💃बडो वन से चलती हैं सखियाँ --पुखराज पहाड़ की और --वृक्षों की शीतल सुगंधित छाया --नीचे नरम रेती --मोती माणिक की तरह जगमगाती --नरम इतनी कि घुटनो तक पाँव धँस रहे हैं --चार -चार वृक्षों के मध्य बने नूरी अखाड़े --और भी खिल उठते हैं रूहों के अभिनंदन के लिए --उमड़ते पशु -पक्षी --पिऊ-पिऊ ,तूही -तूही की गूंजार --उड़ती रेती मानो रेती भी गुलाल बन पिया से मिलन करना चाहती हैं💞💞
एक एक कदम पुखराज पहाड़ की बढ़ता हुआ --अंग-प्रत्यंग में उमंग --जैसे ही बडो वन को पार किया सामने नहर --अत्यंत ही प्यारी शोभा को धारण किए जो सीधा पुखराज पहाड़ की और ले जाती हैं ---नहर की अलौकिक शोभा --उज्जवल निरमल जल प्रवाहित हो रहा हैं और नहर के दोनों और जल रोंसो की शोभा और पाल --विशालता लिए पाल
पाल से चली सखियाँ --पुखराज की और --एक तरफ नहर की शोभा --शीतलता का अहसास तो दूसरी और मधु वन के मनोहारी दृश्य -आड़ी -खड़ी -नहरों के दरम्यान बने चबूतरे और उन पर वृक्षों की शोभा और आपस में महेराबे बढ़ा कर मिलान कर एक रूप चंद्रवा करते वृक्ष --और उन महेराबों में आएँ नूरी हिंडोलें मानिंद बटपीपल की चौकी के समान🌴🌿
मधु बन से आगे महा वन भी सखियों ने पार किया तो सामने पुखराजी रोंस जो पुखराज के 1000 हांस के भोंम भर ऊँचे चबूतरा को घेर कर आईं हैं --पुखराजी रोंस पर कुंड की शोभा --200 कोस का लंबा चौड़ा कुंड --और कुंड की शोभा देखते जैसे ही आगे बढ़े तो सामने भोंम भर ऊँचा पुखराज पहाड़ का हज़ार हांस का चबूतरा --हांस में आए गुर्ज --गुर्जों से सीढ़ियाँ चबूतरा पर ले जाती हैं और दो गुर्जों में मध्य आएँ बादशाही शोभा से भी कोट गुणी शोभा को धारण किए द्वार जिनसे सीढ़ियाँ तरहती में उतरी हैं --तो चले सखियों --तरहती में विलास करने
द्वार के सामने पहुँचते ही द्वार स्वतः ही खुल गये --सामने उतरती नूरमयी सीढ़ियाँ --अर्शे अज़ीम की लाड़ली सखियाँ सीढ़ियाँ उतर रही हैं बड़ी ही नज़ाकत से --सावधानी से कदम आगे बढ़ाती हुई --सीढ़ियाँ भी धाम धनी के ही दिल का व्यक्त स्वरूप हैं वो भी और कोमल होकर रूहों का अभिनंदन करती हैं
सखी मेरी नज़र उठा कर शोभा तो देखो --हज़ार हांसों से उतरती सीढ़ियाँ कितनी मनोहारी प्रतीत हो रही हैं --रंगों-नंगों की जोत बिखेरती हमारी धाम की सीढ़ियाँ --और कठेड़े की झिलमिलाती जोत --
हज़ार हाँसो से इठलाती ,मस्ती में डूबी सखियाँ सीढ़ियाँ उतर रही हैं --सीढ़ियाँ उतर कर सीढ़ी वाले रोंस पर पहुँचे हम सब
इन्ही रोंस पर सब सीढ़ियाँ उतरी हैं --घेर कर हज़ार हांसों में आईं यह रोंस बहुत ही मनोरम शोभा को धारण किए हैं --अब बढ़े सखियों आगे ?
नज़र भीतर की ओर करी तो देखी शोभा --हांस -हांस से तीन- तीन सीढ़ियाँ बगीचा की रोंस पर उतरी हैं --तो सखी मेरी बगीचा की रोंस पर चले -
तीन सीढ़ियाँ उतर कर बगीचा की रोंस पर आती हैं सब सखियाँ --400 कोस की घेर कर आईं सुंदर रोंस --सुंदर शब्द बहुत फीका --रोंस की अलौकिक शोभा के आगे--रोंस पर बिछे फूलों की अनोखी जुगत मानो पशमी गिलम बिछी हो --सुगंधी ही सुगंधी --और फूलों की सुंदर बैठके --धाम धनी श्रीराज जी श्री श्यामा जी और हम सब धाम की सखियों के वास्ते --आइए कुछ पल बगीचा की रोंस पर धाम धनी बैठे --उनसे बाते करे --उनके स्वरूप को एकटक निहारे --वो उनकी मीठी मीठी मुसकनियां -उनकी चंचल निगाहें
बगीचा की रोंस की प्यारी सी शोभा देख ,सखी मेरी अब भीतर की और देखे --बगीचा की रोंस के आगे घेर कर गोलाई में 1000 हांसों में बगीचों की हज़ार हारें शोभित हैं --एक हार में हज़ार हांस आएँ हैं तो हज़ार हांसों में हज़ार बगीचा --इस तरह से 52 हार बगीचों की शोभा देख सखी --
एक बगीचा की अलौकिक शोभा को फेर फेर देख --बगीचा को घेर कर नहरों की शोभा आईं हैं और चारों कोनों में चहेबच्चों की शोभा हैं और बगीचा के मध्य मे भी कई नहरों और चहेबच्चों की शोभा आईं हैं --बगीचों में बेशुमार फल-फूलों के वृक्ष शोभायमान हैं --कई स्वादों के फल और अनन्त रंगों के फूल --कहीं एक ही रंग में खिले बगीचें तो कहीं बेशुमार रंगों में खिले बगीचे शोभित हैं -
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सुगंधी और शीतल अहसास कराते नूरी बगीचे और और बगीचों के ठीक मध्य में फिलपाए की शोभा --फिलपाए तरहती की छत को जाकर लगे हैं --ऐसा प्रतीत होता हैं मेरी सखी --मानो फूलों ने थम्भ रूप होकर शोभा धारण की हैं --
बगीचों में नहरे और उनकी नूरी पाले --अद्भुत शोभा से युक्त हैं और पालों ने बगीचा की रोंस से एकरूप मिलान किया हैं तो मेरी सखी ,आओ ,बगीचा की रोंस से पाल पर होकर भीतर चले ...52 हार बगीचों की अलौकिक शोभा में रमण करते हुए ,अखंड सुखों में विलसते हुए --
नूरी नहरों का प्रवाह --निरमल ,उज्ज्वल जल के नूर भरे फव्वारे --और बगीचों में रमण करती नूरी स्वरूप सखियाँ --और नूरी स्वरूपों को रिझाते परमधाम के नूरी पशु-पक्षी --देखे मोरों का पंख फैलाना और फव्वारों से उछलती नूरी बूँदियो की बरखा मे उलासित होकर नृत्य कर श्रीराज-श्यामा जी और सखियों को प्रसन्न करना --कोयल की कूहु-कूहु --पिऊ-पिऊ--तूही -तूही की गूंजार
श्रीराज-श्यामा जी और सखियों के संग हांस विलास करते करते बगीचों को पार किया ---देख तो सखी ,हम पुनः बगीचा की रोंस पर हैं --बगीचा की रोंस के आगे तीन सीधी चढ़ कर मोहोलों की रोंस पर आ पहुँचे हम --हांस हांस से चढ़ती सीढ़ियाँ --
मोहोलातों की नंगन जडित रोंस बेहद ही मनोरम शोभा से युक्त हैं --
मोहोलातों की रोंस पर सजी बैठके --सखी मेरी ,तुम्हारे लिए ही सजी हैं | आओ कुछ पल यहाँ बैठे | एक और बगीचों की खुशहाल कर देने वाली शोभा तो दूसरी और मोहोलातो की मनोहारी शोभा
आओ सखी ,,53 हार मोहोलातों की अलौकिक ,मनोहारी शोभा में रमण करें ,
एक मोहोलात में आए तो देखा --घेर कर आएँ मंदिर --चारों दिशा में बड़े द्वारों की शोभा और द्वार के दोनों और चबूतरे --
घर कर आईं मंदिरों की शोभा के भीतर एक नूर से जगमग करती गली ,आगे एक थम्भ की हार और पुनः गली और मध्य में कमर भर ऊँचा चबूतरा और चबूतरा की किनार पर थम्भो की अनोखी जुगत --थम्भो को भराए के चंद्रवा की झलकार --और चबूतरा पर पशमी गिलम की प्यारी शोभा और उन पर सजी नूरी बैठक मेरे धनी धाम के लिए --
और मोहोलों से बाहर आकर देख तो मेरी सखी - मोहोलातो के मध्य आएँ त्रिपोलियों की मनोहारी शोभा --जहाँ मोहोलों के द्वार आमने सामने पड़े वहाँ 24 महेराबे सुंदर लग रही हैं और जहाँ मोहोलों के कोने मिल रहें हैं वहाँ भी 24 महेराबे सुशोभित हैं --और वहाँ सजी हैं रमणीय बैठक
मोहोलातों में रमण कर अब मेरी सखी ,आगे बढ़ते हैं
मोहोलों की 53 हार पार कर फिर से मोहोलातों की रोंस पर खुद को महसूस किया
अत्यंत ही सुंदर ,प्यारी ,झिलमिल करती रोंस --सिंहासन कुर्सियों की अपार शोभा
मेरी सखी ,श्रीराज-श्यामा जी के संग कुछ पल यहाँ विराजो --मानो रोंस भी पुकार उठी
बैठकों पर धाम दूल्हा संग आन विराजी हम सब सखियाँ
और धाम धनी दिखा रहे हैं अद्भुत शोभा
मोहोलातों की रोंस से हांस -हांस से तीन तीन सीढ़ियाँ उतरी हैं ताल की पाल रोंस पर --
ताल की पाल बेहद ही मनोरम प्रतीत हो रही हैं --हीरा के मानिंद उज्जवल पाल --और उन पर आईं सुंदर बैठके हमारे लिए --
और फिर ताल की पाल से तीन सीढ़ियाँ ताल रोंस पर उतरी हैं --ताल रोंस की शोभा क्या कहें ? मेरी सखी ,ताल रोंस से आगे खजाने का ताल सुशोभित हैं और ताल रोंस जल की सतह से मिलान किए हैं --
खजाने का ताल --अथाह जल राशि --मानो मेरे सुभान का इश्क जल बन कर लहरा हो --उज्जवल ,निरमल जल और खजाने के ताल में पाँच पेड़ों की शोभा --चार पेड़ दिशा में और एक मध्य में सुशोभित हैं --यही पेड़ तो पुखराज पहाड़ के आधार स्तंभ हैं --
यह पेड़ मोहोल माफक आएँ हैं --प्रत्येक पेड़ को घेर कर रोंस आईं हैं और रोंस के भीतरी तरफ मोहोल की शोभा आईं हैं --| मध्य के पैड़ की शोभा कुछ जुदा हैं | 900 कोस में आएँ इन पैड़ में 250 कोस की रोंस आईं हैं जिसकी बाहिरी तरफ कठेड़ा हैं और भीतर की ओर मंदिरों की हार घेर कर आईं हैं |इन मंदिरों की भीतरी दीवार में द्वार नहीं आएँ हैं क्योंकि भीतर जल स्तून आया हैं जो आकाशी मोहोल की चाँदनी पर जाकर खुलता हैं | इन मोहोलातों और पैड़ की ऊँचाई दो भोम की आईं हैं |तरहती की भी दो ही भोम आईं हैं | एक भोम परमधाम की ज़मीन के भीतर हैं और एक ऊपर -सखियाँ इन अलौकिक शोभा को बार बार निहारती हैं |
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