चले निज नज़र से रंगमहल की उत्तर दिशा में जहाँ पुखराज का चबूतरा स्वर्णिम आभा से झिलमिला रहा हैं | हज़ार हांस का चबूतरा गोलाई में घेर कर हज़ार हांस में सुशोभित हैं | घेर कर आएँ 1000 गुर्ज
गुर्जों की शोभा देखे --हर हांस में बदलती शोभा ..रंगों की अनोखी जुगति और हांस हांस में आएँ गुर्जों से चबूतरा को घेर कर आईं पुखराजी रोंस में उतरती सीढ़ियाँ
और चबूतरा के ठीक मध्य नज़र की तो 44000 कोस का एक भोंम ऊँचा चबूतरा --जिसकी चारों दिशा से सीढ़ियाँ इन चबूतरा पर उतरी हैं | शेष जगह कठेड़ा और देखी शोभा पाँच पेड़ ..पुखराज के आधार स्तम्भ पाँच पेड़ जिन पर पुखराज पहाड़ की शोभा का विस्तार हुआ हैं
पेड़ो के बढ़ते छज्जा ..आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोलाते आती चली गयीं हैं --251 भोंम में 44000 कोस के चबूतरा पर एक छत हो गयीं हैं अब यहाँ से गोलाई रूप में घेर कर छज्जा बढ़ता हुए देखा रूह ने
उल्टी सीढ़ी की शोभा --आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोलाते --बढ़ते बढ़ते हज़ार भोम ऊपर एक छत --
यह अलौकिक शोभा में झील रूह की नज़र ले चले बंगला जी की और
बंगला की और पाँव मुबारक धरे श्री राज जी की रूह ने ---पुखराज और बंगला को जोड़ता हुआ एक कुंड आया हैं --विशालता लिए कुंड और कुंड को घेर कर आईं पाल से बंगला जी जाने का एक रास्ता --
लेकिन मेरी रूह रुक तो सही --बंगला जी के चबूतरा जाने से पहले यह अद्भुत शोभा तो निरख --बंगलों और चहेबच्चों की जो पाँच भोंम शोभा आईं हैं अर्थात बडो वन और फिलपायों पर जो पाँच भोंम ऊँची छत आईं हैं उन छत से जल की धारा गर्जना करती हुई कुंड में गिर रही हैं
पुखराज के चबूतरा से बंगला जी के
चबूतरा जाना हैं तो दोनो को जोड़ता हुआ
कुंड और कुंड की अद्भुत शोभा - पाँच भोंम
ऊँची बंगलों और चहेबच्चों की चाँदनी से
मधुर गर्जना कर रूह को उल्लासित करता
गिरता नूरी जल
कुंड की पाल से रूह चली बंगला जी --हथेलियों में जल की बूँदों को समेटते हुए --आ पहुँची बंगला की चौरस चबूतरा पर --जिसके हर दिशा में 250 -250 गुर्ज सोहनी झलकार कर रहे हैं
पाँच हारे बडो वन --ऊँची अतन्त विशाल --एक ही भोंम पाँच भोंम ऊँची --शोभा देखते हुए रूह आगे बढ़ी --वृक्षों की शीतल ,सुगंधित और बेहद ही सुखदायी छाया
नीचे नरम नूरी फर्श ..नूरी पत्तियों ने उन पर बिखर कर मानो गिलम रच दी मेरी रूह के लिए --फूलों की पांखुड़ियाँ बीच गयी रूह के अभिनंदन के लिए --बड़ी ही अदा से बलखाती ,मदमाती चाल से चल रूह ने बडो वन पार किया आगे तो और भी सरस शोभा
रूह ने जैसे ही बडो वन किया वो खुद
को पाती हैं फिलपायों के दरम्यान --
नूरी शोभा --नूर से भरे फिलपाए --एक
एक फिलपाए को देखा तो अजब ही
शोभा लिए --उनके सिरों पर हाथी
,घौड़ो ,चीतो आदि के मुख और अर्श के चेतन इन मुखों से जल की धाराएँ निकल कर महेराब बना कर आगे आए बडो वन से गुजरते हुए भीतर आएँ बंगलो -चहेबच्चों में आई आड़ी -खड़ी नहरें जहाँ काट रही हैं उन जगह आएँ चहेबच्चों में जाकर मीठी गर्जना करता हुआ जल गिरता हैं --वो समाया क्या सुहाना समा हैं जब हम रूहें बडो वन में झूल रही हैं तब चारों और आएँ फिलपायों के सिरों पर आएँ बड़े बड़े अर्श के चेतन जानवरों के मुखों से जल के विशाल पूर निकल रहे हैं और हमारे ऊपर से गुजरते हुए चहेबच्चों में गिर रहे हैं --सुखदायी समय --अखंड सुखों में झीलती रूहें
फिलपायों के बाद पुनः बडो वन और बडो वन के भीतर --चबूतरा के ठीक मध्य आड़ी -खड़ी नहरों के मध्य आएँ भोंम भर ऊँचे चौक जिन पर क्रमशः एक बंगलों और एक चहेबच्चों की अद्भुत शोभा आईं हैं --और यहाँ ठीक सामने जब रूह बंगलों और चहेबच्चों के पार जाती हैं तो खुद को दहेलानों में महसूस करती हैं --सात दहेलान जिनमें चार नहेरे प्रवाहित हो रही हैं और तीन बैठके --तो रूह इन बैठकों में बैठ धाम धनी के संग किय हांस विलास याद कर ,इन पालों पर उनके साथ बैठना और नहरों की लहरों से खेलना तो कभी नौकायान --इन्हीं याद के माँहे श्रीराज जी से मिलन हैं मेरी रूह
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