परिक्रमा नजीक अर्श की
बेवरा अगली भोम का, मेहेराब और झरोखे ।
खूबी क्यों कहूं दिवाल की, सोभा लेत इत ए ।। १ ।।
साथ जी ,पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के आवेश से अवतरित यह वाणी दिव्य भूमि परमधाम की पहचान कराती हैं ,उन दिव्य भूमि में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी ब्रह्म प्रियाओं के साथ कैसे लीला करते हैं उनका दिव्य वर्णन तारतम वाणी में ब्रह्म सृष्टियों के वास्ते बार बार हुआ हैं ।
परिक्रमा ग्रन्थ के प्रकरण ३४ वें "परिक्रमा नजीक अर्श की " के बेशक इलम से ब्रह्मसृष्टियों को आह्वान कर रहे हैं कि हे मेरे धाम कि ब्रह्म प्रियाओं ,यह दिव्य भूमि ,परमधाम आपका निजघर हैं ।परमधाम क्र ठीक मध्य भोम भर ऊंचे चबूतरे पर श्री रंगमहल स्थित हैं ।इसी रंगमहल में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी अंगनाओं (ब्रह्म सृष्टियों )के संग निवास करते हैं ।अक्षरातीत के मोहोल ,इन रंगमहल में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी ब्रह्म प्रियाओं के साथ कैसे प्रेममयी लीलाएं करते हैं इनकी सुध अक्षर को भी आज दिन तक नहीं थी ।यह हमारा धन भाग्य हैं कि हमारी उनसे अखंड निस्बत हैं जो यह सुख हमें सहेजे मिल रहा हैं ।
तो परमधाम की सखियों ,अपनी निज नजर को परमधाम की और मोड़े और बेशक इलम के प्रकाश में श्री रंगमहल की परिक्रमा करे
श्री रंगमहल की शोभा को देखिए --रंगमहल को घेर कर ६००० नूरी मंदिर आएं हैं जिनकी बाहिरी दीवार की शोभा अति मनोहारी हैं ।मंदिरों की बाहिरी दीवार पर मनोरम शोभा से युक्त मेहराबी द्वार और झरोखे की शोभा आयीं हैं ।अनंतानंत शोभा से युक्त इन नूरमयी दीवार की शोभा को परमधाम की ब्रह्म सृष्टियाँ चितवन ,ध्यान के माध्यम से ही महसूस करती हैं ।
गृदवाए मेहेराब झरोखे, फेर देखिए तरफ चार ।
इन मुख खूबी तो कहूं, जो होवे कहूं सुमार ।। २।।
श्री रंगमहल की बाहिरी दीवार पर आयें नूरमयी मेहराब ,झरोखे अत्यंत ही मनोहारी अद्भुत नक्काशी से जड़े हैं ।जवराहातो की रंगबिरंगी ज्योति ,उनसे निकलने वाली नूरी तरंगे, रंगमहल की चारों और की अलौकिक हैं ।श्री महामति जी कहते हैं की श्री रंगमहल की इन खूबी का वर्णन तो तब करूँ जब उसकी कोई उपमा हो ।दिव्य परमधाम के दिव्य ध्यान से ही शोभा महसूस की जा सकती हैं ।
दोऊ तरफ बडे द्वार के, ए जो हांसें कही पचास ।
सामी चौक चांदनी, क्यों कहूं खूबी खास ।। ६।।
श्री रंगमहल की पूर्व दिशा में मुख्य द्वार की शोभा कहीं हैं जिसे धाम दरवाजा भी कहते हैं ।धाम दरवाजा बादशाही दरवाजों से कोट गुनी शोभा से युक्त हैं ।नूरमयी दर्पण का दरवाजा जिसमें अर्श के वनों की अद्भुत झलकार पढ़ रही हैं ,हरे रंग की सुंदर बेनी की शोभा आयीं हैं और सेंदुरिया रंग की चौखट ..नूरी चौखट ।धाम दरवाजे की शोभा और भी बढ़ जाती हैं जब ब्रह्म सृष्टियों की निज नजर में धाम दरवाजे के दोनों और आयें चबूतरों की अलौकिक शोभा बस जाती हैं ।नूरी धाम दरवाजा के दोनों और श्री रंगमहल को घेर कर पचास हांसें आयीं हैं ।धाम दरवाजे के सामने चांदनी चौक की शोभा आयीं हैं ।चांदनी चौक की उज्जवल झलकार आसमान को छू रही हैं ।चांदनी चौक में आयें चबूतरों की अपार शोभा हैं और उन पर मोहोल माफक आयें लाल हरे वृक्षों की शोभा तो वर्णन से परे हैं ।
दोए भोम कही जो बन की, खिडकी मोहोल तिन बन ।
भोम दूजी मोहोल झरोखे, इत बसत पसु पंखियन ।। १०।।
रंगमहल की पूर्व दिशा में आत्मिक नजर से परिक्रमा कीजिए दिव्य धाम की ब्रह्म सृष्टियों । पूर्व दिशा में सात वनों की बेहद ही प्यारी शोभा आयी हैं ।केल ,लिबोई ,अनार ,अमृत ,जाम्बु ,नारंगी और वट ये सात वन अपार शोभा से युक्त हैं ।अनार ,अमृत ,जाम्बु वन की डालियाँ श्री रंगमहल से मिलान करती हैं । पहली भोम की डालियाँ झरोखों से जा मिली हैं और दूजी भोम की डालियों ने दूजी भोम के छज्जों से एक रूप मिलान किया हैं --इन नूरी वनों में पशु पक्षी निवास करते हैं जो पल पल अक्षरातीत ,पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का गुणगान करते हैं
उतर झरोखों से जाइए, दूजी भोम बन माहें ।
बन सोभे पसु पंखियों, कै हक जस गावें जुबांए ।। ११ ।।
चल जाइए सातों घाट लग, खूबी देख होइए खुसाल ।
कै विध हक जिकर करें, पसू पंखी अपने हाल ।। १२।।
तो आइये ,ब्रह्मसृष्टियों को आह्वान ,श्री रंगमहल के मंदिरों में चले आइये और झरोखों से उतर कर वनों की दूसरी भोम में जाइये
।वनों की दूजी भोम की शोभा देखिए --नीचे फूलों की गिलम और ऊपर भी फूलों का नूरी चंदवा --और इन वन मोहोलातो में निवास करते पशु पक्षी देखिए जो हर पल धनी के गुणगान में रहते हैं ।
यहाँ से चलिए श्री जमुना जी के किनारे आयें सातों घाटों में --और वहां की खूबी देख देख ब्रह्म सृष्टियाँ खुशहाल होती हैं ।नूरी पशु पक्षी कई विध से प्रीतम अक्षरातीत का जिक्र करते हैं
इसक जुबां बानी गावहीं, खूब सोभित अति नैन ।
मगन होत हक सिफत में, मुख मीठी बानी बैन ।। १३/३४परिक्र्मा
श्री रंगमहल की पूर्व दिशा में आएं सात वनों में जमुना जी के तट पर आएं घाटों में पशु पक्षी निवास करते हैं जो आठो जाम चौसठ घडी प्रियतम अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के गुणगान में रहते हैं --
देखिए तो इन नूरमयी पशु पक्षियों को प्रेम जो येन अपनी मीठी रसना से व्यक्त करते हैं ,उनके नयन अत्यंत ही सुन्दर हैं जिनमें प्रियतम की छबि बसी हुई हैं --अपनी मुख से मीठे स्वर निकाल प्रियतम के यश का गुणगान करते हैं और उनके इश्क में मगन रहते हैं --
किन विध कहूं पसू पंखियों, परों पर चित्रामन ।
मुख बोलें हक के हालमें, तिन अंबर भरे रोसन ।। १४
अर्शे अजीम दिव्य परमधाम के नूरमयी पशु पक्षियों का जिक्र हो रहा हैं ,जो पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के ह्रदय का व्यक्त स्वरूप हैं तो ऐसे सिफ़त रखने वाले पशु पक्षियों की शोभा का वर्णन किन मुख से हो ?इनके नूरी परों पर अद्भुत चित्रामन हैं जिनकी शोभा की नूरी जोत आसमान तक झलकती है।यह सभी अपनी जुबान से हक़ श्री राज जी ,पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के गुणगान करते हैं उन्हीं में आराम पाते हैं
जैसी सोभा पसू पंखियों, सोभा तैसी भोम बीच बन ।
सो सोभा मीठी हक जिकर, यों हाल खुसाल रात दिन ।। १५
दिव्य भूमि परमधाम के दिव्य पशु पक्षियों की जैसे अलौकिक शोभा हैं ठीक वैसे ही वहां की दिव्य भूमि हैं वहां के नूरमयी ,चेतन वन हैं ।इन्ही वनों मे पशु पक्षी रात-दिन खुश रहकर मीठी रसना से ज़िक्र -ए -सुभान करते हैं !
सोभा जाए ना कही बन पंखियों, और जिकर करत हैं जे ।
तो हक हादी रूहें मिलावा, कहूं किन विध सोभा ए ।। १६
परमधाम के नूरमयी पक्षियों वहां के पशुओं की शोभा का वर्णन इन जुबान से नहीं हो सकता जो सदैव पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का जिक्र करते हैं --तुहि तुहि ,पिऊ पिऊ की गूंज से वन गुंजायमान रहते हैं तो अक्षरातीत युगल स्वरूप श्री राज श्याम जी और ब्रह्म सृष्टियों की शोभा ,उनकी सिफ़त का वर्णन किन मुख से हो ?
बार बार हर चौपाई में चितवन की और प्रेरित किया जा रहा हैं ,कि हे ब्रह्म प्रियाओं ,इन ब्रह्म वाणी की अलौकिक तेजोमयी प्रकाश में ही आप दिव्य भूमि अपने निजघर की शोभा ,वहां की लीला को ध्यान ,चितवन से महसूस कर सकते हैं
इतथें चलके जाइए, ऊपर दोऊ पुलन ।
ए खूबी मैं क्यों कहूं, जो नूर जमाल मोहोलन ।। १૭ ।
सातों घाटों की शोभा ,उनमें रहने वाली पशु पक्षियों की लीला देख अब चले जमुना जी --जमुना जी पर आएं दोनों पुलों की शोभा को धाम ह्रदय में दृढ करें --जमुना जी पर सुशोभित दोनों पुल ,केल पुल और बट का पुल ,अक्षरातीत नूरजमाल के नूर से हैं ,अक्षरातीत के मोहोल हैं ,जल पर बने पांच भोम छठी चांदनी के अत्यंत ही मनोहारी इन पुलों की शोभा का वर्णन कैसे हो ?
सात घाट कहे बीच में, माहें पसू पंखी खेलत ।
तलें भोम या ऊपर, बन में केल करत ।। १८/३४ परिक्रमा
श्री जमुना जी पर चले आइये --यहाँ नूरी पुलों की शोभा आयीं हैं --इन दोनों पुलों के बीच में सात घाटों की शोभा आयीं हैं जिनमें श्री राज जी के आशिक पशु पक्षी कई प्रकार के खेल खेलते हैं --रेती में खेल हो या वनों की ऊपरी भौमों ..सदैव हक़ के जिक्र में पशु पाखी प्रेममयी क्रीड़ाओं में खुशहाल रहते हैं
मोरो की सुंदरता और जब वह नृत्य करते हैं
पशुओं का स्नेह
बेवरा अगली भोम का, मेहेराब और झरोखे ।
खूबी क्यों कहूं दिवाल की, सोभा लेत इत ए ।। १ ।।
साथ जी ,पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के आवेश से अवतरित यह वाणी दिव्य भूमि परमधाम की पहचान कराती हैं ,उन दिव्य भूमि में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी ब्रह्म प्रियाओं के साथ कैसे लीला करते हैं उनका दिव्य वर्णन तारतम वाणी में ब्रह्म सृष्टियों के वास्ते बार बार हुआ हैं ।
परिक्रमा ग्रन्थ के प्रकरण ३४ वें "परिक्रमा नजीक अर्श की " के बेशक इलम से ब्रह्मसृष्टियों को आह्वान कर रहे हैं कि हे मेरे धाम कि ब्रह्म प्रियाओं ,यह दिव्य भूमि ,परमधाम आपका निजघर हैं ।परमधाम क्र ठीक मध्य भोम भर ऊंचे चबूतरे पर श्री रंगमहल स्थित हैं ।इसी रंगमहल में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी अंगनाओं (ब्रह्म सृष्टियों )के संग निवास करते हैं ।अक्षरातीत के मोहोल ,इन रंगमहल में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी ब्रह्म प्रियाओं के साथ कैसे प्रेममयी लीलाएं करते हैं इनकी सुध अक्षर को भी आज दिन तक नहीं थी ।यह हमारा धन भाग्य हैं कि हमारी उनसे अखंड निस्बत हैं जो यह सुख हमें सहेजे मिल रहा हैं ।
तो परमधाम की सखियों ,अपनी निज नजर को परमधाम की और मोड़े और बेशक इलम के प्रकाश में श्री रंगमहल की परिक्रमा करे
श्री रंगमहल की शोभा को देखिए --रंगमहल को घेर कर ६००० नूरी मंदिर आएं हैं जिनकी बाहिरी दीवार की शोभा अति मनोहारी हैं ।मंदिरों की बाहिरी दीवार पर मनोरम शोभा से युक्त मेहराबी द्वार और झरोखे की शोभा आयीं हैं ।अनंतानंत शोभा से युक्त इन नूरमयी दीवार की शोभा को परमधाम की ब्रह्म सृष्टियाँ चितवन ,ध्यान के माध्यम से ही महसूस करती हैं ।
गृदवाए मेहेराब झरोखे, फेर देखिए तरफ चार ।
इन मुख खूबी तो कहूं, जो होवे कहूं सुमार ।। २।।
श्री रंगमहल की बाहिरी दीवार पर आयें नूरमयी मेहराब ,झरोखे अत्यंत ही मनोहारी अद्भुत नक्काशी से जड़े हैं ।जवराहातो की रंगबिरंगी ज्योति ,उनसे निकलने वाली नूरी तरंगे, रंगमहल की चारों और की अलौकिक हैं ।श्री महामति जी कहते हैं की श्री रंगमहल की इन खूबी का वर्णन तो तब करूँ जब उसकी कोई उपमा हो ।दिव्य परमधाम के दिव्य ध्यान से ही शोभा महसूस की जा सकती हैं ।
दोऊ तरफ बडे द्वार के, ए जो हांसें कही पचास ।
सामी चौक चांदनी, क्यों कहूं खूबी खास ।। ६।।
श्री रंगमहल की पूर्व दिशा में मुख्य द्वार की शोभा कहीं हैं जिसे धाम दरवाजा भी कहते हैं ।धाम दरवाजा बादशाही दरवाजों से कोट गुनी शोभा से युक्त हैं ।नूरमयी दर्पण का दरवाजा जिसमें अर्श के वनों की अद्भुत झलकार पढ़ रही हैं ,हरे रंग की सुंदर बेनी की शोभा आयीं हैं और सेंदुरिया रंग की चौखट ..नूरी चौखट ।धाम दरवाजे की शोभा और भी बढ़ जाती हैं जब ब्रह्म सृष्टियों की निज नजर में धाम दरवाजे के दोनों और आयें चबूतरों की अलौकिक शोभा बस जाती हैं ।नूरी धाम दरवाजा के दोनों और श्री रंगमहल को घेर कर पचास हांसें आयीं हैं ।धाम दरवाजे के सामने चांदनी चौक की शोभा आयीं हैं ।चांदनी चौक की उज्जवल झलकार आसमान को छू रही हैं ।चांदनी चौक में आयें चबूतरों की अपार शोभा हैं और उन पर मोहोल माफक आयें लाल हरे वृक्षों की शोभा तो वर्णन से परे हैं ।
दोए भोम कही जो बन की, खिडकी मोहोल तिन बन ।
भोम दूजी मोहोल झरोखे, इत बसत पसु पंखियन ।। १०।।
रंगमहल की पूर्व दिशा में आत्मिक नजर से परिक्रमा कीजिए दिव्य धाम की ब्रह्म सृष्टियों । पूर्व दिशा में सात वनों की बेहद ही प्यारी शोभा आयी हैं ।केल ,लिबोई ,अनार ,अमृत ,जाम्बु ,नारंगी और वट ये सात वन अपार शोभा से युक्त हैं ।अनार ,अमृत ,जाम्बु वन की डालियाँ श्री रंगमहल से मिलान करती हैं । पहली भोम की डालियाँ झरोखों से जा मिली हैं और दूजी भोम की डालियों ने दूजी भोम के छज्जों से एक रूप मिलान किया हैं --इन नूरी वनों में पशु पक्षी निवास करते हैं जो पल पल अक्षरातीत ,पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का गुणगान करते हैं
उतर झरोखों से जाइए, दूजी भोम बन माहें ।
बन सोभे पसु पंखियों, कै हक जस गावें जुबांए ।। ११ ।।
चल जाइए सातों घाट लग, खूबी देख होइए खुसाल ।
कै विध हक जिकर करें, पसू पंखी अपने हाल ।। १२।।
तो आइये ,ब्रह्मसृष्टियों को आह्वान ,श्री रंगमहल के मंदिरों में चले आइये और झरोखों से उतर कर वनों की दूसरी भोम में जाइये
।वनों की दूजी भोम की शोभा देखिए --नीचे फूलों की गिलम और ऊपर भी फूलों का नूरी चंदवा --और इन वन मोहोलातो में निवास करते पशु पक्षी देखिए जो हर पल धनी के गुणगान में रहते हैं ।
यहाँ से चलिए श्री जमुना जी के किनारे आयें सातों घाटों में --और वहां की खूबी देख देख ब्रह्म सृष्टियाँ खुशहाल होती हैं ।नूरी पशु पक्षी कई विध से प्रीतम अक्षरातीत का जिक्र करते हैं
इसक जुबां बानी गावहीं, खूब सोभित अति नैन ।
मगन होत हक सिफत में, मुख मीठी बानी बैन ।। १३/३४परिक्र्मा
श्री रंगमहल की पूर्व दिशा में आएं सात वनों में जमुना जी के तट पर आएं घाटों में पशु पक्षी निवास करते हैं जो आठो जाम चौसठ घडी प्रियतम अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के गुणगान में रहते हैं --
देखिए तो इन नूरमयी पशु पक्षियों को प्रेम जो येन अपनी मीठी रसना से व्यक्त करते हैं ,उनके नयन अत्यंत ही सुन्दर हैं जिनमें प्रियतम की छबि बसी हुई हैं --अपनी मुख से मीठे स्वर निकाल प्रियतम के यश का गुणगान करते हैं और उनके इश्क में मगन रहते हैं --
किन विध कहूं पसू पंखियों, परों पर चित्रामन ।
मुख बोलें हक के हालमें, तिन अंबर भरे रोसन ।। १४
अर्शे अजीम दिव्य परमधाम के नूरमयी पशु पक्षियों का जिक्र हो रहा हैं ,जो पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के ह्रदय का व्यक्त स्वरूप हैं तो ऐसे सिफ़त रखने वाले पशु पक्षियों की शोभा का वर्णन किन मुख से हो ?इनके नूरी परों पर अद्भुत चित्रामन हैं जिनकी शोभा की नूरी जोत आसमान तक झलकती है।यह सभी अपनी जुबान से हक़ श्री राज जी ,पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के गुणगान करते हैं उन्हीं में आराम पाते हैं
जैसी सोभा पसू पंखियों, सोभा तैसी भोम बीच बन ।
सो सोभा मीठी हक जिकर, यों हाल खुसाल रात दिन ।। १५
दिव्य भूमि परमधाम के दिव्य पशु पक्षियों की जैसे अलौकिक शोभा हैं ठीक वैसे ही वहां की दिव्य भूमि हैं वहां के नूरमयी ,चेतन वन हैं ।इन्ही वनों मे पशु पक्षी रात-दिन खुश रहकर मीठी रसना से ज़िक्र -ए -सुभान करते हैं !
सोभा जाए ना कही बन पंखियों, और जिकर करत हैं जे ।
तो हक हादी रूहें मिलावा, कहूं किन विध सोभा ए ।। १६
परमधाम के नूरमयी पक्षियों वहां के पशुओं की शोभा का वर्णन इन जुबान से नहीं हो सकता जो सदैव पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का जिक्र करते हैं --तुहि तुहि ,पिऊ पिऊ की गूंज से वन गुंजायमान रहते हैं तो अक्षरातीत युगल स्वरूप श्री राज श्याम जी और ब्रह्म सृष्टियों की शोभा ,उनकी सिफ़त का वर्णन किन मुख से हो ?
बार बार हर चौपाई में चितवन की और प्रेरित किया जा रहा हैं ,कि हे ब्रह्म प्रियाओं ,इन ब्रह्म वाणी की अलौकिक तेजोमयी प्रकाश में ही आप दिव्य भूमि अपने निजघर की शोभा ,वहां की लीला को ध्यान ,चितवन से महसूस कर सकते हैं
इतथें चलके जाइए, ऊपर दोऊ पुलन ।
ए खूबी मैं क्यों कहूं, जो नूर जमाल मोहोलन ।। १૭ ।
सातों घाटों की शोभा ,उनमें रहने वाली पशु पक्षियों की लीला देख अब चले जमुना जी --जमुना जी पर आएं दोनों पुलों की शोभा को धाम ह्रदय में दृढ करें --जमुना जी पर सुशोभित दोनों पुल ,केल पुल और बट का पुल ,अक्षरातीत नूरजमाल के नूर से हैं ,अक्षरातीत के मोहोल हैं ,जल पर बने पांच भोम छठी चांदनी के अत्यंत ही मनोहारी इन पुलों की शोभा का वर्णन कैसे हो ?
सात घाट कहे बीच में, माहें पसू पंखी खेलत ।
तलें भोम या ऊपर, बन में केल करत ।। १८/३४ परिक्रमा
श्री जमुना जी पर चले आइये --यहाँ नूरी पुलों की शोभा आयीं हैं --इन दोनों पुलों के बीच में सात घाटों की शोभा आयीं हैं जिनमें श्री राज जी के आशिक पशु पक्षी कई प्रकार के खेल खेलते हैं --रेती में खेल हो या वनों की ऊपरी भौमों ..सदैव हक़ के जिक्र में पशु पाखी प्रेममयी क्रीड़ाओं में खुशहाल रहते हैं
मोरो की सुंदरता और जब वह नृत्य करते हैं
पशुओं का स्नेह
रेती में मस्त हो दौड़ना और नूर की बरखा
यह सब उदाहरण इन नासूत जमीं के हैं तो विचारे ..यहाँ के पशु पक्षी इतने मनोहारी लग सकते हैं तो दिव्य भूमि परमधाम के घाटों में रमण करने वाले ,क्रीड़ा करने वाले अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के आशिक पशु पक्षी कैसे होंगे ?
केल लिबोई अनार, बांई तरफ खूबी देत ।
जांबू नारंगी बट दांहिने, नूर सनमुख सोभा लेत ।। १९
अब दिखा रहे हैं कि कौन कौन से घाट हैं जो यहाँ खूबी लेते हैं जिनमें पशु पक्षी परमात्मा के जिक्र में आराम पाते हैं
रंगमहल के मुख्य द्वार के बाईं ओर केल, लिबोई और अनार के घाट आएं हैं और दाईं तरफ जांबू ,नारंगी और बट के घाट सुशोभित हैं --ऐसे ही घाट अक्षर धाम की तरफ भी शोभा देते हैं--इन नूरमयी घाटों कि शोभा देखे --जो नित नवीन हैं ,जहाँ पल पल में और भी सरस होती शोभा हैं --जहाँ कभी कोई कमी नहीं आती तो साथ दिव्य परमधाम के दिव्य घाटों कि शोभा को दिल में धारण करें
दोए पुल सात घाट बीच में, पाट घाट विराजत ।
बीच दोऊ दरबार के, बन अंबर जोत धरत ।। २०
श्री जमुना जी पर केल पल और बट पुल की अपार शोभा आयीं हैं ..अक्षरातीत परमात्मा के नूर से यह पल मोहोल माफक सुशोभित हैं ..इनकी पांच भोम छठी चांदनी आयीं हैं जिनकी हर भोम में अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपनी ब्रह्म अंगनाओं के साथ हिंडोलों में झूलते हैं --इन समय की लीला बेहद ही सुखदायी होती हैं ,प्रियतम के साथ नयन से नयन मिला कर हिंडोलों में झूलना ,सुगन्धित शीतल हवा के झोंकों का स्नेहिल स्पर्श और पशु पक्षियों की मीठी स्वर लहरी में गूंजता संगीत --
दोनों पुलों के बीच में सात घाट सुशोभित हैं और ठीक मध्य जमुना जी के जल पर पाट घाट की अद्भुत शोभा आयीं हैं --परमधाम और अक्षर धाम के बीच में आमने -सामने आए इन वनों और घाटो की ज्योति आसमान तक जगमगाती है
जो घडनाले पुल तलें, दस दस दोऊ के ।
दस नेहेरें चलें दोरी बंध, बडी अचरज खूबी ए ।। २१
जमुना जी पर शोभित केल पुल और बट पुल दोनों के नीचे से श्री जमुना जी का निर्मल ,उज्जवल ,सुगन्धित ,मीठा जल दस धाराओं द्वारा प्रवाहित होता है !यहां पर दस नहरे पंक्तीबंध दिखाई देती हैं !जमुनाजी की यह विशेषता बड़ी अदभुत है
दोऊ पुल देख के आइए, निकुंज मंदिरों पर ।
इत देख देख के देखिए, खूबी जुबां कहे क्यों कर ।। २२
जमुना जी पर आएं दोनों पुल पांच भोम छठी चांदनी के नूरी मोहोलाते हैं जिनकी प्रत्येक भोम में हिंडोलों की शोभा हैं और छठी चांदनी पर सुन्दर बैठके आयीं हैं --इन वनों की शोभा देख कर कुञ्ज निकुंज वनों की अलौकिक शोभा को दिल में लीजिए -
कुञ्ज निकुंज में सम्पूर्ण शोभा नूरमयी फूलों की हैं ..वहां के मंदिर ,मोहोलाते ,नूरी सेज्या सब नूरी फूलों के हैं ..फूलों की कोमलता देखे उनमें कोई नसे नहीं हैं --अति कोमल हैं नूरी फूल और फूलों की सेज्या ,बैठक के सुख तो अपार सुखदायी हैं--कुंज वन में कई वन एक ही रंग के हैं और कई वनों में एक एक में दस रंग हैं --ऐसे कई तरह के रंगों के अनेक वन हैं जिनसे अनेक तरह की आनंद की रस धाराएँ प्रवाहित होती हैं --इश्क ,प्रेम ,प्रीति ,आनंद के रास में डूबी रूहें इन वनों में श्री राज श्याम जी के संग हान्स विलास करती हुई अखंड सुख लेती हैं--
जैसे जैसे इन अलौकि मशोभा को निरखते हैं आत्मा करार पाती हैं ..दिव्य भूमि परमधाम के कुञ्ज वन का वर्णन जुबान कैसे करें ?
आगूं इतथें हिडोले, जित चौकी बट पीपल ।
चार चौकी बट हिडोले, इतथें न सकिए निकल ।। २३
कुंज-निकुंज मंदिरो के आगे बटपीपल की चौकी के हिंडोले देखिए !यहां चार चार वृक्षों की चौकियों के मेहराबो मे हिंडोले लगे हैं ! यहां की शोभा इतनी अच्छी है कि यहां से निकलने का मन ही नही होता
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