Wednesday, 13 January 2016

पुखराज की तरहती के दर्शन

हद बेहद से परे रूह चलती हैं परमधाम ---ठीक मध्य स्थित चबूतरे पर सुशोभित


रंगमहल की शोभा निरखती हैं --9 भोंम दसमी आकाशी का रंगमहल रूह को


बेहद खुशहाल करता हैं --पूर्व की और सात वनो की जोत तो दक्षिण में बटपीपल


चौकी की शोभा रूह देखती हैं और पश्चिम में फूलों की सुगंधी में सराबोर हो उत्तर


दिशा में रूह आई और देखती लाल चबूतरा और ताड़ वन


रंगमहल के चबूतरे के साथ साथ पश्चिम उत्तर कोने से पूर्व की 1200 मंदिर तक


धाम रोंस से लगता एक हांस चौड़ा चबूतरा उठा हैं ---जिसकी दक्षिण की और देखे


तो धाम रोंस आगे मंदिरों की दीवार --उत्तर की और चबूतरा की बाहिरी किनार


पर चान्दा से उतरती सीढ़ियाँ --शेष जगह रेलिंग ---और बडो वन की शोभा



जिनमें 41 की 41 हार वृक्ष आएँ हैं इन वृक्षों की एक ही भोंम में दस भोंम समाहित हैं इनकी चाँदनी ने रंगमहल की चाँदनी से मिलान किया हैं


रूह मेरी इन वृक्षों की हारे पार करती हैं आगे मधु वन--- और नज़र आती हैं

एक नहर जो सीधा उत्तर की और जा रही हैं --रूह नहर की पाल से आगे


बढ़ती हैं --मधु बन की शोभा देखते हुए पार किया महा वन भी पार किया



सामने पुखराजी रोंस --रणमहल से उत्तर दिशा में 4.5ओ लाख कोस की दूरी पर पुखराज पहाड़ की शोभा आई हैं


हज़ार हांस का गोल चबूतरा ---एक लाख कोस का लंबा चौड़ा ज़मीन से एक भोंम ऊँचा आया हैं --जिनके हांस हांस पर गुराज आए हैं इन गुरजो के दोनों और आई नूरी सीढ़ियाँ ..इनसे चबूतरा पर जाइए


और दो गुरजो के मध्य आया स्वर्णिम द्वार उनसे तरहती में सीढ़ियाँ उतरी हैं





रूह सीढ़ियाँ उतर रही हैं अत्यंत ही कोमल गिलम इन सीढ़ियाँ पर ...पांवानो म घुटनो तक धँस रहे हैं --नज़र घुमा कर रूह देखती आईं तो उसे हांस हांस से उतरती सीढ़ियाँ नज़र आईं ---ज्योति के अंबार ...तेज ही तेज

सीढ़ियाँ उतर कर रूह खुद को एक रोंस ---गोलाई में फिरती गली में महसूस करती हैं यह सीढ़ी वाली रोंस हैं



घेर कर गोलाई में हज़ार हांस में सीढ़ी वाली रोंस ---और रोंस के भीतरी तरफ प्रत्येक हांस से तीन तीन सीढ़ी उतरी हैं ---रूह सीढ़ी उतर कर एक और रोंस पर पहुँचती हैं इन रोंस के आगे बगिचा आए हैं तो यह रोंस बगीचा की रोंस कही जाती हैं --


रूह बगीचा की रोंस की शोभा देख रही हैं --रोंस पर अति सुंदर गिलम बिछी हैं सुंदर बैठके सजी हैं ---रूह इन बैठको पर विराजी और देखती हैं शोभा फेर फेर


रोंस से भीतरी और तीन सीढ़ी नीचे बगीचा आए हैं 52 हार


एक हार में गोलाई में घे कर 1000 बगीचा ऐसी 52 हार



चारों दिशा नहरे आई हैं जिनसे कुछ बगीचा कट गये हैं ---


एक बगीचा देखती हैं रूह


बगीचा के चारों दिशा में नहेरे


कोनों में उठते निर्मल जल के मोती सी बूँदीयाँ बिखरते चहेबच्चे


फूलों के वृक्ष --सुगंधी ही सुगंधी


कहीं लाल रंग में खिले वृक्ष तो कहीं श्वेत कहीं श्याम तो कहीं एक ही वृक्ष में बेशुमार रंग


बगीचा के मध्य में फिलपायो की शोभा --मानों थम्भ फूलों का खड़ा हो जो दो भोंम ऊँची तरहती की छत से जाकर मिल गया हैं


नहरों की पाल ने बगीचा की पाल से एक रूप मिलान किया हैं तो रूह बगीचा की रोंस से नहर की पाल पर आ जाती हैं और 52 हार बगीचों की शोभा देखते पार करती हैं --भीतरी और आईं बगीचा की रोंस से अब रूह तीन सीढ़ी चढ़ कर एक रोंस पर आती हैं --यह मोहोलातों की रोंस हैं


इन रोंस के आगे 53 हार मोहोलातों की आईं हैं


दो मोहोलो के बीच में दो थम्भ की हार तीन गलिया आईं हैं --


इन मध्य की गली से 53 हार मोहोलो को पार किया ---


एक मोहोल की शोभा भी रूह ने देखी


चारों दिशा में घेर कर मोहोल आएँ हैं ...चारों और मुख्यद्वार --भीतर एक थम्भ की हार दो गली और मध्य में चबूतरा ..

53 हार मोहोल पार कर पुनः भीतर की और आए मोहोलातो की रोंस पर खड़ी हैं -


रूह इन मोहोलातों की रोंस पर खड़ी हैं और देखती हैं भीतर की अद्भुत अलौकिक शोभा


तीन सीढ़ी नीचे ताल की पाल



ताल की पाल पर रूह आती हैं और देखती हैं यहाँ से नीचे ताल रोंस


ताल रोंस पर आईं रूह ---तो देखा यहाँ हाथ लगता जल --खजाने का ताल


बेशुमार जल राशि


चारों दिशा से आती नहरों के ठीक सामने ताल में चार मोहोल और एक मोहोल बीच में --


यही पाँच पेड़ हैं जिन पर पुखराजी पहाड़ का विस्तार हैं


यह पेड़ मोहोलातो की भाँति ही सुशोभित हैं



मोहोल को घेर कर रोंस फिरी हैं


मध्य के मोहोल में एक और शोभा आईं हैं --यहा रोंस के भीतरी और मोहोलाती की एक हार आईं इन मोहोलो के भीतरी दीवार के आगे जल का स्तून हैं जिनसे जल अकाशी मोहोल की चाँदनी पर जाता हैं और वहीं जल खुलता हैं याने प्रगट होता हैं


मोहोल की भीतरी तरफ दीवार ---इन दीवार के भीतर जल


तरहती की दो भोंम आईं हैं


एक परमधाम की ज़मीन के नीचे और एक ऊपर

इन शोभा को रूह फेर फेर निरखती हैं





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