Tuesday, 23 February 2016

बंगला के चबूतरा पर वृक्षों की छाँव तले रमण के सुख




प्रणाम जी
नज़रे बंद दूनी की और अंतरदृष्टि धाम मे
बंगला के चबूतरा पर वृक्षों की छाँव तले रमण के सुख
लेती हम सखियाँ
नीचे बिछी फूलों की कोमल पांखुड़ियाँ --एक नरम
पशमी गिलम से अधिक कोमलता का अहसास कराती
और चेतन वृक्षों की सुगंधी की ल़हेरें भिगोटी हुई
वृक्षों के दरम्यान बने सुंदर चौक और
वृक्षों की डालियों ने जहाँ महेराब बना कर मिलान किया
हैं वहाँ हिंडोला
वृक्षों की पाँच हारे पार की
फिलपाए --मानों नूर के थम्भ अपने संपूर्ण शोभा के
साथ खड़े हैं हाथ बाँध रूह के अभिनंदन के लिए
नूर ही नूर ,इन नूर में प्रकाश हैं जोत हैं सुगंधी हैं
कोमलता हैं चेतनता हैं धाम का इश्क समाया हैं एक
शब्द में पिऊ का लाड़ हैं यह नूर
फिलपायो के मुखों से निकलते जल के पूर
निर्मल जल की धाराएं
महेराब बना कर
आगे आईं वृक्षों की हारों को पार कर भीतर आएँ
चहेबच्चों में यह जल गिरता हैं
गिरते जल की मधुर प्रतिध्वनि
प्रिय लगने वाली स्वर लहरी
वृक्षों की महेराबो में से होकर आता यह जल उनके रंगों की झलकार से झलकार करता हुआ
जल के अथाह पूर
ऐसा झरना जो घौड़ो ,हाथी तो कहीं चीता के
मुख से प्रगट हो
बड़ी अदा से कला का प्रदर्शन करता हुआ
महेराब बना कर
भीतर बंगलों और चहेबच्चा को घेर कर आईं
नहरों के
दरम्यान बने चहेबच्चों में जब गिरता हैं तो
इसकी मधुर
ध्वनि ,इनकी जल की बूँदीयाँ सभी को श्रीराज
जी के इश्क में
भिगोती हैं
और जब इन बंगलों और चहेबच्चों के नज़दीक आईं वृक्षों की महेराबो में आएँ हिंडोलों में झूले तो वो सुख
हिंडोलों में बैठने का दिल में ले तो सामने मेरे प्रियतम ,मेरे धाम धनी श्री राज जी
मुस्कराते हुए
मंद मंद
नयनों से इशारा चल मेरी सखी झूला झूले
उनके साथ बड़ी ही अदा से दुलहन सी शरमाती हिंडोलो में विराजमान हुई
हिंडोलों का चलना
साथ में प्रियतम का साथ ,उनका स्नेहिल स्पर्श
ऊपर से जल के प्रवाह का गुज़रना
तो वो जल भी कैसे पीछे रहे ..पिऊ मिलन की चाहत में वो भी बूँदीयाँ बन प्रीतम से लिपट गया
और प्रीतम लेकर के चले एक और अद्भुत शोभा में
ऐसे शोभा जो मेरी सखी तुमने कभी नहीं देखी
बंगला के पूर्व में
आईं दहेलानों में लेकर के आए मेरे धाम दूल्हा
उत्तर से दक्षिण आठ थम्भो की हार
पूर्व से पश्चिम 14 थम्भो की हार
वृक्षों की फिलपायो की शोभा
दिखा धाम धनी अब दिखा
रहे हैं दहेलान की शोभा
यह दहलान अधबीच के कुंड
मे पश्चिम मे आई दहलान से
मिलान किए है ! इस दहलान
मे चौड़ाई तरफ 8 और लंबाई
तरफ 14 थम्ब आने से
दहलान मे 4 नहरो ओर तीन
बैठक की शोभा आईं हैं
आठ थम्भो में आई सुंदर
सात महेराब
चार में नहर
तीन में मनोहारी बैठक
वो समया जब धाम के दूल्हा संग नहर के किनारे आई इन नहरों में रमण करे --बेहद ही सुखदायी हैं | जल में मस्ती करना तो कभी बैठको में बैठ रमणीय नज़ारों के आनंद लेना
हज़ार भोंम तक ऐसे ही शोभा दहेलान की
अत्यंत विशाल शोभा
''''''''''''''''''''मेरे श्री राज जी आज तो रूह की इच्छा हैं कि इन दहेलानो में रमण करूँ कभी नहरों में सुंदर नाव में बैठ लहरों के सुख लूँ |

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