मेहरों के सागर मेरे धाम धनी श्री राज जी की अपार मेहर से मेरी रूह की निज नज़र
पुखराज पहाड़ की हज़ार हांस की चाँदनी पर पहुँची
मेरी रूह खुद को चाँदनी में आएँ बगीचों में महसूस करती हैं ---नज़ारे ऊपर की तो बगीचों की मनोहारी शोभा --कलकल करती निर्मल उज्ज्वल और सुगंधित जल की लहरे और चहेबच्चों की अनोखी शोभा
चहेबच्चों से उठता जल --फूलों से प्रतिबिंबिबत् होकर अजब रंग बिखेर रहा हैं | कोई चहेबच्चा से उठता फव्वारा फूलों की मानिंद शोभा दे रहा हैं तो आसमान को छूटा प्रतीत हो रहा हैं --चारों और निर्मल जल की बूँदीयाँ बिखरती हुई --शीतल अहसास और समा में सुगंधी ,मेरे प्राण प्रियतम का इश्क समाया हुआ
इन रमणीक स्थल पर युगल पिया श्रीराज -श्यामा जी और सखियाँ भी संग में हो तो सुखों का वर्णन किन मुख से हो ?
बगीचों में वृक्षों के बीच बने फूलों से महकते चौक और उनमें सजी सुंदर बादशाही बैठक हमारे बादशाह के लिए --हमारे प्राण वल्लभ श्री राज-श्यामा जी के लिए --
और बड़े ही प्यार से मानो वो बैठक भी मनुहार कर उठी --आइए मेरे धाम धनी --कुछ पल तो मुझे भी धनी कीजिए | अक्षरातीत श्री राज जी अपनी बड़ी रूह श्री श्यामा जी के संग नूरी सिंहासन पर विराजे---सोहनी छबि मेरे युगल पिया जी - चरण कमलों को नूर की चौकी पर धर उनका अदा से बैठना
मैं भी उनके सामने कुर्सी पर बैठी और उन्हें अपला निहार रही हूँ --उनकी मुस्कराहट उनकी चंचल निगाहें और उनके लब और पिऊ जी जब मीठे वचनों से रूह से बाते कर रहे हैं तो उनके उज्ज्वल दन्तावली के दर्शन --और घुघराले केशों को लहराना
चाँदनी पर आएँ बाग बगीचों में सखियाँ रमण करती हैं --फूलों की वादियों में सखियों के संग रमण --छोटी चिटी चिड़ियो की चहचाहत और भंवरों का गुंजन --और नूरी फूलों के आभूषण सज तैयार होना और नूरी कोमल कलियाँ चुन चुन कर श्रीराज-श्यामा जी के लिए अत्यंत ही सुंदर हार पिरोना --देखो ना फूल भी इतरा उठे अपने भाग्य पर --कि मैं पिऊ जी के कंठ में जगह पाऊँगा --
बगीचों में रमण कर अब श्रीराज-श्यामा जी रूहों को दिखाते हैं चाँदनी की किनार पर आई मनोहारी शोभा --
हज़ार हांस की चाँदनी की किनार पर कमर भर ऊँचे चबूतरा पर घेर कर हज़ार हांसों में मोहोलातें आईं हैं इसी कारण यह हज़ार हांस मोहोलातों के नाम से जाने जाते हैं --एक एक हांस की प्यारी शोभा --रंगों की प्यारी जुगत और फूलों से महकती शोभा --चार हवेलियों की चार हारे ,और दो हांस के मध्य गुर्ज की अलौकिक शोभा --
हज़ार हांसों में घेर कर आईं मोहोलाते और उनके मुख्य द्वारो की झलकार ---द्वारों के दोनों और आएँ चौरस चबूतरा जो भोम दर भोम ऊपर गुर्ज माफक जाते हैं | अष्ट महेराबी बैठको की शोभा --
धाम धनी इन बैठकों में सखियों के संग आकर के बैठे --और भी एक शोभा किनार की दिखाई श्री राज जी --चारों दिशा में चार मुख्यद्वार आएँ हैं --महाबिलंद द्वार --द्वार की एक भोंम पांच भोंम ऊँची
और द्वार के ऊपर भी महल --शोभा चकित करने वाली
बैठको में धनी संग बैठी रूहें --श्रीराज जी की मेहर से देख रही हैं अपने धाम की शोभा
किनार पार आईं शोभा और चारों दिशा में आएँ मुख्यद्वार और भीतर बगीचों की अपार शोभा और ठीक मध्य 1000 भोम ऊँचे आकाशी महल की शोभा --स्वर्णिम शोभा खुशहाल करती रूहों को --द्वारों ,झरोखो और गुर्जों में आईं हज़ार भोंम तक की मनोहारी शोभा और चाँदनी पर आईं गुम्मट ,कलश ,ध्वजाएँ और घुँगरियों की झंकार
अपने श्यामा जी श्याम के आगमन पर उल्लास का समा --खुशियों के बिखरते रंग और बादल भी झूम झूम कर आ गये --बादलों की गर्जना और रिमझिम बारिश
नूरी रंगों से रंगीन हुई रंगबिरंगी बूँदीयाँ और इनमें से झलकता आकाशी महल --वाह --कितना सुंदर --हर शह भीगी-भीगी--पिऊ के इश्क में भीगी --
बगीचों में पड़ती बूंदे --फूलों ,पत्तियों पर जब बूंदे विराजी तो उनकी अजब शोभा रूह देखती ही रह जाती हैं --और भीगे भीगे समय में सुरज भी प्रकट हो गया उनकी रोशनी से हर चीज़ जगमगा उठी --इंद्रधनुष के रंग से बिखर गये
और ऐसे समय में उत्तर और पश्चिम के बड़े द्वारों की और नज़र गयी तो पिया जी ने दिखाई --घाटियों की शोभा --बड़ी बड़ी सीढ़ियाँ और उनसे आते हाथी ,घौड़े ,गेंडा ,चीता ,शेर
बड़े बड़े जानवर चाँदनी पर आकर तरह तरह के करतब दिखाते हैं --हाथी सुंड में जल भर कर आसमान की और फेकते हैं तो यह दृश्य बड़ा ही सुहाना प्रतीत होता हैं और शेर की दहाड़
चीता की ऊँची छलाँग मानो आकास से उतार कर चीते आएँ हों
और घौड़े अस्वारी के लिए अनुनय करते हैं आओ मुझ पर अस्वार होइए
आओ सखियों ,घौड़ो पर स्वारी करें --और देखे चाँदनी की शोभा ऊँचे आसमान में जाकर
घौड़ो पर स्वार हुई मेरी रूह
हर रूह की चाहत की मेरा घौड़ा श्रीराज-श्यामा जी सवारी के संग संग चले --कोई आगे तो कोई पीछे --श्रीराज जी और एकटक निहारना --शीतल ,सुखदायी समय
और घौड़ो के साथ मानो आसमान में हैं हम
नीचे नज़र करी तो एक नज़र में चाँदनी की शोभा
किनार पर घेर कर आईं मोहोलाते ,चार बड़े द्वारों के भीतर बेशुमार बाग बगीचे और ठीक मध्य भाग में आकाशी महल --आसमान को छूटा हुआ
आकाशी महल की चाँदनी पर उतरते हैं
चाँदनी के मध्य आए तीन सीढ़ी ऊँचे चबूतरे पर मिलावा उतरा और देखी शोभा
आकाशी मोहोल की चाँदनी मानो आसमान में हैं हम बादलों के बीच
मध्य में आए चबूतरा के नीचे जल स्तून खुलता हैं जिसके जल के पूर चबूतरा की चारों दिशा से नहरों की भाँति निकल रहे हैं
चबूतरा को घेर कर बगीचा ,नहरे ,चहेबच्चे और किनार पर दिवाल की शोभा --द्वारों के कमानी द्वार यहाँ तक आएँ हैं
और जानते हैं यह जल स्तून कोनसा हैं ?अरे --यह वही हैं जो खजाने के ताल से मध्य के पेड़ में आया था वही जल 2000 भोंम ऊपर आ कर प्रगट हुआ हैं हमे इश्क में भिगोने के लिए
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