Monday, 14 March 2016

बंगलों में रमण



चहेबच्चा की शोभा में झील कर मेरी रूह अब बंगलों में रमण करना चाहती हैं --मेरे दिल की इच्छा जानते ही मेहरों के सागर आप श्री राज जी मुझे बंगलों में लेकर जाते हैं --मैं बंगलों के चबूतरा के सामने बगीचा में हूँ --नूरमयी बगीचा --चेतन बगीचा देखिए तो ,श्रीराज-श्यामा जी और रूहों के अभिनंदन पर फूलों की बरखा -- ,सुगंधित समा और नहरों चहेबच्चों में हिलोरें लेता जल ---मैं सीढ़ियाँ चढ़ रहीं हूँ --सीढ़ी पर कदम रखा तो लगा मानों कोमल फूलों की पांखुड़ियों पर चल रही हूँ --जगमगाते कठेड़े की झलकार --सीढ़ियाँ चढ़कर चबूतरा पर पहुँची

तो देखा कि किनार पर नूरमयी थम्भ शोभित हैं ,नूर से भरे ,उनमें सजे चेतन चित्रामन और उनकी ऊँची भोमे --एक ही भोंम में पाँच भोंम समाई हुई और थम्भो के मध्य कठेड़े की अति सुंदर मनोहारी शोभा --
कठेड़े को पकड़ कर खड़ी हूँ मैं ,और   चबूतरा के चारों और की शोभा निरखती हूँ --चारों और तथा कोनों में आएँ बगीचा की अनुपम शोभा --उनमें खेलती मेरी धाम की निसबती सखियाँ --बगीचों में पशु-पक्षियों की अस्वारी के सुख लेती हुई और कोई सखी तो विशालकाय हाथी पर सवार होकर के आती हैं और हाथी से कदम उतारती हैं तो खुद श्रीराज-श्यामा जी के सिंहासन के सम्मुख बंगलों के चबूतरा पर महसूस करती हैं

रोंस पर सजी सुंदर बैठक --रोंस की बाहिरी किनार पार आएँ ऊँचे थम्भ और भीतरी और आएँ स्वर्णिम महक से महकते मंदिर --नीचे पशमी गिलम और थम्भो की महेराबों पर आईं पाँच भोम ऊँची छत पर नूरी झलकार करता चंद्रवा की जोत --

श्री राज जी रूहों को दिखाते हैं अद्भुत शोभा --चारों दिशा में घेर कर आएँ मंदिरो के  भोम दर भोम चार छाते दिखाई दे रहे हैं  और पाँचवी छत ने चबूतरा की किनार पार आईं थम्भो की पहली छत से मिलान किया हैं --और बगीचा की भोमे देखी तो देखा क़ि फूलों से लबरेज पाँच भोंम तो चबूतरा की ऊँचाई तक आईं हैं और देखा कि जब बगीचों की दस भोंम ग्यारहवीं चाँदनी आईं तो बगीचा की ग्यारहवीं  चाँदनी और बंगलों के चबूतरा की किनार पर आएँ  थम्भो की पहली छत और मंदिरों की पाँच भोम छठी चाँदनी का (इन तीनों स्थानो का )एक रूप मिलान हुआ हैं---तो बगीचा में चलते  हैं मेरी सखी -- और बगीचों की ग्यारवी चाँदनी से दौड़ते हुए मंदिरों की छठी भोंम से बंगलों में प्रवेश करते हैं -

प्यारा सा अहसास ना --बगीचा में आए तो वृक्षों के नूरी तनों ने रास्ता दे दिया --ऊपर जाने का ----तनों में सुंदर सीढ़ियाँ सुशोभित हैं उनसे चढ़ कर वनों की दस भोंम ऊपर आकर वन की ग्यारहवीं चाँदनी पर आएँ --फुलो की मखमली चाँदनी --सुगंधी ही सुगंधी --पशु-पक्षियों की मधुर स्वरों की गूँज ---वनों की चाँदनी से होते हुए बाहिरी हार थम्भो की पहली छत पर आए तो एक अलग ही अहसास --नूरी नगन जडित रोंस --जगमगाती हुई --रोंस के भीतरी किनार पर मंदिर --मध्य में मुख्यद्वार --श्रीराज-श्यामा जी के संग मुख्यद्वार से मंदिरों की हार पार की तो देखा ---कि हम छज्जा पर हैं जिसकी भीतरी किनार पर थम्भ शोभित हैं और थम्भो के मध्य कठेड़ा हैं --

अगले ही पल खुद को चबूतरा पर आएँ सुंदर बैठक में बैठा हुआ महसूस किया  --सामने युगल जोड़ी -उनकी मोहनी छब ,श्री राज-श्यामा जी की जुगल जोड़ी का तेज -,

रूहों पर इश्क लुटाती उनकी निगाहें -कोई रूह चबूतरा की किनार पर  थम्भ को टेक लगा कर खड़ी हैं और एकटक श्रीराज -श्यामा जी को निहार रही हैं तो कोई श्री श्यामा जी की जोड़े बैठ उनसे बाते करती हैं और देखिए तो प्रियतम का इशारा हुआ कि देखो तो ज़रा नज़र घुमा कर --चारों दिशा में आएँ मंदिरों से खूब खुशालियाँ उमड़ उमड़ कर बाहर आ रही हैं और भोंम दर भोंम 25 भोमों में खूब खुशालियाँ --मंदिरों के भीतरी और आएँ थम्भो की महेराबों के दरम्यान कठेड़े से लगकर श्रीराज-श्यामा जी और सखियों का दीदार करती हैं --कुछ उनके लिए नृत्य पेश करती हैं तो कोई भोजन आरोगवाने की सेवा कर प्रसन्न होती हैं --कुछ देर चबूतरा पर हांस विलास किया फिर श्रीराज-श्यामा जी उठते हैं बंगलों की चाँदनी पर जाने के लिए --थम्भो में आईं नूरी सीढ़ियों से   पलक झपकते ही 25 भोंम ऊँची चाँदनी पर पहुँचे --

चाँदनी पर चबूतरा की सिर पर चबूतरा आया हैं जिसकी किनार पर थम्भ आएँ हैं जिनकी छत पर गुम्मत की शोभा आईं हैं --कलश ,ध्वजा की अपार शोभा हैं --चबूतरा पर आईं बैठको में अर्शे मिलावा आसीन होता हैं --मनोरम समा --अचरज में डालने वाला --देखा कि चबूतरा के चारों और आए बगीचे भी यहाँ तक आए हैं और 1600 मंदिर के  चौक के चारों किनारों पर जो चहेबच्चा आए हैं उनसे 

 उठते फव्वारे गुम्मत की नोक को छूटे हुए महेराब बनाते हैं

चारों कोनों से आती जल की धारा गुम्मत को छूटी हैं --घेर कर देखा तो 48 की 48 हार बंगलों यूँ ही शोभा ले रहे हैं और ऊपर नज़र की तो एकल छत ---बडो बन और फिलपायों की आईं छत --इन्हीं छत के नीचे बंगलों और चहेबच्चा अपार शोभा ले रहे हैं ---शीतलता ही शीतलता -रूहों को सुखदायी अहसास कराती हुईं - ये मेरे धाम धनी का लाड़ ही तो हैं |

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