मेरी रूह आज पुखराज पहाड़ पर श्री राज जी के साथ रमण करना चाहती हैं तो मेहरों के सागर आप पिया श्री प्राणनाथ जी मुझे एक पल में पुखराज पहाड़ के हज़ार हांस चबूतरे पर लेकर आते हैं
और अंगूरी के इशारों से दिखाते हैं स्वर्णिम महक से महकते पुखराज पर्वत की अलौकिक शोभा --
श्रीरंगमहल की उत्तर दिशा में पुखराज पहाड़ का चबूतरा गोलाई में घेर कर परमधाम की ज़मीन से एक भोम ऊंचा सुशोभित हैं --श्री राज जी रूह को दिखाते हैं --घेर कर आएँ हज़ार हांस और प्रत्येक हांस में आईं नई नई शोभा--
हांस हांस पर गुर्जों की अपार शोभा आईं हैं | इन गुर्जों से नूरी सीढ़ियाँ पुखराज के चबूतरा पर चढी हैं | हांस -हांस पर न्यारी शोभा --रूह देख देख खुशहाल होती हैं --
श्रीराज जी के साथ मानो पंख लगा रूह उनके साथ दौड़ दौड़ कर हज़ार हाँसो की शोभा निहारती हैं |प्रत्येक हांस की शोभा पहले से सरस --जिस भी हांस पर पहुँचे लगा कि ये शोभा सबसे उत्तम --
मेरे श्री राज जी भी मुस्करा उठा --ऐसा ही हैं तेरा घर परमधाम --जानती हैं कि परमधाम का जर्रा जर्रा मेरेे धाम हृदय का प्रकट स्वरूप हैं
किसी हांस में गुलाबी फूलों की अनोखी जुगत --भीनी भीनी सुगंधी से महकती -महकाती हर शह --वहाँ पहुँच कर मेरी रूह भी गुलाबी हो उठी पिऊ के प्यार में --वो रूह का शरमाना
तो कोई हांस नंगों से जडित --रंगों -नंगों की सुखदायी झलकार और उनके तेज की किर्ने आसमान तक जाती हुई --इतनी प्यारी शोभा में जब मेरी रूह के प्रियतम लेकर के आएँ तो मेरी रूह अपलक उन्हें निहारती रही --वो मेरे महबूब की मोहनी सुरत ,उनकी तिरछी चंचल चितवन --भेद गयी रूह के जियरा को
और जब रूह श्वेत जोत फिलाते इन हांस में पहुँची तो वहाँ की उज्ज्वलता में खो गयी | हर शह में उज्ज्वल श्वेत जोत ,उनकी तेजोमयी किरणें और श्वेत अश्व हाजिर -खूब खुशालियों का जुत्थ भी सेवा में हाजिर --उनका बड़े ही प्यार से मधुर ध्वनि में आग्रह करना --देखो मेरे श्री राज जी ,आपके लिए रूच रूच कर मेवे-मिठाई लेकर के आएँ हैं इन्हें आरोगिए और श्रीराज जी का लाड़ भीतो महसूस करे --कैसे वो प्यार से भोजन आरोग रहे हैं |
अश्व यानी धाम के नूरी घौड़े ,पिया जी के आशिक वो भला कैसे पीछे रहते | उन्होने भी पिया जी से अरज करी कि हम पर विराजिए ,हम आपको पुखराज की सैर कराएँ
और युगल पिया श्रीराज-श्यामा जी और रूहें नूरी घौड़ो पर अस्वार हुई और घौड़े मदमस्त चाल से ले चले सैर कराने को
किनार पर दौड़ते अश्व --एक रोमांच
चबूतरा के किनारे पर स्वारी --हांस हांस में आएँ गुर्जों की अद्भुत शोभा और चबूतरा को घेर कर आईं दो भोंम की शोभित पुखराजी रोंस और फिर महावन के हज़ार भोमे ,
वन भी झुक कर सिजदा बजाते हुए ,फूलों की बरखा और आसमान से भी रिमझिम बारिश --शीतलता सुगंधी का आलम
और अब चबूतरा के मध्य की शोभा में रमण करे
चबूतरा के ठीक मध्य भाग में आएँ और देखा एक भोम ऊँचा चौरस चबूतरा
श्रीराज जी का इलम बड़े ही हक से प्यार से रूहों को बता रहा हैं कि यह चबूतरा तरहती में आएँ खजाने के ताल के ठीक ऊपर सुशोभित हैं
घौड़ो से नीचे उतरे ,सबसे पहले मेरे श्रीराज जी ने अपने चरण चबूतरा पर धरे ,फिर उन्होने हाथ थाम कर अपनी नूरी कोमल बाँहों में ले श्री श्यामा महारानी जी को बड़े ही प्रेम के साथ अश्व से नीचे उतारा | एक एक सखी को पिया जी ने अपनी नरम ,उज्ज्वल ,अति नरम ,गुलाबी हथेलियों में थाम बड़े ही प्रीत के साथ उतारा |
अश्वों से उतरने के सुख -प्रीतम श्रीराज जी के हस्तकमलों का कोमल ,सुखद स्पर्श और उनकी मेहर भरी नज़रों में अपनी छबि का दर्शन और अपनी ही छबि के नयनों में प्रियतम की मनमोहनी छबि --
और आभूषणों की मधुर झंकार --
सुहाना समया
और सामने चौरस चबूतरा और उनसे उतरती सीढ़ियाँ
अब मेरी रूह श्रीराज-श्यामा जी के संग सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं ,सीढ़ियों पर अत्यंत नरम गिलम और दोनों और आए सुंदर कठेड़े-स्वर्णिम झलकार से जगमगाते हुए --
सीढ़ियाँ चढ़कर चबूतरा पर आएँ --और देखा कि चारों दिशा से 44000 हज़ार के लंबे चौड़े इन चबूतरा से चारों दिशा में सीढ़ियाँ उतरी हैं | शेष जगह घेर कर कठेड़े की अलौकिक शोभा आईं हैं
[ कठेड़े को पकड़ कर खड़ी मेरी रूह महसूस करती हैं -- कठेड़े की चेतनता
चेतन कठेड़ा और जब रूह कठेड़े को पकड़ कर खड़ी होती हैं तो ऐसा लगता हैं मानो कठेड़ा रूह की हथेलियों को सहला खुद ही मुस्करा उठा --और उंसकी मुस्कराहट रूह के लबो पर--रूह भी महसूस करती हैं पिया के इश्क को --नयन झलक उठे उनके प्यार की इस अनोखी अदा पर😍
और कठेड़े के भीतरी और नूरी रोंस --और रोंस के भीतरी तरफ जगमगाते मोहोल
चारों दिशा में 13-13 मोहोलो की अपार शोभा
बेशुमार रंगों से सुसज्जित मोहोल और एक और मनोहारी शोभा --चारों दिशा के ठीक मध्य का महल और चबूतरा के बीचो बीच का महल यह वही पेड़ हैं जो तरहती के खजाने के ताल से प्रगट हुए हैं | यही पाँच पेड़ पुखराज के आधार स्तंभ हैं
नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,मनोहारी मोहोल --आधार स्तम्भ कहे जाने वाले पेड़ पाँच भोम तक सीधा गये हैं और शेष मोहोल दो भोम तीसरी चाँदनी के आएँ हैं |अतन्त ऊँची भोमे --लंबाई ,चौड़ाई और ऊँचाई को कोई पारावार नहीं | नज़रों में बस मोहोलो की शोभा समा गयी | मोहोलो के किवाड़ ,उनके छज्जों की शोभा ---स्वर्णिम बादशाही शोभा से सजे द्वार --और सामने आते ही रूह के द्वार स्वतः ही खुल गये --भीतर की शोभा का क्या वर्णन हो ?
सुखसेज्या ,हिंडोलों ,साजो समान --सब रूह के लिए --मेहरों के सागर आज पिया आज इश्क के प्याले पर प्याले पीला रहे हैं |
नूर ही नूर ,मनोहारी हर दृश्य --रूह को अखंड सुखों की अनुभूति करा रहा हैं | मोहोलों में आईं सीढ़ियों से मोहोल की दो भोंम तीसरी चाँदनी पर रूह आती हैं |
अत्यंत ही प्यारी शोभा --खुली खुली सी शोभा और मोती की पुतलियाँ ने बैठक सज़ा दी | आइए इन धाम की अपनी बैठक पर विराजिए मेरे श्यामा जी श्याम |
धाम की प्यारी बुज़रक बैठक और यहाँ बैठकर एक नज़र में महबूब श्रीराज जी के संग पुखराज पहाड़ के दर्शन
वाह क्या नज़ारा हैं मेरे धाम का --अद्भुत ,अलौकिक ,अनुपम ,मनोहारी --सभी उपमाएँ फीकी ---रूह मेरी अपनी निज नज़र से और श्री राज जी के अपार मेहर से महसूस कर शोभा
हज़ार हांस के पुखराज पहाड़ के चबूतरे पर 44000 हज़ार कोस का भोंम भर ऊँचा चबूतरा और चबूतरा के किनारे आईं मोहोलों की चाँदनी पर खड़ी रूहें श्रीराज-श्यामा जी का संग --
यहाँ से श्रीराज जी ने रूहों को दिखाई शोभा आधार स्तंभ कहे जाने वाले पाँच पेड़ की --चारों दिशा के मध्य के पेड़ और चबूतरा के ठीक बीच में आया पेड़ --यह पाँच भोंम सीधा चले गये हैं --
रूह फेर फेर शोभा देखती हैं इन पेड़ो की --नूर ही नूर -अजब सी शोभा -जितना जितना रूह देख रही हैं शोभा बढ़ती हुई प्रतीत हो रही हैं | ऊपरा-ऊपर पाँच भोंम --भोम दर भोम छज्जा ,झरोखा और जगमगाते किवाड़--रूह को अपनी और खेंचते हुए
और पाँचवीं भोंम से बढ़ते छज्जा --पाँचो पेड़ो से पाँचवीं भोम से छज्जे बढ़ते हैं आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोल आते चले गये हैं --दिशा के पेड़ दिशा की और छज्जा निकालते हैं और दिशा के पेड़ मध्य के पेड़ की और भी छज्जे बढ़ा रहे हैं और रूह ने देखा कि मध्य का पेड़ भी दिशा के पेड़ो की और छज्जा बढ़ा रहा हैं और पूर्व का पेड़ बंगला की और छज्जे बढ़ाता हैं ,उत्तर और पश्चिम दिशा के पेड़ घाटियों की और छज्जे बढ़ाते रूहों को खुशहाल करते हैं
आगे आगे दहेलान -अति-सुंदर बैठक धाम की और पीछे पीछे मोहोल बनते जा रहे हैं --पाँचो पेड़ो का बढ़ता विस्तार --250 भोंम तक और 250 भोम में पाँचो पेड़ मेहराब बना कर चबूतरा पर एक छत देते हैं | इन छत तले आठ महेराबे
आठ महेराबों की शोभा रूहें फेर फेर देखती हैं
और एक प्यारी सी शोभा --250 भोंम में बंगला और दोनों घाटियों की तरफ भी आने जाने एक रास्ता हुआ हैं --दोनों और से छज्जे बढ़ कर आपस में मिलान कर पुल बनाते हैं --एक पुल --लंबा मनोहारी पुल बंगला की और आया है और दो पुल घाटियों की ओर आएँ हैं और इन पुलों के नीचे की ओर ठीक मध्य में महावन वृक्ष आने से एक एक पुल की शोभा दो महेराबों के समान प्रतीत हो रही हैं --
छः महेराबे यह हुई और आठ चबूतरा पर कुल 14 महेराबों की अलौकिक शोभा आईं हैं --
250 भोंम में एक और शोभा आईं हैं --पुखराज पहाड़ को घेर कर आईं महावन के वृक्षों की डालियां छतरिमंडल बना कर पहली हार अपनी मर्यादा उलंघ कर भीतर आती हैं और चौरस छत को गोलाई प्रदान करती हैं --और अब यहाँ से घेर कर गोलाई में छज्जे बढ़ते हैं --भोम दर भोम विस्तार और 1000 भोंम तक संपूर्ण विस्तार --नीचे आएँ हज़ार हांस चबूतरा पर हज़ार हांस चाँदनी आ जाती हैं |
रूहें फेर फेर इन अलौकिक शोभा को निरखती हैं --श्रीराज श्यामा जी के संग बढ़ते छज्जों में रमण करती हैं --हज़ार भोंम तक आईं दहेलाने और उनमें सजी बैठके --रूहें इनमें बैठ कर धाम धनी के संग हांस विलास करती हैं
श्री राज जी रूह के संग चौरस चबूतरा की किनार पर खड़े हैं और रूहों का खाविंद उनके श्री राज जी उनके लिए पशु पक्षियों को हुकम देते हैं मुज़रा करने के लिए
श्रीराज जी के दिल में आते ही बड़े बड़े पशु पक्षियों के झुंड के झुंड उपस्थित --उत्तर पश्चिम की लंबी घाटी के चबूतरा से आते हुए तो कुछ बंगला से आते --गिरती जल की धाराओं में से प्रगट होते --और हज़ार हांस पुखराज के चबूतरा पर आकर तरह तरह के करतब कर रिझाते हुए --बड़ी बड़ी छः महेराबो में बनी शोभा के नीचे --
और श्वेत हंसों का जुत्थ पास में आकर के कहे चलो --बढ़ते छज्जों से बनी उल्टी सीढ़ी के मफाक आए विस्तार की शोभा नज़दीक से देखाऊँ --उन के पंखों पर अस्वार होकर कभी 650 भोंम में आईं छज्जों की बैठक के सुख लिए तो कभी 999 भोंम ऊँची दहेलान में आईं बैठक पर बैठ सखियों को आवाज़ लगाई आ जाओ ना --यहाँ से नज़ारा देखों
फेर फेर शोभा दिखाई श्रीराज जी ने --हज़ार हांस चबूतरा --हज़ार रंगों में झिलमिलाता हुआ
मध्य चौरस चबूतरा पर पाँच पेड़ो का प्रकट होना --उनका पाँच भोंम तक सीधे जाकर छज्जा बढ़ाना--भोम दर भोम बढ़ता विस्तार फिर एक रूप हो गोलाई में घेर कर छज्जा बढ़ना
एक एक पेड़ बेशुमार शोभा लिए -नूर से लबरेज --फेर कर देखा तो मानो यह पाँच पेड़ श्री राज जी के नूर ,इश्क ,इलम ,जोश और मेहर के प्रतीक हैं | पल पल रूहों के लिए बढ़ती मेहर ,जोश ,इश्क ,इलम उन्हें श्रीराज जी की वाहिदत में ले जाता हैं
और अंगूरी के इशारों से दिखाते हैं स्वर्णिम महक से महकते पुखराज पर्वत की अलौकिक शोभा --
श्रीरंगमहल की उत्तर दिशा में पुखराज पहाड़ का चबूतरा गोलाई में घेर कर परमधाम की ज़मीन से एक भोम ऊंचा सुशोभित हैं --श्री राज जी रूह को दिखाते हैं --घेर कर आएँ हज़ार हांस और प्रत्येक हांस में आईं नई नई शोभा--
हांस हांस पर गुर्जों की अपार शोभा आईं हैं | इन गुर्जों से नूरी सीढ़ियाँ पुखराज के चबूतरा पर चढी हैं | हांस -हांस पर न्यारी शोभा --रूह देख देख खुशहाल होती हैं --
श्रीराज जी के साथ मानो पंख लगा रूह उनके साथ दौड़ दौड़ कर हज़ार हाँसो की शोभा निहारती हैं |प्रत्येक हांस की शोभा पहले से सरस --जिस भी हांस पर पहुँचे लगा कि ये शोभा सबसे उत्तम --
मेरे श्री राज जी भी मुस्करा उठा --ऐसा ही हैं तेरा घर परमधाम --जानती हैं कि परमधाम का जर्रा जर्रा मेरेे धाम हृदय का प्रकट स्वरूप हैं
किसी हांस में गुलाबी फूलों की अनोखी जुगत --भीनी भीनी सुगंधी से महकती -महकाती हर शह --वहाँ पहुँच कर मेरी रूह भी गुलाबी हो उठी पिऊ के प्यार में --वो रूह का शरमाना
तो कोई हांस नंगों से जडित --रंगों -नंगों की सुखदायी झलकार और उनके तेज की किर्ने आसमान तक जाती हुई --इतनी प्यारी शोभा में जब मेरी रूह के प्रियतम लेकर के आएँ तो मेरी रूह अपलक उन्हें निहारती रही --वो मेरे महबूब की मोहनी सुरत ,उनकी तिरछी चंचल चितवन --भेद गयी रूह के जियरा को
और जब रूह श्वेत जोत फिलाते इन हांस में पहुँची तो वहाँ की उज्ज्वलता में खो गयी | हर शह में उज्ज्वल श्वेत जोत ,उनकी तेजोमयी किरणें और श्वेत अश्व हाजिर -खूब खुशालियों का जुत्थ भी सेवा में हाजिर --उनका बड़े ही प्यार से मधुर ध्वनि में आग्रह करना --देखो मेरे श्री राज जी ,आपके लिए रूच रूच कर मेवे-मिठाई लेकर के आएँ हैं इन्हें आरोगिए और श्रीराज जी का लाड़ भीतो महसूस करे --कैसे वो प्यार से भोजन आरोग रहे हैं |
अश्व यानी धाम के नूरी घौड़े ,पिया जी के आशिक वो भला कैसे पीछे रहते | उन्होने भी पिया जी से अरज करी कि हम पर विराजिए ,हम आपको पुखराज की सैर कराएँ
और युगल पिया श्रीराज-श्यामा जी और रूहें नूरी घौड़ो पर अस्वार हुई और घौड़े मदमस्त चाल से ले चले सैर कराने को
किनार पर दौड़ते अश्व --एक रोमांच
चबूतरा के किनारे पर स्वारी --हांस हांस में आएँ गुर्जों की अद्भुत शोभा और चबूतरा को घेर कर आईं दो भोंम की शोभित पुखराजी रोंस और फिर महावन के हज़ार भोमे ,
वन भी झुक कर सिजदा बजाते हुए ,फूलों की बरखा और आसमान से भी रिमझिम बारिश --शीतलता सुगंधी का आलम
और अब चबूतरा के मध्य की शोभा में रमण करे
चबूतरा के ठीक मध्य भाग में आएँ और देखा एक भोम ऊँचा चौरस चबूतरा
श्रीराज जी का इलम बड़े ही हक से प्यार से रूहों को बता रहा हैं कि यह चबूतरा तरहती में आएँ खजाने के ताल के ठीक ऊपर सुशोभित हैं
घौड़ो से नीचे उतरे ,सबसे पहले मेरे श्रीराज जी ने अपने चरण चबूतरा पर धरे ,फिर उन्होने हाथ थाम कर अपनी नूरी कोमल बाँहों में ले श्री श्यामा महारानी जी को बड़े ही प्रेम के साथ अश्व से नीचे उतारा | एक एक सखी को पिया जी ने अपनी नरम ,उज्ज्वल ,अति नरम ,गुलाबी हथेलियों में थाम बड़े ही प्रीत के साथ उतारा |
अश्वों से उतरने के सुख -प्रीतम श्रीराज जी के हस्तकमलों का कोमल ,सुखद स्पर्श और उनकी मेहर भरी नज़रों में अपनी छबि का दर्शन और अपनी ही छबि के नयनों में प्रियतम की मनमोहनी छबि --
और आभूषणों की मधुर झंकार --
सुहाना समया
और सामने चौरस चबूतरा और उनसे उतरती सीढ़ियाँ
अब मेरी रूह श्रीराज-श्यामा जी के संग सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं ,सीढ़ियों पर अत्यंत नरम गिलम और दोनों और आए सुंदर कठेड़े-स्वर्णिम झलकार से जगमगाते हुए --
सीढ़ियाँ चढ़कर चबूतरा पर आएँ --और देखा कि चारों दिशा से 44000 हज़ार के लंबे चौड़े इन चबूतरा से चारों दिशा में सीढ़ियाँ उतरी हैं | शेष जगह घेर कर कठेड़े की अलौकिक शोभा आईं हैं
[ कठेड़े को पकड़ कर खड़ी मेरी रूह महसूस करती हैं -- कठेड़े की चेतनता
चेतन कठेड़ा और जब रूह कठेड़े को पकड़ कर खड़ी होती हैं तो ऐसा लगता हैं मानो कठेड़ा रूह की हथेलियों को सहला खुद ही मुस्करा उठा --और उंसकी मुस्कराहट रूह के लबो पर--रूह भी महसूस करती हैं पिया के इश्क को --नयन झलक उठे उनके प्यार की इस अनोखी अदा पर😍
और कठेड़े के भीतरी और नूरी रोंस --और रोंस के भीतरी तरफ जगमगाते मोहोल
चारों दिशा में 13-13 मोहोलो की अपार शोभा
बेशुमार रंगों से सुसज्जित मोहोल और एक और मनोहारी शोभा --चारों दिशा के ठीक मध्य का महल और चबूतरा के बीचो बीच का महल यह वही पेड़ हैं जो तरहती के खजाने के ताल से प्रगट हुए हैं | यही पाँच पेड़ पुखराज के आधार स्तंभ हैं
नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,मनोहारी मोहोल --आधार स्तम्भ कहे जाने वाले पेड़ पाँच भोम तक सीधा गये हैं और शेष मोहोल दो भोम तीसरी चाँदनी के आएँ हैं |अतन्त ऊँची भोमे --लंबाई ,चौड़ाई और ऊँचाई को कोई पारावार नहीं | नज़रों में बस मोहोलो की शोभा समा गयी | मोहोलो के किवाड़ ,उनके छज्जों की शोभा ---स्वर्णिम बादशाही शोभा से सजे द्वार --और सामने आते ही रूह के द्वार स्वतः ही खुल गये --भीतर की शोभा का क्या वर्णन हो ?
सुखसेज्या ,हिंडोलों ,साजो समान --सब रूह के लिए --मेहरों के सागर आज पिया आज इश्क के प्याले पर प्याले पीला रहे हैं |
नूर ही नूर ,मनोहारी हर दृश्य --रूह को अखंड सुखों की अनुभूति करा रहा हैं | मोहोलों में आईं सीढ़ियों से मोहोल की दो भोंम तीसरी चाँदनी पर रूह आती हैं |
अत्यंत ही प्यारी शोभा --खुली खुली सी शोभा और मोती की पुतलियाँ ने बैठक सज़ा दी | आइए इन धाम की अपनी बैठक पर विराजिए मेरे श्यामा जी श्याम |
धाम की प्यारी बुज़रक बैठक और यहाँ बैठकर एक नज़र में महबूब श्रीराज जी के संग पुखराज पहाड़ के दर्शन
वाह क्या नज़ारा हैं मेरे धाम का --अद्भुत ,अलौकिक ,अनुपम ,मनोहारी --सभी उपमाएँ फीकी ---रूह मेरी अपनी निज नज़र से और श्री राज जी के अपार मेहर से महसूस कर शोभा
हज़ार हांस के पुखराज पहाड़ के चबूतरे पर 44000 हज़ार कोस का भोंम भर ऊँचा चबूतरा और चबूतरा के किनारे आईं मोहोलों की चाँदनी पर खड़ी रूहें श्रीराज-श्यामा जी का संग --
यहाँ से श्रीराज जी ने रूहों को दिखाई शोभा आधार स्तंभ कहे जाने वाले पाँच पेड़ की --चारों दिशा के मध्य के पेड़ और चबूतरा के ठीक बीच में आया पेड़ --यह पाँच भोंम सीधा चले गये हैं --
रूह फेर फेर शोभा देखती हैं इन पेड़ो की --नूर ही नूर -अजब सी शोभा -जितना जितना रूह देख रही हैं शोभा बढ़ती हुई प्रतीत हो रही हैं | ऊपरा-ऊपर पाँच भोंम --भोम दर भोम छज्जा ,झरोखा और जगमगाते किवाड़--रूह को अपनी और खेंचते हुए
और पाँचवीं भोंम से बढ़ते छज्जा --पाँचो पेड़ो से पाँचवीं भोम से छज्जे बढ़ते हैं आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोल आते चले गये हैं --दिशा के पेड़ दिशा की और छज्जा निकालते हैं और दिशा के पेड़ मध्य के पेड़ की और भी छज्जे बढ़ा रहे हैं और रूह ने देखा कि मध्य का पेड़ भी दिशा के पेड़ो की और छज्जा बढ़ा रहा हैं और पूर्व का पेड़ बंगला की और छज्जे बढ़ाता हैं ,उत्तर और पश्चिम दिशा के पेड़ घाटियों की और छज्जे बढ़ाते रूहों को खुशहाल करते हैं
आगे आगे दहेलान -अति-सुंदर बैठक धाम की और पीछे पीछे मोहोल बनते जा रहे हैं --पाँचो पेड़ो का बढ़ता विस्तार --250 भोंम तक और 250 भोम में पाँचो पेड़ मेहराब बना कर चबूतरा पर एक छत देते हैं | इन छत तले आठ महेराबे
आठ महेराबों की शोभा रूहें फेर फेर देखती हैं
और एक प्यारी सी शोभा --250 भोंम में बंगला और दोनों घाटियों की तरफ भी आने जाने एक रास्ता हुआ हैं --दोनों और से छज्जे बढ़ कर आपस में मिलान कर पुल बनाते हैं --एक पुल --लंबा मनोहारी पुल बंगला की और आया है और दो पुल घाटियों की ओर आएँ हैं और इन पुलों के नीचे की ओर ठीक मध्य में महावन वृक्ष आने से एक एक पुल की शोभा दो महेराबों के समान प्रतीत हो रही हैं --
छः महेराबे यह हुई और आठ चबूतरा पर कुल 14 महेराबों की अलौकिक शोभा आईं हैं --
250 भोंम में एक और शोभा आईं हैं --पुखराज पहाड़ को घेर कर आईं महावन के वृक्षों की डालियां छतरिमंडल बना कर पहली हार अपनी मर्यादा उलंघ कर भीतर आती हैं और चौरस छत को गोलाई प्रदान करती हैं --और अब यहाँ से घेर कर गोलाई में छज्जे बढ़ते हैं --भोम दर भोम विस्तार और 1000 भोंम तक संपूर्ण विस्तार --नीचे आएँ हज़ार हांस चबूतरा पर हज़ार हांस चाँदनी आ जाती हैं |
रूहें फेर फेर इन अलौकिक शोभा को निरखती हैं --श्रीराज श्यामा जी के संग बढ़ते छज्जों में रमण करती हैं --हज़ार भोंम तक आईं दहेलाने और उनमें सजी बैठके --रूहें इनमें बैठ कर धाम धनी के संग हांस विलास करती हैं
श्री राज जी रूह के संग चौरस चबूतरा की किनार पर खड़े हैं और रूहों का खाविंद उनके श्री राज जी उनके लिए पशु पक्षियों को हुकम देते हैं मुज़रा करने के लिए
श्रीराज जी के दिल में आते ही बड़े बड़े पशु पक्षियों के झुंड के झुंड उपस्थित --उत्तर पश्चिम की लंबी घाटी के चबूतरा से आते हुए तो कुछ बंगला से आते --गिरती जल की धाराओं में से प्रगट होते --और हज़ार हांस पुखराज के चबूतरा पर आकर तरह तरह के करतब कर रिझाते हुए --बड़ी बड़ी छः महेराबो में बनी शोभा के नीचे --
और श्वेत हंसों का जुत्थ पास में आकर के कहे चलो --बढ़ते छज्जों से बनी उल्टी सीढ़ी के मफाक आए विस्तार की शोभा नज़दीक से देखाऊँ --उन के पंखों पर अस्वार होकर कभी 650 भोंम में आईं छज्जों की बैठक के सुख लिए तो कभी 999 भोंम ऊँची दहेलान में आईं बैठक पर बैठ सखियों को आवाज़ लगाई आ जाओ ना --यहाँ से नज़ारा देखों
फेर फेर शोभा दिखाई श्रीराज जी ने --हज़ार हांस चबूतरा --हज़ार रंगों में झिलमिलाता हुआ
मध्य चौरस चबूतरा पर पाँच पेड़ो का प्रकट होना --उनका पाँच भोंम तक सीधे जाकर छज्जा बढ़ाना--भोम दर भोम बढ़ता विस्तार फिर एक रूप हो गोलाई में घेर कर छज्जा बढ़ना
एक एक पेड़ बेशुमार शोभा लिए -नूर से लबरेज --फेर कर देखा तो मानो यह पाँच पेड़ श्री राज जी के नूर ,इश्क ,इलम ,जोश और मेहर के प्रतीक हैं | पल पल रूहों के लिए बढ़ती मेहर ,जोश ,इश्क ,इलम उन्हें श्रीराज जी की वाहिदत में ले जाता हैं
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