Friday, 19 February 2016

PHULBAG KI ADBHUT SHOBHA


प्रणाम जी

मेरी सखी चले ,रंगमहल के पश्चिम दिशा में आएँ मंदिरों में

मंदिर में आए और देख रहे हैं शोभा --मंदिर की उत्तर ,पूर्व और दक्षिण की नूरमयी दिवाले

एक बड़ी नक्काशी युक्त मेहेराब और महेराब के कोने और दोनों और आएँ नूरी माणिक के फूल लालिमा बिखेरते और फिर देखी उन एक बड़ी महेराब में तीन महेराब...देख मेरी सखी -मध्य की महेराब में रत्नों से जडित अति सुंदर द्वार और दाएँ बाएँ की महेराब में मनोहारी चित्रामन ,चेतनता लिए

मंदिर में सुख सुविधा के सारे साजो समान

सिनगार की सामग्री ,हिंडोलें ,सुंदर आरामदायक बैठके

और अब नज़र करी तो पश्चिम की दीवार नज़र आईं

अद्भुत शोभा

एक बड़ी महेराब में नौ महेराब ,अति सुंदर जाली द्वार और दो द्वारों की शोभा ,फूलों की सुगंधी की ल़हेरे

नौ महेराबों के ठीक मध्य एक छोटा प्यारी सी शोभा लिए द्वार

कदम खुद से बढ़ गये द्वार की और

द्वार स्वतः की खुल गया और

महसूस किया एक स्नेहिल स्पर्श जो मेरा हाथ थम के मुझे अपनी और खींच रहा हैं

मैं बस खींची चली जा रही हूँ

गोलाई में आईं सीढ़ियाँ ...22 सीढ़ियाँ पार की तो सामने पुनः एक द्वार

द्वार पार करते ही खुद को एक मनोहारी शोभा से युक्त झरोखे में महसूस किया ,फूलों की अद्भुत शोभा ,झरोखा मानो फुलो से निर्मित हो और सामने प्रीतम मुस्कराते हुए ,उनकी मोहनी छब ,मस्ती से भरे नयन ,नयनों की मस्तियाँ

प्रीतम ने दिखाई धाम की अद्भुत प्यारी सी शोभा ,उनकी नज़रों में सब समाया

कभी उनके साथ झरोखों में बैठे महसूस किया

तो कभी धाम रोंस पर

तो कभी हाथों में हाथ थामे धाम रोंस से लगती पहली नहर

जहाँ मध्य में नहर में अद्भुत शोभा आईं हैं ,3000 चहेबच्चे और उनसे उठते ऊँचे जल के फव्वारे ...जो कभी दीवार रूप में दिखे तो कभी फूलों की तरह उठते हुए

और देख मेरी लाड़ली सखी , धाम का चेतन चहेबच्चा ने कुछ यूँ  जल उछाला कि जल की बूँदीयाँ हथेली में आते ही फूलों का गुलदस्ता बन गयी ,ऐसा कि नजरे उन से हटे ही ही नही ,फूल की हर पंखुड़ी में पिऊ का अक्स नज़र आया

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