आज मैं पिया जी की अंगना उनके संग झीलन की आस लेकर बंगला जी के चबूतरा पहुँचती हूँ --ठीक मध्य जहाँ बंगलों और चहेबच्चों की अपार शोभा आईं हैं --एक बंगला एक चहेबच्चा इस क्रम से 48 की 48 हारें बंगलों और चहेबच्चों की आईं हैं --आड़ी खड़ी नहरों के दरम्यान 1600 मंदिर के लंबे चौड़े चौक आएँ हैं --उनमें से एक चौक में आती हूँ और देखा कि चौक के ठीक मध्य भाग में 800 मंदिर का लंबा चौड़ा चबूतरा एक भोंम ऊँचा उठा हैं --मैं चबूतरा के नज़दीक पहुँचती हूँ --और देखती हूँ कि चबूतरा की चारों दिशा से सीढ़ियाँ उतरी हैं--मैं सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ --अति सुंदर ,मनोहारी शोभा से युक्त सीढ़ियाँ
सीढ़ियों की शोभा निरखते निरखते मैं ऊपर की और जाती हूँ --सीढ़ियों पर सुंदर चित्रामन से सुसज्जित पशमी गिलम बिछा हैं --अत्यंत ही नरम मेरे धाम की सोहनी सीढ़ियाँ --मैं सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ --दोनों और सुंदर कठेड़े झलकार कर रहे हैं --मैं भोम भर ऊँचे चबूतरा पर आ पहुँची और सबसे पहले किनार की शोभा देखती हूँ --अनुपम ,अद्भुत शोभा
चारों दिशा से उतरती सीढ़ियाँ और उनकी सुखदायी जोत --और घेर कर आया कठेड़े की स्वर्णिम झलकार --आपस में जब टकराती हैं बहुत ही प्यारी लगती हैं मेरी रूह को
और चबूतरा की चारों दिशा में लगते बगीचा और चारों कोनों में आएँ बगीचा की शोभा --मैं देख रहीं हूँ मनोहारी बगीचे --नहरों और चहेबच्चों की अपार शोभा उनमें आएँ फल ,फूलों के बेशुमार वृक्ष --फ़िज़ा में सुगंधी ,रस फैलाते --और उनकी भोमे--
चबूतरा की एक भोम में बगीचों में आएँ नूरी वृक्षों की पाँच भोम समाई हुई--ऊपरा ऊपर जाती भोमे ---और पच्चीस भोम ऊपर गयी हैं --मनोरम शोभा --भोम दर भोम आएँ वृक्षों के शीतल ,सुगंधित छज्जे और छज्जो की किनार पर आए फूलों के नरम नरम कठेड़े--
चबूतरा की किनार से भीतर नूरी रोंस --अत्यधिक विशालाता लिए --घेर कर एक सौ मंदिर की रोंस घूमी हैं --रत्नों और नंगों से जगमगाती रोंस और मध्य में 600 मदिर की लंबाई चौड़ाई लिए ताल की शोभा तो मैं अपलक देखती रह जाती हूँ
उज्ज्वल जल --शीतल ,सुगंधित ,निर्मल जल --मीठा जल --
मैं शोभा देख रही हूँ --ताल की-- जिसे चहेबच्चा के नाम से भी जाना जाता हैं मेरी धाम की सखियों के बीच --चहेबच्चा को घेर कर आईं नूरी जगमगाती रोंस और चबूतरा को घेर कर आएँ बगीचे जिनकी भोमे मानो बंगला के चबूतरा पर आईं बडो वन और फिलपायों की पाँच भोंम ऊँची एकल छत को छूने का प्रयास कर रही हो
इलम से याद आया कि इन्हीं शोभा के माँहे मुझे श्री राज जी मिलेंगे | कहाँ हो पिया जी आप ?
एक मधुर आवाज़ मेरे कानों में गूँजी --देख तो सही मैं तो तेरे अंग संग हूँ --नज़र उठी तो अंग प्रत्यंग उल्लास में --सामने मेरे प्राणवल्लभ श्रीराज जी श्री श्यामा जी ताल के तट पर सुंदर कंचन जडित सिंहासन पर विराजे और घेर कर सखियाँ भी विराजमान हैं और मैं तो उनके सामने ही हूँ --ओह मेरे पिया ,मेरे धाम धनी तेरी मेहरों का कोई पार नहीं | पल पल इश्क के जाम के जाम पिलाते हो मेरे धनी धाम --
साकी पिलावें सराब, रूहें प्याले लीजिए ।
हक इसक का आब जो, भर भर प्याले पीजिए ।।
उनका नूर ,उनका स्वरूप कितना तेजोमयी हैं ,तेज में भी उनका इश्क ,लाड़ ,प्रीत जो वो पल पल रूहों पर लुटाते हैं ,उनकी तिरछी चितवन ,उनका मुस्कराना और मीठे लबों से मीठी रूहों से मीठी मीठी रसना से मीठे मीठे वचनों से मीठी मीठी बाते करना --
और श्रीराज जी ने दिखाई शोभा घेर कर आए वन भी मानों इठला उठे ,खिल उठे माशूक श्रीराज-श्यामा जी का दीदार पाकर --और उल्लासित होकर फूलों की बरखा --हर और महकता आलम और ऐसे समा मैं एक रूह की इच्छा कि सामने नूरी जल जल हैं तो क्यों ना श्रीजी के संग जल क्रीड़ा के सुख मिले |
जल क्रीड़ा के अखंड सुख लूँ यह विचार आते ही श्रीराज-श्यामा जी ने रूहों की दिल की इच्छा जान कर झीलन के लिए उठते हैं ...सखियाँ भी संग में --नूरी तनों पर नूरी वस्त्र झीलन के सज़ गये--अंग -अंग में उल्लास कि पिया जी के संग जल क्रीड़ा के अखंड सुख लेंगे - -दूध से भी उज्ज्वल ,मिश्री से भी मीठा जल भी प्रसन्न कि आज मेरे प्राण प्रियतम को जी भर के रिझाऊँगा --और चबूतरा के चारों दिशा और चारों कोनों में बगीचे ,उनमें आएँ चेतन वृक्ष भी पुलकित हो उठे
युगल स्वरूप श्रीराज जी के संग ब्रह्म प्रियाएँ तैयार जल क्रीड़ा के लिए --श्रीराज-श्यामा जी जल में उतरते हैं --साथ में सखियाँ भी --उनके जल में प्रवेश करते ही जल की उमंग देखिए ,जल की उछाले मारती लहरें और वृक्षों ने फूलों की बारिश कर सुगंधी बिखरी |
युगल स्वरूप श्रीराज जी के संग ब्रह्म प्रियाएँ तैयार जल क्रीड़ा के लिए --श्रीराज-श्यामा जी जल में उतरते हैं --साथ में सखियाँ भी --उनके जल में प्रवेश करते ही जल की उमंग देखिए ,जल की उछाले मारती लहरें और वृक्षों ने फूलों की बारिश कर सुगंधी बिखरी |
कुछ सखियाँ चहेबच्चे के किनारे खड़ी खड़ी लीला के सुख लेती हैं | आज भर कर पिया जी का दीदार कर तो लूँ | उनको अपनी पलको में बसा लूँ | जल की उछलती बूंदियो में प्रियतम का दीदार --भीगी भीगी जुल्फे
श्री श्यामा महारानी के लंबे केश ---गौरी लालिमा लिए पीठ पर लहराते हुए --
और कुछ सखियों की मस्ती ---वनों की ऊपरी भोंम में जाकर छज्जों से गहरे जल में कूदना --एक के ऊपर एक --हाँसी बेसुमार --तो एक सखी जल में पाँव लटका कर लीलाओं का रसपान कर रही हैं --एक दूजे के ऊपर जल उछालना तो चारों और बस जल ही जल नज़र आया --मेरे धामधनी का इश्क रूहों को इश्क में सराबोर करता हुआ --
झीलन के अपार सुख ले रूहें श्रीराज-श्यामा जी के संग ताल से निकल कर रोंस पर आते हैं और वनों में आएँ फूलों के मंदिरों में सिनगार सजते हैं | फूलों का सिनगार --फूलों के वस्त्र और फूलों के ही आभूषण --यह तो आज सेवा हैं सखियों की --चित्त चाहे भूखन सजते हैं पर सेवा सबको प्यारी हैं | हर लाड़ली रूह के भाव कि धाम धनी को रिझाऊं ,उनके लिए रूच रूच कर वस्त्र तैयार कर उनके नूरी अंगों को सजाऊं ,
सिनगार सज कर श्री श्यामा महारानी और सखियों को संग में लेकर श्रीराज जी ताल की रोंस पर पधारते हैं तो देखिए तो कुछ ब्रह्म प्रियाएँ पहले से हाजिर थाल के थाल भोजन सामग्री लेकर --प्रियतम को नूरी चाकलों पर बैठा कर बड़े ही प्यार से आरोगवाती हैं --श्रीराज जी यह मिठाई लीजिए ,बहुत ही लज़ीज़ हैं --श्रीराज-श्यामा जी बड़े ही भाव से भोजन आरोगते हैं --उन सुखों की क्या कहे जब पिया जी आरोगते आरोगते मुख से मेवा काड़ मेरे मुख में डालते हैं कि यह खाओ मेरी प्रिय --यह बहुत ही स्वादिष्ट हैं |
ये मेरे धाम के अखंड सुख हैं ,श्री राज जी के इश्क के प्याले हैं जो वह खुद प्याले पर प्याले भर रूहों को पिलाते हैं |
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