल की सतह से मिलान किए हैं --
खजाने का ताल --अथाह जल राशि --मानो मेरे सुभान का इश्क जल बन कर लहरा हो --उज्जवल ,निरमल जल और खजाने के ताल में पाँच पेड़ों की शोभा --चार पेड़ दिशा में और एक मध्य में सुशोभित हैं --यही पेड़ तो पुखराज पहाड़ के आधार स्तंभ हैं --

यह पेड़ मोहोल माफक आएँ हैं --प्रत्येक पेड़ को घेर कर रोंस आईं हैं और रोंस के भीतरी तरफ मोहोल की शोभा आईं हैं --| मध्य के पैड़ की शोभा कुछ जुदा हैं | 900 कोस में आएँ इन पैड़ में 250 कोस की रोंस आईं हैं जिसकी बाहिरी तरफ कठेड़ा हैं और भीतर की ओर मंदिरों की हार घेर कर आईं हैं |इन मंदिरों की भीतरी दीवार में द्वार नहीं आएँ हैं क्योंकि भीतर जल स्तून आया हैं जो आकाशी मोहोल की चाँदनी पर जाकर खुलता हैं | इन मोहोलातों और पैड़ की ऊँचाई दो भोम की आईं हैं |तरहती की भी दो ही भोम आईं हैं | एक भोम परमधाम की ज़मीन के भीतर हैं और एक ऊपर -सखियाँ  इन अलौकिक शोभा को बार बार निहारती हैं |

Monday, 14 March 2016

बंगलों में रमण



चहेबच्चा की शोभा में झील कर मेरी रूह अब बंगलों में रमण करना चाहती हैं --मेरे दिल की इच्छा जानते ही मेहरों के सागर आप श्री राज जी मुझे बंगलों में लेकर जाते हैं --मैं बंगलों के चबूतरा के सामने बगीचा में हूँ --नूरमयी बगीचा --चेतन बगीचा देखिए तो ,श्रीराज-श्यामा जी और रूहों के अभिनंदन पर फूलों की बरखा -- ,सुगंधित समा और नहरों चहेबच्चों में हिलोरें लेता जल ---मैं सीढ़ियाँ चढ़ रहीं हूँ --सीढ़ी पर कदम रखा तो लगा मानों कोमल फूलों की पांखुड़ियों पर चल रही हूँ --जगमगाते कठेड़े की झलकार --सीढ़ियाँ चढ़कर चबूतरा पर पहुँची

तो देखा कि किनार पर नूरमयी थम्भ शोभित हैं ,नूर से भरे ,उनमें सजे चेतन चित्रामन और उनकी ऊँची भोमे --एक ही भोंम में पाँच भोंम समाई हुई और थम्भो के मध्य कठेड़े की अति सुंदर मनोहारी शोभा --
कठेड़े को पकड़ कर खड़ी हूँ मैं ,और   चबूतरा के चारों और की शोभा निरखती हूँ --चारों और तथा कोनों में आएँ बगीचा की अनुपम शोभा --उनमें खेलती मेरी धाम की निसबती सखियाँ --बगीचों में पशु-पक्षियों की अस्वारी के सुख लेती हुई और कोई सखी तो विशालकाय हाथी पर सवार होकर के आती हैं और हाथी से कदम उतारती हैं तो खुद श्रीराज-श्यामा जी के सिंहासन के सम्मुख बंगलों के चबूतरा पर महसूस करती हैं

रोंस पर सजी सुंदर बैठक --रोंस की बाहिरी किनार पार आएँ ऊँचे थम्भ और भीतरी और आएँ स्वर्णिम महक से महकते मंदिर --नीचे पशमी गिलम और थम्भो की महेराबों पर आईं पाँच भोम ऊँची छत पर नूरी झलकार करता चंद्रवा की जोत --

श्री राज जी रूहों को दिखाते हैं अद्भुत शोभा --चारों दिशा में घेर कर आएँ मंदिरो के  भोम दर भोम चार छाते दिखाई दे रहे हैं  और पाँचवी छत ने चबूतरा की किनार पार आईं थम्भो की पहली छत से मिलान किया हैं --और बगीचा की भोमे देखी तो देखा क़ि फूलों से लबरेज पाँच भोंम तो चबूतरा की ऊँचाई तक आईं हैं और देखा कि जब बगीचों की दस भोंम ग्यारहवीं चाँदनी आईं तो बगीचा की ग्यारहवीं  चाँदनी और बंगलों के चबूतरा की किनार पर आएँ  थम्भो की पहली छत और मंदिरों की पाँच भोम छठी चाँदनी का (इन तीनों स्थानो का )एक रूप मिलान हुआ हैं---तो बगीचा में चलते  हैं मेरी सखी -- और बगीचों की ग्यारवी चाँदनी से दौड़ते हुए मंदिरों की छठी भोंम से बंगलों में प्रवेश करते हैं -

प्यारा सा अहसास ना --बगीचा में आए तो वृक्षों के नूरी तनों ने रास्ता दे दिया --ऊपर जाने का ----तनों में सुंदर सीढ़ियाँ सुशोभित हैं उनसे चढ़ कर वनों की दस भोंम ऊपर आकर वन की ग्यारहवीं चाँदनी पर आएँ --फुलो की मखमली चाँदनी --सुगंधी ही सुगंधी --पशु-पक्षियों की मधुर स्वरों की गूँज ---वनों की चाँदनी से होते हुए बाहिरी हार थम्भो की पहली छत पर आए तो एक अलग ही अहसास --नूरी नगन जडित रोंस --जगमगाती हुई --रोंस के भीतरी किनार पर मंदिर --मध्य में मुख्यद्वार --श्रीराज-श्यामा जी के संग मुख्यद्वार से मंदिरों की हार पार की तो देखा ---कि हम छज्जा पर हैं जिसकी भीतरी किनार पर थम्भ शोभित हैं और थम्भो के मध्य कठेड़ा हैं --

अगले ही पल खुद को चबूतरा पर आएँ सुंदर बैठक में बैठा हुआ महसूस किया  --सामने युगल जोड़ी -उनकी मोहनी छब ,श्री राज-श्यामा जी की जुगल जोड़ी का तेज -,

रूहों पर इश्क लुटाती उनकी निगाहें -कोई रूह चबूतरा की किनार पर  थम्भ को टेक लगा कर खड़ी हैं और एकटक श्रीराज -श्यामा जी को निहार रही हैं तो कोई श्री श्यामा जी की जोड़े बैठ उनसे बाते करती हैं और देखिए तो प्रियतम का इशारा हुआ कि देखो तो ज़रा नज़र घुमा कर --चारों दिशा में आएँ मंदिरों से खूब खुशालियाँ उमड़ उमड़ कर बाहर आ रही हैं और भोंम दर भोंम 25 भोमों में खूब खुशालियाँ --मंदिरों के भीतरी और आएँ थम्भो की महेराबों के दरम्यान कठेड़े से लगकर श्रीराज-श्यामा जी और सखियों का दीदार करती हैं --कुछ उनके लिए नृत्य पेश करती हैं तो कोई भोजन आरोगवाने की सेवा कर प्रसन्न होती हैं --कुछ देर चबूतरा पर हांस विलास किया फिर श्रीराज-श्यामा जी उठते हैं बंगलों की चाँदनी पर जाने के लिए --थम्भो में आईं नूरी सीढ़ियों से   पलक झपकते ही 25 भोंम ऊँची चाँदनी पर पहुँचे --

चाँदनी पर चबूतरा की सिर पर चबूतरा आया हैं जिसकी किनार पर थम्भ आएँ हैं जिनकी छत पर गुम्मत की शोभा आईं हैं --कलश ,ध्वजा की अपार शोभा हैं --चबूतरा पर आईं बैठको में अर्शे मिलावा आसीन होता हैं --मनोरम समा --अचरज में डालने वाला --देखा कि चबूतरा के चारों और आए बगीचे भी यहाँ तक आए हैं और 1600 मंदिर के  चौक के चारों किनारों पर जो चहेबच्चा आए हैं उनसे 

 उठते फव्वारे गुम्मत की नोक को छूटे हुए महेराब बनाते हैं

चारों कोनों से आती जल की धारा गुम्मत को छूटी हैं --घेर कर देखा तो 48 की 48 हार बंगलों यूँ ही शोभा ले रहे हैं और ऊपर नज़र की तो एकल छत ---बडो बन और फिलपायों की आईं छत --इन्हीं छत के नीचे बंगलों और चहेबच्चा अपार शोभा ले रहे हैं ---शीतलता ही शीतलता -रूहों को सुखदायी अहसास कराती हुईं - ये मेरे धाम धनी का लाड़ ही तो हैं |

Sunday, 13 March 2016

बंगलों और चहेबच्चा की शोभा में से चहेबच्चा की अलौकिक शोभा और सुख


आज मैं पिया जी की अंगना उनके संग झीलन की आस लेकर बंगला जी के चबूतरा पहुँचती हूँ --ठीक मध्य जहाँ बंगलों और चहेबच्चों की अपार शोभा आईं हैं --एक बंगला एक चहेबच्चा इस क्रम से 48 की 48 हारें बंगलों और चहेबच्चों की आईं हैं --आड़ी खड़ी नहरों के दरम्यान 1600 मंदिर  के लंबे चौड़े  चौक आएँ हैं --उनमें से एक चौक में आती हूँ और देखा कि चौक के ठीक मध्य भाग में 800 मंदिर  का लंबा चौड़ा चबूतरा एक भोंम ऊँचा उठा हैं  --मैं चबूतरा के नज़दीक पहुँचती हूँ --और देखती हूँ कि चबूतरा की चारों दिशा से सीढ़ियाँ उतरी हैं--मैं सीढ़ियाँ  चढ़ रही हूँ --अति सुंदर ,मनोहारी शोभा से युक्त सीढ़ियाँ 

सीढ़ियों की शोभा निरखते निरखते मैं ऊपर की और जाती हूँ --सीढ़ियों पर सुंदर चित्रामन से सुसज्जित पशमी गिलम बिछा हैं --अत्यंत ही नरम मेरे धाम की सोहनी सीढ़ियाँ --मैं सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ --दोनों और सुंदर कठेड़े झलकार कर रहे हैं --मैं भोम भर ऊँचे चबूतरा पर आ पहुँची और सबसे पहले किनार की शोभा देखती हूँ --अनुपम ,अद्भुत शोभा

चारों दिशा से उतरती सीढ़ियाँ और उनकी सुखदायी जोत --और घेर कर आया कठेड़े की स्वर्णिम झलकार --आपस में जब टकराती हैं बहुत ही प्यारी लगती हैं मेरी रूह को

और चबूतरा की चारों दिशा में लगते बगीचा  और चारों कोनों में आएँ बगीचा की शोभा --मैं देख रहीं हूँ मनोहारी बगीचे --नहरों और चहेबच्चों की अपार शोभा उनमें आएँ फल ,फूलों के बेशुमार वृक्ष --फ़िज़ा में सुगंधी ,रस फैलाते --और उनकी भोमे--

चबूतरा की एक भोम में बगीचों में आएँ नूरी वृक्षों की पाँच भोम समाई हुई--ऊपरा ऊपर जाती भोमे ---और पच्चीस भोम ऊपर गयी हैं --मनोरम शोभा --भोम दर भोम आएँ वृक्षों के शीतल ,सुगंधित छज्जे  और छज्जो की किनार पर आए फूलों के नरम नरम कठेड़े--

चबूतरा की किनार से भीतर नूरी रोंस --अत्यधिक विशालाता लिए --घेर कर एक सौ मंदिर की रोंस घूमी हैं --रत्नों और नंगों से जगमगाती रोंस और मध्य में 600 मदिर की लंबाई चौड़ाई लिए ताल की शोभा तो मैं अपलक देखती रह जाती हूँ

उज्ज्वल जल --शीतल ,सुगंधित ,निर्मल जल --मीठा जल --


मैं शोभा देख रही हूँ --ताल की-- जिसे चहेबच्चा के नाम से भी जाना जाता हैं मेरी धाम की सखियों के बीच --चहेबच्चा को घेर कर आईं नूरी जगमगाती रोंस और चबूतरा को घेर कर आएँ बगीचे जिनकी भोमे मानो बंगला के चबूतरा पर आईं बडो वन और फिलपायों की पाँच भोंम ऊँची एकल छत को छूने का प्रयास कर रही हो

इलम से याद आया कि इन्हीं शोभा के माँहे  मुझे श्री राज जी मिलेंगे | कहाँ हो पिया जी आप ? 

एक मधुर आवाज़ मेरे कानों में गूँजी --देख तो सही मैं तो तेरे अंग संग हूँ --नज़र उठी तो अंग प्रत्यंग उल्लास में --सामने मेरे प्राणवल्लभ श्रीराज जी श्री श्यामा जी ताल के तट पर सुंदर कंचन जडित सिंहासन पर विराजे और घेर कर सखियाँ भी विराजमान हैं और मैं तो उनके सामने ही हूँ --ओह मेरे पिया ,मेरे धाम धनी तेरी मेहरों का कोई पार नहीं | पल पल इश्क के जाम के जाम पिलाते हो मेरे धनी धाम --

साकी पिलावें सराब, रूहें प्याले लीजिए ।

हक इसक का आब जो, भर भर प्याले पीजिए ।।

उनका नूर ,उनका स्वरूप कितना तेजोमयी हैं ,तेज में भी उनका इश्क ,लाड़ ,प्रीत जो वो पल पल रूहों पर लुटाते हैं ,उनकी तिरछी चितवन ,उनका मुस्कराना और मीठे लबों से मीठी रूहों से मीठी मीठी रसना से मीठे मीठे वचनों से मीठी मीठी बाते करना --


और श्रीराज जी ने दिखाई शोभा घेर कर आए वन भी मानों इठला उठे ,खिल उठे माशूक श्रीराज-श्यामा जी का दीदार पाकर --और उल्लासित होकर फूलों की बरखा --हर और महकता आलम और ऐसे समा मैं एक रूह की इच्छा कि सामने नूरी जल जल हैं तो क्यों ना श्रीजी के संग जल क्रीड़ा के सुख मिले |

जल क्रीड़ा के अखंड सुख लूँ यह विचार आते ही श्रीराज-श्यामा जी ने रूहों की दिल की इच्छा जान कर झीलन के लिए उठते हैं ...सखियाँ भी संग में --नूरी तनों पर नूरी वस्त्र झीलन के सज़ गये--अंग -अंग में उल्लास कि पिया जी के संग जल क्रीड़ा के अखंड सुख लेंगे - -दूध से भी उज्ज्वल ,मिश्री से भी मीठा जल भी प्रसन्न कि आज मेरे प्राण प्रियतम को जी भर के रिझाऊँगा --और चबूतरा के चारों दिशा और चारों कोनों में बगीचे ,उनमें आएँ चेतन वृक्ष भी पुलकित हो उठे
युगल स्वरूप श्रीराज जी के संग ब्रह्म प्रियाएँ तैयार जल क्रीड़ा के लिए --श्रीराज-श्यामा जी जल में उतरते हैं --साथ में सखियाँ भी --उनके जल में प्रवेश करते ही जल की उमंग देखिए ,जल की उछाले मारती लहरें और वृक्षों ने फूलों की बारिश कर सुगंधी बिखरी |

युगल स्वरूप श्रीराज जी के संग ब्रह्म प्रियाएँ तैयार जल क्रीड़ा के लिए --श्रीराज-श्यामा जी जल में उतरते हैं --साथ में सखियाँ भी --उनके जल में प्रवेश करते ही जल की उमंग देखिए ,जल की उछाले मारती लहरें और वृक्षों ने फूलों की बारिश कर सुगंधी बिखरी |


कुछ सखियाँ चहेबच्चे के किनारे खड़ी खड़ी लीला के सुख लेती हैं | आज भर कर पिया जी का दीदार कर तो लूँ | उनको अपनी पलको में बसा लूँ | जल की उछलती बूंदियो में प्रियतम का दीदार --भीगी भीगी जुल्फे

श्री श्यामा महारानी के लंबे केश ---गौरी लालिमा लिए पीठ पर लहराते हुए --


और कुछ सखियों की मस्ती ---वनों की ऊपरी भोंम में जाकर छज्जों से गहरे जल में कूदना --एक के ऊपर एक --हाँसी बेसुमार --तो एक सखी जल में पाँव लटका कर लीलाओं का रसपान कर रही हैं --एक दूजे के ऊपर जल उछालना तो चारों और बस जल ही जल नज़र आया --मेरे धामधनी का इश्क रूहों को इश्क में सराबोर करता हुआ --

झीलन के अपार सुख ले रूहें श्रीराज-श्यामा जी के संग ताल से निकल कर रोंस पर आते हैं और वनों में आएँ फूलों के मंदिरों में सिनगार सजते हैं | फूलों का सिनगार --फूलों के वस्त्र और फूलों के ही आभूषण --यह तो आज सेवा हैं सखियों  की --चित्त चाहे भूखन सजते हैं पर सेवा सबको प्यारी हैं | हर लाड़ली रूह के भाव कि धाम धनी को रिझाऊं ,उनके लिए रूच रूच कर वस्त्र तैयार कर उनके नूरी अंगों को सजाऊं ,

सिनगार सज कर श्री श्यामा महारानी और सखियों को संग में लेकर श्रीराज जी ताल की रोंस पर पधारते हैं तो देखिए तो कुछ ब्रह्म प्रियाएँ पहले से  हाजिर थाल के थाल भोजन सामग्री लेकर --प्रियतम को नूरी चाकलों पर बैठा कर बड़े ही प्यार से आरोगवाती हैं --श्रीराज जी यह मिठाई लीजिए ,बहुत ही लज़ीज़ हैं --श्रीराज-श्यामा जी बड़े ही भाव से भोजन आरोगते हैं --उन सुखों की क्या कहे जब पिया जी आरोगते आरोगते मुख से मेवा काड़ मेरे मुख में डालते हैं कि यह खाओ मेरी प्रिय --यह बहुत ही स्वादिष्ट हैं |

ये मेरे धाम के अखंड सुख हैं ,श्री राज जी के इश्क के प्याले हैं जो वह खुद प्याले पर प्याले भर रूहों को पिलाते हैं |

Friday, 4 March 2016

पुखराज पहाड़ की हज़ार हांस की चाँदनी







प्रणाम जी
मेहरों के सागर मेरे धाम धनी श्री राज जी की अपार मेहर से मेरी रूह की निज नज़र
पुखराज पहाड़ की हज़ार हांस की चाँदनी पर पहुँची
मेरी रूह खुद को चाँदनी में आएँ बगीचों में महसूस करती हैं ---नज़ारे ऊपर की तो बगीचों की मनोहारी शोभा --कलकल करती निर्मल उज्ज्वल और सुगंधित जल की लहरे और चहेबच्चों की अनोखी शोभा

चहेबच्चों से उठता जल --फूलों से प्रतिबिंबिबत् होकर अजब रंग बिखेर रहा हैं | कोई चहेबच्चा से उठता फव्वारा फूलों की मानिंद शोभा दे रहा हैं तो आसमान को छूटा प्रतीत हो रहा हैं --चारों और निर्मल जल की बूँदीयाँ बिखरती हुई --शीतल अहसास और समा में सुगंधी ,मेरे प्राण प्रियतम का इश्क समाया हुआ
इन रमणीक स्थल पर युगल पिया श्रीराज -श्यामा जी और सखियाँ भी संग में हो तो सुखों का वर्णन किन मुख से हो ?
बगीचों में वृक्षों के बीच बने फूलों से महकते चौक और उनमें सजी सुंदर बादशाही बैठक हमारे बादशाह के लिए --हमारे प्राण वल्लभ श्री राज-श्यामा जी के लिए --
और बड़े ही प्यार से मानो वो बैठक भी मनुहार कर उठी --आइए मेरे धाम धनी --कुछ पल तो मुझे भी धनी कीजिए | अक्षरातीत श्री राज जी अपनी बड़ी रूह श्री श्यामा जी के संग नूरी सिंहासन पर विराजे---सोहनी छबि मेरे युगल पिया जी - चरण कमलों को नूर की चौकी पर धर उनका अदा से बैठना
मैं भी उनके सामने कुर्सी पर बैठी और उन्हें अपला निहार रही हूँ --उनकी मुस्कराहट उनकी चंचल निगाहें और उनके लब और पिऊ जी जब मीठे वचनों से रूह से बाते कर रहे हैं तो उनके उज्ज्वल दन्तावली के दर्शन --और घुघराले केशों को लहराना

चाँदनी पर आएँ बाग बगीचों में सखियाँ रमण करती हैं --फूलों की वादियों में सखियों के संग रमण --छोटी चिटी चिड़ियो की चहचाहत और भंवरों का गुंजन --और नूरी फूलों के आभूषण सज तैयार होना और नूरी कोमल कलियाँ चुन चुन कर श्रीराज-श्यामा जी के लिए अत्यंत ही सुंदर हार पिरोना --देखो ना फूल भी इतरा उठे अपने भाग्य पर --कि मैं पिऊ जी के कंठ में जगह पाऊँगा --

बगीचों में रमण कर अब श्रीराज-श्यामा जी रूहों को दिखाते हैं चाँदनी की किनार पर आई मनोहारी शोभा --

हज़ार हांस की चाँदनी की किनार पर कमर भर ऊँचे चबूतरा पर घेर कर हज़ार हांसों में मोहोलातें आईं हैं इसी कारण यह हज़ार हांस मोहोलातों के नाम से जाने जाते हैं --एक एक हांस की प्यारी शोभा --रंगों की प्यारी जुगत और फूलों से महकती शोभा --चार हवेलियों की चार हारे ,और दो हांस के मध्य गुर्ज की अलौकिक शोभा --

हज़ार हांसों में घेर कर आईं मोहोलाते और उनके मुख्य द्वारो की झलकार ---द्वारों के दोनों और आएँ चौरस चबूतरा जो भोम दर भोम ऊपर गुर्ज माफक जाते हैं | अष्ट महेराबी बैठको की शोभा --

धाम धनी इन बैठकों में सखियों के संग आकर के   बैठे --और भी एक शोभा किनार की दिखाई श्री राज जी --चारों दिशा में चार मुख्यद्वार आएँ हैं --महाबिलंद द्वार --द्वार की एक भोंम पांच भोंम ऊँची

और द्वार के ऊपर भी महल --शोभा चकित करने वाली
बैठको में धनी संग बैठी रूहें --श्रीराज जी की मेहर से देख रही हैं अपने धाम की शोभा


किनार पार आईं शोभा और चारों दिशा में आएँ मुख्यद्वार और भीतर बगीचों की अपार शोभा और ठीक मध्य 1000 भोम ऊँचे आकाशी महल की शोभा --स्वर्णिम शोभा खुशहाल करती रूहों को --द्वारों ,झरोखो और गुर्जों में आईं हज़ार भोंम तक की मनोहारी शोभा और चाँदनी पर आईं गुम्मट ,कलश ,ध्वजाएँ और घुँगरियों की झंकार

अपने श्यामा जी श्याम के आगमन पर उल्लास का समा --खुशियों के बिखरते रंग और बादल भी झूम झूम कर आ  गये --बादलों की गर्जना और रिमझिम बारिश

नूरी रंगों से रंगीन हुई रंगबिरंगी बूँदीयाँ और इनमें से झलकता आकाशी महल --वाह --कितना सुंदर --हर शह भीगी-भीगी--पिऊ के इश्क में भीगी --
बगीचों में पड़ती बूंदे --फूलों ,पत्तियों पर जब बूंदे विराजी तो उनकी अजब शोभा रूह देखती ही रह जाती हैं --और भीगे भीगे समय में सुरज भी प्रकट हो गया उनकी रोशनी से हर चीज़ जगमगा उठी --इंद्रधनुष के रंग से बिखर गये

और ऐसे समय में उत्तर और पश्चिम के बड़े द्वारों की और नज़र गयी तो पिया जी ने दिखाई --घाटियों की शोभा --बड़ी बड़ी सीढ़ियाँ और उनसे आते हाथी ,घौड़े ,गेंडा ,चीता ,शेर
बड़े बड़े जानवर चाँदनी पर आकर तरह तरह के करतब दिखाते हैं --हाथी सुंड में जल भर कर आसमान की और फेकते हैं तो यह दृश्य बड़ा ही सुहाना प्रतीत होता हैं और शेर की दहाड़
चीता की ऊँची छलाँग मानो आकास से उतार कर चीते आएँ हों
और घौड़े अस्वारी के लिए अनुनय करते हैं आओ मुझ पर अस्वार होइए
आओ सखियों ,घौड़ो पर स्वारी करें --और देखे चाँदनी की शोभा ऊँचे आसमान में जाकर
घौड़ो पर स्वार हुई मेरी रूह
हर रूह की चाहत की मेरा घौड़ा श्रीराज-श्यामा जी सवारी के संग संग चले --कोई आगे तो कोई पीछे --श्रीराज जी और एकटक निहारना --शीतल ,सुखदायी समय
और घौड़ो के साथ मानो आसमान में हैं हम
नीचे नज़र करी तो एक नज़र में चाँदनी की शोभा

किनार पर घेर कर आईं मोहोलाते ,चार बड़े द्वारों के भीतर बेशुमार बाग बगीचे और ठीक मध्य भाग में आकाशी महल --आसमान को छूटा हुआ
आकाशी महल की चाँदनी पर उतरते हैं

चाँदनी के मध्य आए तीन सीढ़ी ऊँचे चबूतरे पर मिलावा उतरा और देखी शोभा
आकाशी मोहोल की चाँदनी मानो आसमान में हैं हम बादलों के बीच
मध्य में आए चबूतरा के नीचे जल स्तून खुलता हैं जिसके जल के पूर चबूतरा की चारों दिशा से नहरों की भाँति निकल रहे हैं

चबूतरा को घेर कर बगीचा ,नहरे ,चहेबच्चे और किनार पर दिवाल की शोभा --द्वारों के कमानी द्वार यहाँ तक आएँ हैं
और जानते हैं यह जल स्तून कोनसा  हैं ?अरे --यह वही हैं जो खजाने के ताल से मध्य के पेड़ में आया था वही जल 2000 भोंम ऊपर आ कर प्रगट हुआ हैं हमे इश्क में भिगोने के लिए

Thursday, 3 March 2016

पुखराज पहाड़ के चबूतरा पर रमण

मेरी रूह आज पुखराज पहाड़ पर श्री राज जी के साथ रमण करना चाहती हैं तो मेहरों के सागर आप पिया श्री प्राणनाथ जी मुझे एक पल में पुखराज पहाड़ के हज़ार हांस चबूतरे पर लेकर आते हैं
और अंगूरी के इशारों से दिखाते हैं स्वर्णिम महक से महकते पुखराज पर्वत की अलौकिक शोभा --
श्रीरंगमहल की उत्तर  दिशा में पुखराज पहाड़ का चबूतरा गोलाई में घेर कर परमधाम की ज़मीन से एक भोम ऊंचा सुशोभित हैं --श्री राज जी रूह को दिखाते हैं --घेर कर आएँ हज़ार हांस और प्रत्येक हांस में आईं नई नई शोभा--

हांस हांस पर गुर्जों की अपार शोभा आईं हैं | इन गुर्जों से नूरी सीढ़ियाँ पुखराज के चबूतरा पर चढी हैं | हांस -हांस पर न्यारी शोभा --रूह देख देख खुशहाल होती हैं --
श्रीराज जी के साथ मानो पंख लगा रूह उनके साथ दौड़ दौड़ कर हज़ार हाँसो की शोभा निहारती हैं |प्रत्येक हांस की शोभा पहले से सरस --जिस भी हांस पर पहुँचे लगा कि ये शोभा सबसे उत्तम --
मेरे श्री राज जी भी मुस्करा उठा --ऐसा ही हैं तेरा घर परमधाम --जानती हैं कि परमधाम का जर्रा जर्रा मेरेे  धाम हृदय का प्रकट स्वरूप हैं
किसी हांस में गुलाबी फूलों की अनोखी जुगत --भीनी भीनी सुगंधी से महकती -महकाती हर शह --वहाँ पहुँच कर मेरी रूह भी गुलाबी हो उठी पिऊ के प्यार में --वो रूह का शरमाना
तो कोई हांस नंगों से जडित --रंगों -नंगों की सुखदायी झलकार और उनके तेज की किर्ने आसमान तक जाती हुई --इतनी प्यारी शोभा में जब मेरी रूह के प्रियतम लेकर के आएँ तो मेरी रूह अपलक उन्हें निहारती रही --वो मेरे महबूब की मोहनी सुरत ,उनकी तिरछी चंचल चितवन --भेद गयी रूह के जियरा को

और जब रूह श्वेत जोत फिलाते इन हांस में पहुँची तो वहाँ की उज्ज्वलता में खो गयी | हर शह में उज्ज्वल श्वेत जोत ,उनकी तेजोमयी किरणें और श्वेत अश्व हाजिर  -खूब खुशालियों का जुत्थ भी सेवा में हाजिर --उनका बड़े ही प्यार से मधुर ध्वनि में आग्रह करना --देखो मेरे श्री राज जी ,आपके लिए रूच रूच कर मेवे-मिठाई लेकर के आएँ हैं इन्हें आरोगिए और श्रीराज जी का लाड़ भीतो  महसूस करे --कैसे वो प्यार से भोजन आरोग रहे हैं |

अश्व यानी धाम के नूरी घौड़े ,पिया जी के आशिक वो भला कैसे पीछे रहते | उन्होने भी पिया जी से अरज करी कि हम पर विराजिए ,हम आपको पुखराज की सैर कराएँ

और युगल पिया श्रीराज-श्यामा जी और रूहें नूरी घौड़ो पर अस्वार हुई और घौड़े मदमस्त चाल से ले चले सैर कराने को
किनार पर दौड़ते अश्व --एक रोमांच
चबूतरा के किनारे पर स्वारी --हांस हांस में आएँ गुर्जों की अद्भुत शोभा और चबूतरा को घेर कर आईं दो भोंम की शोभित पुखराजी रोंस और फिर महावन के हज़ार भोमे ,
वन भी झुक कर सिजदा बजाते हुए ,फूलों की बरखा और आसमान से भी रिमझिम बारिश --शीतलता सुगंधी का आलम
और अब  चबूतरा के मध्य की शोभा में रमण करे
चबूतरा के ठीक मध्य भाग में आएँ और देखा एक भोम ऊँचा चौरस चबूतरा

श्रीराज जी का इलम बड़े ही हक से प्यार से रूहों को बता रहा हैं कि यह चबूतरा तरहती में आएँ खजाने के ताल के ठीक ऊपर सुशोभित हैं

घौड़ो से नीचे उतरे ,सबसे पहले मेरे श्रीराज  जी ने अपने चरण चबूतरा पर धरे ,फिर उन्होने हाथ थाम कर अपनी नूरी कोमल बाँहों में ले श्री श्यामा महारानी जी को बड़े ही प्रेम के साथ अश्व से नीचे उतारा | एक एक सखी को पिया जी ने अपनी नरम ,उज्ज्वल ,अति नरम ,गुलाबी हथेलियों में थाम बड़े ही प्रीत के साथ उतारा |

अश्वों से उतरने के सुख -प्रीतम श्रीराज जी के हस्तकमलों का कोमल ,सुखद स्पर्श और उनकी मेहर भरी नज़रों में अपनी छबि का दर्शन और अपनी ही छबि के नयनों में प्रियतम की मनमोहनी छबि --
और आभूषणों की मधुर झंकार --
सुहाना समया
और सामने चौरस चबूतरा और उनसे उतरती सीढ़ियाँ
अब मेरी रूह श्रीराज-श्यामा जी के संग सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं ,सीढ़ियों पर अत्यंत नरम गिलम और दोनों और आए सुंदर कठेड़े-स्वर्णिम झलकार से जगमगाते हुए --
सीढ़ियाँ चढ़कर चबूतरा पर आएँ --और देखा कि चारों दिशा से 44000 हज़ार के लंबे चौड़े इन चबूतरा से चारों दिशा में सीढ़ियाँ उतरी हैं | शेष जगह घेर कर कठेड़े की अलौकिक शोभा आईं हैं

[ कठेड़े को पकड़ कर खड़ी मेरी रूह महसूस करती हैं -- कठेड़े की चेतनता

चेतन  कठेड़ा और जब रूह कठेड़े को पकड़ कर खड़ी होती हैं तो ऐसा लगता हैं मानो कठेड़ा रूह की हथेलियों को सहला खुद ही मुस्करा उठा --और उंसकी मुस्कराहट रूह के लबो पर--रूह भी महसूस करती हैं पिया के इश्क को --नयन झलक उठे उनके प्यार की इस अनोखी अदा पर😍


और कठेड़े के भीतरी और नूरी रोंस --और रोंस के भीतरी तरफ जगमगाते मोहोल
चारों दिशा में 13-13 मोहोलो की अपार शोभा
बेशुमार रंगों से सुसज्जित मोहोल और एक और मनोहारी शोभा --चारों दिशा के ठीक मध्य का महल और चबूतरा के बीचो बीच का महल यह वही पेड़ हैं जो तरहती के खजाने के ताल से प्रगट हुए हैं | यही पाँच पेड़ पुखराज के आधार स्तंभ हैं
नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,मनोहारी मोहोल --आधार स्तम्भ कहे जाने वाले पेड़ पाँच भोम तक सीधा गये हैं और शेष मोहोल दो भोम तीसरी चाँदनी के आएँ हैं |अतन्त ऊँची भोमे --लंबाई ,चौड़ाई और ऊँचाई को कोई पारावार नहीं | नज़रों में बस मोहोलो की शोभा समा गयी | मोहोलो के किवाड़ ,उनके छज्जों की शोभा ---स्वर्णिम बादशाही शोभा से सजे द्वार --और सामने आते ही रूह के द्वार स्वतः ही खुल गये --भीतर की शोभा का क्या वर्णन हो ?

सुखसेज्या ,हिंडोलों ,साजो समान --सब रूह के लिए --मेहरों के सागर आज पिया आज इश्क के प्याले पर प्याले पीला रहे हैं |
नूर ही नूर ,मनोहारी हर दृश्य --रूह को अखंड सुखों की अनुभूति करा रहा हैं | मोहोलों में आईं सीढ़ियों से मोहोल की दो भोंम तीसरी चाँदनी पर रूह आती हैं |
अत्यंत ही प्यारी शोभा --खुली खुली सी शोभा और मोती की पुतलियाँ ने बैठक सज़ा दी | आइए इन धाम की अपनी बैठक पर विराजिए मेरे श्यामा जी श्याम |

धाम की प्यारी बुज़रक बैठक और यहाँ बैठकर एक नज़र में महबूब श्रीराज जी के संग पुखराज पहाड़ के दर्शन
वाह क्या नज़ारा हैं मेरे धाम का --अद्भुत ,अलौकिक ,अनुपम ,मनोहारी --सभी उपमाएँ फीकी ---रूह मेरी अपनी निज नज़र से और श्री राज जी के अपार मेहर से महसूस कर शोभा


हज़ार हांस के पुखराज पहाड़ के चबूतरे पर 44000 हज़ार कोस का भोंम भर ऊँचा चबूतरा और चबूतरा के किनारे आईं मोहोलों की चाँदनी पर खड़ी रूहें श्रीराज-श्यामा जी का संग --

यहाँ से श्रीराज जी ने रूहों को दिखाई शोभा आधार स्तंभ कहे जाने वाले पाँच पेड़ की --चारों दिशा के मध्य के पेड़ और चबूतरा के ठीक बीच में आया पेड़ --यह पाँच भोंम सीधा चले गये हैं --

रूह फेर फेर शोभा देखती हैं इन पेड़ो की --नूर ही नूर -अजब सी शोभा -जितना जितना रूह देख रही हैं शोभा बढ़ती हुई प्रतीत हो रही हैं | ऊपरा-ऊपर पाँच भोंम --भोम दर भोम छज्जा ,झरोखा और जगमगाते किवाड़--रूह को अपनी और खेंचते हुए

 और पाँचवीं भोंम से बढ़ते छज्जा --पाँचो पेड़ो से पाँचवीं भोम से छज्जे बढ़ते हैं आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोल आते चले गये हैं --दिशा के पेड़ दिशा की और छज्जा निकालते हैं और दिशा के पेड़ मध्य के पेड़ की और भी छज्जे बढ़ा रहे हैं और रूह ने देखा कि मध्य का पेड़ भी दिशा के पेड़ो की और छज्जा बढ़ा रहा हैं और पूर्व का पेड़ बंगला की और छज्जे बढ़ाता हैं  ,उत्तर और पश्चिम दिशा के पेड़ घाटियों की और छज्जे बढ़ाते रूहों को खुशहाल करते हैं

 आगे आगे दहेलान -अति-सुंदर बैठक धाम की और पीछे पीछे मोहोल बनते जा रहे हैं --पाँचो पेड़ो का बढ़ता विस्तार --250 भोंम तक और 250 भोम में पाँचो पेड़ मेहराब बना कर चबूतरा पर एक छत देते हैं | इन छत तले आठ महेराबे
आठ महेराबों की शोभा रूहें फेर फेर देखती हैं

 और एक प्यारी सी शोभा --250 भोंम में बंगला और दोनों घाटियों की तरफ भी  आने जाने एक रास्ता हुआ हैं --दोनों और से छज्जे बढ़ कर आपस में मिलान कर पुल बनाते हैं --एक पुल --लंबा मनोहारी पुल बंगला की और आया है और दो पुल घाटियों की ओर आएँ हैं और इन पुलों के नीचे की ओर ठीक मध्य में महावन वृक्ष आने से एक एक पुल  की शोभा दो महेराबों के समान प्रतीत हो रही हैं --

छः महेराबे यह हुई और आठ चबूतरा पर कुल 14 महेराबों की अलौकिक शोभा आईं हैं --

250 भोंम में एक और शोभा आईं हैं --पुखराज पहाड़ को घेर कर आईं महावन के वृक्षों की डालियां छतरिमंडल बना कर  पहली हार अपनी मर्यादा उलंघ कर भीतर आती हैं और चौरस छत को गोलाई प्रदान करती हैं --और अब यहाँ से घेर कर गोलाई में छज्जे बढ़ते हैं --भोम दर भोम विस्तार और 1000 भोंम तक संपूर्ण विस्तार --नीचे आएँ हज़ार हांस चबूतरा पर हज़ार हांस चाँदनी आ जाती हैं |


 रूहें फेर फेर इन अलौकिक शोभा को निरखती हैं --श्रीराज श्यामा जी के संग बढ़ते छज्जों में रमण करती हैं --हज़ार भोंम तक आईं दहेलाने और उनमें सजी बैठके --रूहें इनमें बैठ कर धाम धनी के संग हांस विलास करती हैं

श्री राज जी रूह के संग चौरस चबूतरा की किनार पर खड़े हैं और रूहों का खाविंद उनके श्री राज जी उनके लिए पशु पक्षियों को हुकम देते हैं मुज़रा करने के लिए

 श्रीराज जी के दिल में आते ही बड़े बड़े पशु पक्षियों के झुंड के झुंड उपस्थित --उत्तर पश्चिम की लंबी घाटी के चबूतरा से आते हुए तो कुछ बंगला से आते --गिरती जल की धाराओं में से प्रगट होते --और हज़ार हांस पुखराज के चबूतरा पर आकर तरह तरह के करतब कर रिझाते हुए --बड़ी बड़ी छः महेराबो में बनी शोभा के नीचे --

और श्वेत हंसों का जुत्थ पास में आकर के कहे चलो --बढ़ते छज्जों से बनी उल्टी सीढ़ी के मफाक आए विस्तार की शोभा नज़दीक से देखाऊँ --उन के पंखों पर अस्वार होकर कभी 650 भोंम में आईं छज्जों की बैठक के सुख लिए तो कभी 999 भोंम ऊँची दहेलान में आईं  बैठक पर बैठ सखियों को आवाज़ लगाई आ जाओ ना --यहाँ से नज़ारा देखों

 फेर फेर शोभा दिखाई श्रीराज जी ने --हज़ार हांस चबूतरा --हज़ार रंगों में झिलमिलाता हुआ

मध्य चौरस चबूतरा पर पाँच पेड़ो का प्रकट होना --उनका पाँच भोंम तक सीधे जाकर छज्जा बढ़ाना--भोम दर भोम बढ़ता विस्तार फिर एक रूप हो गोलाई में घेर कर छज्जा बढ़ना

एक एक पेड़ बेशुमार शोभा लिए -नूर से लबरेज --फेर कर देखा तो मानो यह पाँच पेड़ श्री राज जी के नूर ,इश्क ,इलम ,जोश और मेहर के प्रतीक हैं  | पल पल रूहों के लिए बढ़ती मेहर ,जोश ,इश्क ,इलम उन्हें श्रीराज जी की वाहिदत में ले जाता हैं








Thursday, 25 February 2016

पुखराज का चबूतरा से बंगला जी की और


चले निज नज़र से रंगमहल की उत्तर दिशा में जहाँ पुखराज का चबूतरा स्वर्णिम आभा से झिलमिला रहा हैं | हज़ार हांस का चबूतरा गोलाई में घेर कर हज़ार हांस में सुशोभित हैं | घेर कर आएँ 1000 गुर्ज
गुर्जों की शोभा देखे --हर हांस में बदलती शोभा ..रंगों की अनोखी जुगति और हांस हांस में आएँ गुर्जों से चबूतरा को घेर कर आईं पुखराजी रोंस में उतरती सीढ़ियाँ
और चबूतरा के ठीक मध्य नज़र की तो 44000 कोस का एक भोंम ऊँचा चबूतरा --जिसकी चारों दिशा से सीढ़ियाँ इन चबूतरा पर उतरी हैं | शेष जगह कठेड़ा और देखी शोभा पाँच पेड़ ..पुखराज के आधार स्तम्भ पाँच पेड़ जिन पर पुखराज पहाड़ की शोभा का विस्तार हुआ हैं
पेड़ो के बढ़ते छज्जा ..आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोलाते आती चली गयीं हैं --251 भोंम में 44000 कोस के चबूतरा पर एक छत हो गयीं हैं अब यहाँ से गोलाई रूप में घेर कर छज्जा बढ़ता हुए देखा रूह ने
उल्टी सीढ़ी की शोभा --आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोलाते --बढ़ते बढ़ते हज़ार भोम ऊपर एक छत --
यह अलौकिक शोभा में झील रूह की नज़र ले चले बंगला जी की और
बंगला की और पाँव मुबारक धरे श्री राज जी की रूह ने ---पुखराज और बंगला को जोड़ता हुआ एक कुंड आया हैं --विशालता लिए कुंड और कुंड को घेर कर आईं पाल से बंगला जी जाने का एक रास्ता --
लेकिन मेरी रूह रुक तो सही --बंगला जी के चबूतरा जाने से पहले यह अद्भुत शोभा तो निरख --बंगलों और चहेबच्चों की जो पाँच भोंम शोभा आईं हैं अर्थात बडो वन और फिलपायों पर जो पाँच भोंम ऊँची छत आईं हैं उन छत से जल की धारा गर्जना करती हुई कुंड में गिर रही हैं
पुखराज के चबूतरा से बंगला जी के 
चबूतरा जाना हैं तो दोनो को जोड़ता हुआ 
कुंड और कुंड की अद्भुत शोभा - पाँच भोंम 
ऊँची बंगलों और चहेबच्चों की चाँदनी से 
मधुर गर्जना कर रूह को उल्लासित करता 
गिरता नूरी जल
कुंड की पाल से रूह चली बंगला जी --हथेलियों में जल की बूँदों को समेटते हुए --आ पहुँची बंगला की चौरस चबूतरा पर --जिसके हर दिशा में 250 -250 गुर्ज सोहनी झलकार कर रहे हैं
पाँच हारे बडो वन --ऊँची अतन्त विशाल --एक ही भोंम पाँच भोंम ऊँची --शोभा देखते हुए रूह आगे बढ़ी --वृक्षों की शीतल ,सुगंधित और बेहद ही सुखदायी छाया
नीचे नरम नूरी फर्श ..नूरी पत्तियों ने उन पर बिखर कर मानो गिलम रच दी मेरी रूह के लिए --फूलों की पांखुड़ियाँ बीच गयी रूह के अभिनंदन के लिए --बड़ी ही अदा से बलखाती ,मदमाती चाल से चल रूह ने बडो वन पार किया आगे तो और भी सरस शोभा
रूह ने जैसे ही बडो वन किया वो खुद 
को पाती हैं फिलपायों के दरम्यान --
नूरी शोभा --नूर से भरे फिलपाए --एक 
एक फिलपाए को देखा तो अजब ही 
शोभा लिए --उनके सिरों पर हाथी 
,घौड़ो ,चीतो आदि के मुख और अर्श के चेतन इन मुखों से जल की धाराएँ निकल कर महेराब बना कर आगे आए बडो वन से गुजरते हुए भीतर आएँ बंगलो -चहेबच्चों में आई आड़ी -खड़ी नहरें जहाँ काट रही हैं उन जगह आएँ चहेबच्चों में जाकर मीठी गर्जना करता हुआ जल गिरता हैं --वो समाया क्या सुहाना समा हैं जब हम रूहें बडो वन में झूल रही हैं तब चारों और आएँ फिलपायों के सिरों पर आएँ बड़े बड़े अर्श के चेतन जानवरों के मुखों से जल के विशाल पूर निकल रहे हैं और हमारे ऊपर से गुजरते हुए चहेबच्चों में गिर रहे हैं --सुखदायी समय --अखंड सुखों में झीलती रूहें
फिलपायों के बाद पुनः बडो वन और बडो वन के भीतर --चबूतरा के ठीक मध्य आड़ी -खड़ी नहरों के मध्य आएँ भोंम भर ऊँचे चौक जिन पर क्रमशः एक बंगलों और एक चहेबच्चों की अद्भुत शोभा आईं हैं --और यहाँ ठीक सामने जब रूह बंगलों और चहेबच्चों के पार जाती हैं तो खुद को दहेलानों में महसूस करती हैं --सात दहेलान जिनमें चार नहेरे प्रवाहित हो रही हैं और तीन बैठके --तो रूह इन बैठकों में बैठ धाम धनी के संग किय हांस विलास याद कर ,इन पालों पर उनके साथ बैठना और नहरों की लहरों से खेलना तो कभी नौकायान --इन्हीं याद के माँहे श्रीराज जी से मिलन हैं मेरी रूह

Tuesday, 23 February 2016

बंगला के चबूतरा पर वृक्षों की छाँव तले रमण के सुख




प्रणाम जी
नज़रे बंद दूनी की और अंतरदृष्टि धाम मे
बंगला के चबूतरा पर वृक्षों की छाँव तले रमण के सुख
लेती हम सखियाँ
नीचे बिछी फूलों की कोमल पांखुड़ियाँ --एक नरम
पशमी गिलम से अधिक कोमलता का अहसास कराती
और चेतन वृक्षों की सुगंधी की ल़हेरें भिगोटी हुई
वृक्षों के दरम्यान बने सुंदर चौक और
वृक्षों की डालियों ने जहाँ महेराब बना कर मिलान किया
हैं वहाँ हिंडोला
वृक्षों की पाँच हारे पार की
फिलपाए --मानों नूर के थम्भ अपने संपूर्ण शोभा के
साथ खड़े हैं हाथ बाँध रूह के अभिनंदन के लिए
नूर ही नूर ,इन नूर में प्रकाश हैं जोत हैं सुगंधी हैं
कोमलता हैं चेतनता हैं धाम का इश्क समाया हैं एक
शब्द में पिऊ का लाड़ हैं यह नूर
फिलपायो के मुखों से निकलते जल के पूर
निर्मल जल की धाराएं
महेराब बना कर
आगे आईं वृक्षों की हारों को पार कर भीतर आएँ
चहेबच्चों में यह जल गिरता हैं
गिरते जल की मधुर प्रतिध्वनि
प्रिय लगने वाली स्वर लहरी
वृक्षों की महेराबो में से होकर आता यह जल उनके रंगों की झलकार से झलकार करता हुआ
जल के अथाह पूर
ऐसा झरना जो घौड़ो ,हाथी तो कहीं चीता के
मुख से प्रगट हो
बड़ी अदा से कला का प्रदर्शन करता हुआ
महेराब बना कर
भीतर बंगलों और चहेबच्चा को घेर कर आईं
नहरों के
दरम्यान बने चहेबच्चों में जब गिरता हैं तो
इसकी मधुर
ध्वनि ,इनकी जल की बूँदीयाँ सभी को श्रीराज
जी के इश्क में
भिगोती हैं
और जब इन बंगलों और चहेबच्चों के नज़दीक आईं वृक्षों की महेराबो में आएँ हिंडोलों में झूले तो वो सुख
हिंडोलों में बैठने का दिल में ले तो सामने मेरे प्रियतम ,मेरे धाम धनी श्री राज जी
मुस्कराते हुए
मंद मंद
नयनों से इशारा चल मेरी सखी झूला झूले
उनके साथ बड़ी ही अदा से दुलहन सी शरमाती हिंडोलो में विराजमान हुई
हिंडोलों का चलना
साथ में प्रियतम का साथ ,उनका स्नेहिल स्पर्श
ऊपर से जल के प्रवाह का गुज़रना
तो वो जल भी कैसे पीछे रहे ..पिऊ मिलन की चाहत में वो भी बूँदीयाँ बन प्रीतम से लिपट गया
और प्रीतम लेकर के चले एक और अद्भुत शोभा में
ऐसे शोभा जो मेरी सखी तुमने कभी नहीं देखी
बंगला के पूर्व में
आईं दहेलानों में लेकर के आए मेरे धाम दूल्हा
उत्तर से दक्षिण आठ थम्भो की हार
पूर्व से पश्चिम 14 थम्भो की हार
वृक्षों की फिलपायो की शोभा
दिखा धाम धनी अब दिखा
रहे हैं दहेलान की शोभा
यह दहलान अधबीच के कुंड
मे पश्चिम मे आई दहलान से
मिलान किए है ! इस दहलान
मे चौड़ाई तरफ 8 और लंबाई
तरफ 14 थम्ब आने से
दहलान मे 4 नहरो ओर तीन
बैठक की शोभा आईं हैं
आठ थम्भो में आई सुंदर
सात महेराब
चार में नहर
तीन में मनोहारी बैठक
वो समया जब धाम के दूल्हा संग नहर के किनारे आई इन नहरों में रमण करे --बेहद ही सुखदायी हैं | जल में मस्ती करना तो कभी बैठको में बैठ रमणीय नज़ारों के आनंद लेना
हज़ार भोंम तक ऐसे ही शोभा दहेलान की
अत्यंत विशाल शोभा
''''''''''''''''''''मेरे श्री राज जी आज तो रूह की इच्छा हैं कि इन दहेलानो में रमण करूँ कभी नहरों में सुंदर नाव में बैठ लहरों के सुख लूँ |