प्रणाम जी
चितवन धाम दरवाजे तक
मेरी रूह ,मेरी सखी ,चल अपने घर
हद बेहद से परे परमधाम
और परमधाम के ठीक मध्य में स्थित भोम भर ऊँचा चबूतरा और
चबूतरा पर झलकार करता 2000 मंदिर का लंबा चौड़ा नौ भोंम दसवीं आकाशी का रंगमहल
हम रूहों का असल मुकाम
निज घर
रंगमहल की पूर्व दिशा में सात वन आएँ हैं जिनमें से तीन वन रंगमहल की दीवार से लगे हैं ..ठीक मध्य में अमृत वन
अमृत वन के तीसरे हिस्से में चाँदनी चौक की शोभा आई हैं
चाँदनी चौक में खुद को महसूस कर मेरी रूह
166 मंदिर का लंबा चौड़ा चौक जिनमें उज्ज्वल रेती मोती माणिक की तरह बिछी हैं --नरम रेती ,पिऊ की आशिक रेती जो रूह के आगमन और भी कोमल हो उठी
ठीक मध्य में 2 मंदिर की रोंस जो पात घाट से सीधी रंगमहल की सीढ़ियों की और ले जा रही हैं
इन रोंस की वजह से चाँदनी चौक दो हिस्सों में सुशोभित हो रहा हैं
रूह अपना मुख रंगमहल की और कर तो दाएँ हाथ को लाल वृक्ष ..आम का वृक्ष और
बाएँ हाथ को हरा वृक्ष -अशोक का वृक्ष
रूह चलती हैं दाईं हाथ -- लाल वृक्ष की शोभा को देखने ..
नरम रेती की पाँव घुटनो तक धँस र्हें ..पिऊ मिलन की उमंग में गीत गुनगुनाती पहुँचे -मध्य में रोंस से चाँदनी चौक की शोभा दो हिस्सों में दिखती हैं ..तो उन एक चौक की ठीक मध्य में --
--33 मंदिर के लंबे चौड़े चबूतरा की किनार पर जिस पर वृक्ष सुशोभित हैं ..चबूतरा की चारों दिशा से सीढ़ियाँ चाँदनी चौक की रेती में उतरी हैं और घेर कर कठेड़ा और चबूतरा के ठीक मध्य दो भोम तीसरी चाँदनी का वृक्ष --जिस दिशा में भी बैठने की इच्छा हुई वहीं सिंघासन कुर्सियाँ हाजिर --
चितवन धाम दरवाजे तक
मेरी रूह ,मेरी सखी ,चल अपने घर
हद बेहद से परे परमधाम
और परमधाम के ठीक मध्य में स्थित भोम भर ऊँचा चबूतरा और
चबूतरा पर झलकार करता 2000 मंदिर का लंबा चौड़ा नौ भोंम दसवीं आकाशी का रंगमहल
हम रूहों का असल मुकाम
निज घर
रंगमहल की पूर्व दिशा में सात वन आएँ हैं जिनमें से तीन वन रंगमहल की दीवार से लगे हैं ..ठीक मध्य में अमृत वन
अमृत वन के तीसरे हिस्से में चाँदनी चौक की शोभा आई हैं
चाँदनी चौक में खुद को महसूस कर मेरी रूह
166 मंदिर का लंबा चौड़ा चौक जिनमें उज्ज्वल रेती मोती माणिक की तरह बिछी हैं --नरम रेती ,पिऊ की आशिक रेती जो रूह के आगमन और भी कोमल हो उठी
ठीक मध्य में 2 मंदिर की रोंस जो पात घाट से सीधी रंगमहल की सीढ़ियों की और ले जा रही हैं
इन रोंस की वजह से चाँदनी चौक दो हिस्सों में सुशोभित हो रहा हैं
रूह अपना मुख रंगमहल की और कर तो दाएँ हाथ को लाल वृक्ष ..आम का वृक्ष और
बाएँ हाथ को हरा वृक्ष -अशोक का वृक्ष
रूह चलती हैं दाईं हाथ -- लाल वृक्ष की शोभा को देखने ..
नरम रेती की पाँव घुटनो तक धँस र्हें ..पिऊ मिलन की उमंग में गीत गुनगुनाती पहुँचे -मध्य में रोंस से चाँदनी चौक की शोभा दो हिस्सों में दिखती हैं ..तो उन एक चौक की ठीक मध्य में --
--33 मंदिर के लंबे चौड़े चबूतरा की किनार पर जिस पर वृक्ष सुशोभित हैं ..चबूतरा की चारों दिशा से सीढ़ियाँ चाँदनी चौक की रेती में उतरी हैं और घेर कर कठेड़ा और चबूतरा के ठीक मध्य दो भोम तीसरी चाँदनी का वृक्ष --जिस दिशा में भी बैठने की इच्छा हुई वहीं सिंघासन कुर्सियाँ हाजिर --
चाँदनी चौक की शोभा देखकर ठीक मध्य की रोंस पर आईं रूह और चली रंगमहल की और
यह रोंस उसे सीढ़ियों तक ले जा रही हैं
रूह सीढ़ियों तक आ पहुँची और सीढ़ियाँ चढ़ना शुरू करती हैं
चाँदनीचौक के पश्चिम दिशा से दो मन्दिर की जगह से सीढियां रंगमहल के चबूतरे पर चढ़ी है |शुरु मे 5 सीढी़ एक हाथ की ऊंची और चौड़ी आयी हैं | पाचवी सीढ़ी के साथ ही पाँच हाथ का चाँदा आया हैं फिर दसवी सीढ़ी के साथ चाँदा हैं ।सीढी़ और चाँदा एक ही लेवल मे आये हैं !
रूह बड़ी ही मोहक अदा से सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं ..सीढ़ियों पर कोमल गिलम --
सीढ़ियों के दोनों और आएँ कमर भर ऊचे कठेड़े ,उनमें आयी नक्कशकारी ,चित्रामन की शोभा --चेतन चित्रामन में आएँ पशु पक्षी भी गीत गुणगना उठे रूह के स्वागत में ..पुतलियों का नृत्य --मोरों का पंख फैलाना
सीढ़ियों की अद्भुत सुंदरता दिल में बसाते हुए रूह 100 सीढ़ी 20 नूरमयी चाँदे सहित पार कर दो मंदिर के लंबे चौड़े मन्दिर के चौक मे आई
धामधनी अपनी रूह को दो मन्दिर के चौक की शोभा
दिखा रहे है |हमाऱे धामधनी ने हमे 25 पक्षों की सुध परिक्रमा ग्रन्थ मे दी हैं |
इस चौक के चारों और हीरे के दो भोम के ऊँचे थम्भ अपनी नूरी आभा से जगमग़ा रहे हैं |इस चौक के दोनों दिशा में उत्तर – दक्षिण नूर से भरपूर चबूतरे अपनी और बुला रहे हैं कि य़हां आ कर चादनी चौक मे पशु पक्षियों की लीलाओं
का आनऩ्द लिजिए ।दूसरी भोम के झरोखे भी रुह को उलासित कर रहे हैं। पूर्व दिशा मे दो भोम का धामदरवाजा मानो कह रहा है कि आइए ‘आपका अपने वतन मे स्वागत हैं । दर्पण रंग के किवाड और लाल रगं की चौखट फिजाँ को महका रही हैं . रुह धामदरवाजे की शोभा देख रही है |दो भोम ऊंचे धामदरवाजे की शोभा बेमिसाल है |दर्पण रँग का द्वार शोभा ले रहा हैं जिसमें सामने बनों की झलकार होती हैं –लाल रंग की चौखट और हरे रंग के बेनी मे अदभुत नक्कशकारी आयी हैं -दूसरी भोम में आये झरोखे –दो द्वार –छः नूरी जालियां आपको बुला रही हैं –मेरी रुह , निजवतन मैं आपका स्वागत हैं |
रूह दो मंदिर के चौक मे खड़े होकर दस मंदिर के हांस की ,जो मुख्यद्वार के वास्ते आया हैं ,शोभा देख रही है | दो मंदिर का लंबा चौड़ा चौक और इस चौक के दाएँ बाएँ दो मंदिर के चौड़े ओर चार मंदिर के लंबे एक सीढ़ी ऊंचे चबूतरे आएं हैं | इन चबूतरों की पूर्व किनार पर हीरा ,माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के थम्ब आए हैं उनमें रत्नो जड़ित कठेड़े की शोभा हैं | पश्चिम में भी पाँच अकशी थम्भ शोभा ले रहे है | इन चबूतरों पर दूसरी भोंम मे झरोखे आए हैं —दो मंदिर के चौक के चारों दिशा में आएं हीरे के थम्ब दो भोंम के आएं हैं | चबूतरों पर नीचे गिलम हैं और ऊपर चंद्रमा की शोभा हैं | यहाँ बैठ कर धामधनी हक श्री राज जी हमे चाँदनी चौक मे पशु पक्षियों की लीला के दर्शन कराते हैं |
दो मंदिर के लम्बे चोड़े चौक में खड़ी हो कर आत्म देख रही हैं धाम द्वार की मनोहारी शोभा – दो भोंम ऊँचे धाम दरवाजे की पहली भोंम मे 88 हाथ का दर्पण का द्वार हैं | जिसके दाएँ बाएँ मणि रत्नो से जड़ित दिवाल हैं |एक हाथ ऊंची लाल रंग की चौखट है | हरे रंग की बेनी की अद्भुत शोभा देख रूह सुकून पाती है | नूरी दर्पण के द्वार पर 12 हाथ की छोटी मेहराब मनमोहक है | दर्पण रंग के किवाड़ मे सामने आए अमृत बन का प्रतिबिंब में रूह खो जाती हैं—अब आत्म की नज़र जाती हैं—दूसरी भोंम में–हीरे की बड़ी मेहराब में नो छोटी मेहराबें हैं—मध्य की मेहराब मे नूरी झरोखा —6 जालीद्वार —दो द्वारो की शोभा अनुपम आई है |
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