Thursday, 25 February 2016

पुखराज का चबूतरा से बंगला जी की और


चले निज नज़र से रंगमहल की उत्तर दिशा में जहाँ पुखराज का चबूतरा स्वर्णिम आभा से झिलमिला रहा हैं | हज़ार हांस का चबूतरा गोलाई में घेर कर हज़ार हांस में सुशोभित हैं | घेर कर आएँ 1000 गुर्ज
गुर्जों की शोभा देखे --हर हांस में बदलती शोभा ..रंगों की अनोखी जुगति और हांस हांस में आएँ गुर्जों से चबूतरा को घेर कर आईं पुखराजी रोंस में उतरती सीढ़ियाँ
और चबूतरा के ठीक मध्य नज़र की तो 44000 कोस का एक भोंम ऊँचा चबूतरा --जिसकी चारों दिशा से सीढ़ियाँ इन चबूतरा पर उतरी हैं | शेष जगह कठेड़ा और देखी शोभा पाँच पेड़ ..पुखराज के आधार स्तम्भ पाँच पेड़ जिन पर पुखराज पहाड़ की शोभा का विस्तार हुआ हैं
पेड़ो के बढ़ते छज्जा ..आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोलाते आती चली गयीं हैं --251 भोंम में 44000 कोस के चबूतरा पर एक छत हो गयीं हैं अब यहाँ से गोलाई रूप में घेर कर छज्जा बढ़ता हुए देखा रूह ने
उल्टी सीढ़ी की शोभा --आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोलाते --बढ़ते बढ़ते हज़ार भोम ऊपर एक छत --
यह अलौकिक शोभा में झील रूह की नज़र ले चले बंगला जी की और
बंगला की और पाँव मुबारक धरे श्री राज जी की रूह ने ---पुखराज और बंगला को जोड़ता हुआ एक कुंड आया हैं --विशालता लिए कुंड और कुंड को घेर कर आईं पाल से बंगला जी जाने का एक रास्ता --
लेकिन मेरी रूह रुक तो सही --बंगला जी के चबूतरा जाने से पहले यह अद्भुत शोभा तो निरख --बंगलों और चहेबच्चों की जो पाँच भोंम शोभा आईं हैं अर्थात बडो वन और फिलपायों पर जो पाँच भोंम ऊँची छत आईं हैं उन छत से जल की धारा गर्जना करती हुई कुंड में गिर रही हैं
पुखराज के चबूतरा से बंगला जी के 
चबूतरा जाना हैं तो दोनो को जोड़ता हुआ 
कुंड और कुंड की अद्भुत शोभा - पाँच भोंम 
ऊँची बंगलों और चहेबच्चों की चाँदनी से 
मधुर गर्जना कर रूह को उल्लासित करता 
गिरता नूरी जल
कुंड की पाल से रूह चली बंगला जी --हथेलियों में जल की बूँदों को समेटते हुए --आ पहुँची बंगला की चौरस चबूतरा पर --जिसके हर दिशा में 250 -250 गुर्ज सोहनी झलकार कर रहे हैं
पाँच हारे बडो वन --ऊँची अतन्त विशाल --एक ही भोंम पाँच भोंम ऊँची --शोभा देखते हुए रूह आगे बढ़ी --वृक्षों की शीतल ,सुगंधित और बेहद ही सुखदायी छाया
नीचे नरम नूरी फर्श ..नूरी पत्तियों ने उन पर बिखर कर मानो गिलम रच दी मेरी रूह के लिए --फूलों की पांखुड़ियाँ बीच गयी रूह के अभिनंदन के लिए --बड़ी ही अदा से बलखाती ,मदमाती चाल से चल रूह ने बडो वन पार किया आगे तो और भी सरस शोभा
रूह ने जैसे ही बडो वन किया वो खुद 
को पाती हैं फिलपायों के दरम्यान --
नूरी शोभा --नूर से भरे फिलपाए --एक 
एक फिलपाए को देखा तो अजब ही 
शोभा लिए --उनके सिरों पर हाथी 
,घौड़ो ,चीतो आदि के मुख और अर्श के चेतन इन मुखों से जल की धाराएँ निकल कर महेराब बना कर आगे आए बडो वन से गुजरते हुए भीतर आएँ बंगलो -चहेबच्चों में आई आड़ी -खड़ी नहरें जहाँ काट रही हैं उन जगह आएँ चहेबच्चों में जाकर मीठी गर्जना करता हुआ जल गिरता हैं --वो समाया क्या सुहाना समा हैं जब हम रूहें बडो वन में झूल रही हैं तब चारों और आएँ फिलपायों के सिरों पर आएँ बड़े बड़े अर्श के चेतन जानवरों के मुखों से जल के विशाल पूर निकल रहे हैं और हमारे ऊपर से गुजरते हुए चहेबच्चों में गिर रहे हैं --सुखदायी समय --अखंड सुखों में झीलती रूहें
फिलपायों के बाद पुनः बडो वन और बडो वन के भीतर --चबूतरा के ठीक मध्य आड़ी -खड़ी नहरों के मध्य आएँ भोंम भर ऊँचे चौक जिन पर क्रमशः एक बंगलों और एक चहेबच्चों की अद्भुत शोभा आईं हैं --और यहाँ ठीक सामने जब रूह बंगलों और चहेबच्चों के पार जाती हैं तो खुद को दहेलानों में महसूस करती हैं --सात दहेलान जिनमें चार नहेरे प्रवाहित हो रही हैं और तीन बैठके --तो रूह इन बैठकों में बैठ धाम धनी के संग किय हांस विलास याद कर ,इन पालों पर उनके साथ बैठना और नहरों की लहरों से खेलना तो कभी नौकायान --इन्हीं याद के माँहे श्रीराज जी से मिलन हैं मेरी रूह

Tuesday, 23 February 2016

बंगला के चबूतरा पर वृक्षों की छाँव तले रमण के सुख




प्रणाम जी
नज़रे बंद दूनी की और अंतरदृष्टि धाम मे
बंगला के चबूतरा पर वृक्षों की छाँव तले रमण के सुख
लेती हम सखियाँ
नीचे बिछी फूलों की कोमल पांखुड़ियाँ --एक नरम
पशमी गिलम से अधिक कोमलता का अहसास कराती
और चेतन वृक्षों की सुगंधी की ल़हेरें भिगोटी हुई
वृक्षों के दरम्यान बने सुंदर चौक और
वृक्षों की डालियों ने जहाँ महेराब बना कर मिलान किया
हैं वहाँ हिंडोला
वृक्षों की पाँच हारे पार की
फिलपाए --मानों नूर के थम्भ अपने संपूर्ण शोभा के
साथ खड़े हैं हाथ बाँध रूह के अभिनंदन के लिए
नूर ही नूर ,इन नूर में प्रकाश हैं जोत हैं सुगंधी हैं
कोमलता हैं चेतनता हैं धाम का इश्क समाया हैं एक
शब्द में पिऊ का लाड़ हैं यह नूर
फिलपायो के मुखों से निकलते जल के पूर
निर्मल जल की धाराएं
महेराब बना कर
आगे आईं वृक्षों की हारों को पार कर भीतर आएँ
चहेबच्चों में यह जल गिरता हैं
गिरते जल की मधुर प्रतिध्वनि
प्रिय लगने वाली स्वर लहरी
वृक्षों की महेराबो में से होकर आता यह जल उनके रंगों की झलकार से झलकार करता हुआ
जल के अथाह पूर
ऐसा झरना जो घौड़ो ,हाथी तो कहीं चीता के
मुख से प्रगट हो
बड़ी अदा से कला का प्रदर्शन करता हुआ
महेराब बना कर
भीतर बंगलों और चहेबच्चा को घेर कर आईं
नहरों के
दरम्यान बने चहेबच्चों में जब गिरता हैं तो
इसकी मधुर
ध्वनि ,इनकी जल की बूँदीयाँ सभी को श्रीराज
जी के इश्क में
भिगोती हैं
और जब इन बंगलों और चहेबच्चों के नज़दीक आईं वृक्षों की महेराबो में आएँ हिंडोलों में झूले तो वो सुख
हिंडोलों में बैठने का दिल में ले तो सामने मेरे प्रियतम ,मेरे धाम धनी श्री राज जी
मुस्कराते हुए
मंद मंद
नयनों से इशारा चल मेरी सखी झूला झूले
उनके साथ बड़ी ही अदा से दुलहन सी शरमाती हिंडोलो में विराजमान हुई
हिंडोलों का चलना
साथ में प्रियतम का साथ ,उनका स्नेहिल स्पर्श
ऊपर से जल के प्रवाह का गुज़रना
तो वो जल भी कैसे पीछे रहे ..पिऊ मिलन की चाहत में वो भी बूँदीयाँ बन प्रीतम से लिपट गया
और प्रीतम लेकर के चले एक और अद्भुत शोभा में
ऐसे शोभा जो मेरी सखी तुमने कभी नहीं देखी
बंगला के पूर्व में
आईं दहेलानों में लेकर के आए मेरे धाम दूल्हा
उत्तर से दक्षिण आठ थम्भो की हार
पूर्व से पश्चिम 14 थम्भो की हार
वृक्षों की फिलपायो की शोभा
दिखा धाम धनी अब दिखा
रहे हैं दहेलान की शोभा
यह दहलान अधबीच के कुंड
मे पश्चिम मे आई दहलान से
मिलान किए है ! इस दहलान
मे चौड़ाई तरफ 8 और लंबाई
तरफ 14 थम्ब आने से
दहलान मे 4 नहरो ओर तीन
बैठक की शोभा आईं हैं
आठ थम्भो में आई सुंदर
सात महेराब
चार में नहर
तीन में मनोहारी बैठक
वो समया जब धाम के दूल्हा संग नहर के किनारे आई इन नहरों में रमण करे --बेहद ही सुखदायी हैं | जल में मस्ती करना तो कभी बैठको में बैठ रमणीय नज़ारों के आनंद लेना
हज़ार भोंम तक ऐसे ही शोभा दहेलान की
अत्यंत विशाल शोभा
''''''''''''''''''''मेरे श्री राज जी आज तो रूह की इच्छा हैं कि इन दहेलानो में रमण करूँ कभी नहरों में सुंदर नाव में बैठ लहरों के सुख लूँ |

Friday, 19 February 2016

बंगला जी का चबूतरा ,सुखों की एक झल्क

प्रणाम जी सखियो 

चलें


 बंगला जी चबूतरा पर

हद बेहद से परे अपना घर

परमधाम

परंधाम के ठीक मध्य में स्थित रंगमहल

तो चले रंगमहल की उत्तर दिशा की और


 पुखराज पर्वत के पूर्व दिशा में 100000 कोस का लंबा चौड़ा चौरस चबूतरा बंगला जी का आया हैं

खुद को चबूतरे के सामने पुखराजी रोंस पर महसूस करे

देखे सामने भोंम भर ऊँचा चबूतरा


 हर दिशा में 250-250- हांस

दो हांसों के मध्य से सीढ़ियाँ तरहती  में उतरी हैं

और एक हांस को देखिए

विशाल गुर्ज

सुंदर रंगों की शोभा


 हर हांस में बदलते रंग

और गुर्ज के दोनों और से चढ़ती सीढ़ियाँ

तो चले हम सब प्यारी धाम की सखियाँ


 गलबाहियाँ डाल कर सीढ़ियों की और चले

सीढ़ियाँ चढ़ रहे हैं

पहली सीढ़ी पर कदम धरे

ओहो ! कितनी मुलायम गिलम

पाँव रखते ही मानो घुटनो तक धँस रहे हो

अति कोमल

सुगंधी

चेतनता


 एक हाथ को बंगला की के चबूतरा की दीवार और दूसरे हाथ चढ़ती हुई रेलिंग

चबूतरा के दीवार पर आए चेतन चित्रामन भी आपके साथ कदम से कदम मिलकर चल रहे हैं

रेलिंग की खूबसूरती तो देखिए
 रंगों नंगों से सजी

नक्काशी से जड़ी हुई

सीढ़ियाँ चढ़ कर चबूतरा पर आए

देखी वृक्षों की हार
 हज़ार हांस में घेर कर आएँ बडो वन के नूरी वृक्ष
अलग अलग रंगों से महकते महकाते
 पाँच हार

इन वृक्षों की पाँचों  हारों की अलौकिक शोभा तो निहारे

एक भोंम की शोभा

और एक ही भोंम में पाँच भोंम समाहित हैं


 अत्यंत ऊँची इनकी भोमे

पाँच हार वृक्षों के बीच बने चौक


 वृक्षों की महेराबों में आए फूलों के हिंडोलें

वृक्षों की शीतल छाया

सुखों में झीलते वृक्षों की पाँच हार पार की

तो देखे

अद्भुत शोभा

फिलपायों की चार हारे घेर कर सुशोभित हैं


 अति सुंदर फिलपाए

और ज़रा नज़र तो उठाइए  सखियों
 फिलपायों के ऊपर बने घौड़े ,हाथी ,गेंदों के मुख
 और विशाल जानवरों के मुखों से निकलता धाम का नूरी जल
 जल के पूर
देखे तो सही यह जल कहाँ जा रहा हैं ?
 फिलपायों के आगे पुनः बडो वन के वृक्षों की पाँच हारे आईं हैं --और इनके आगे बंगलो और चहेबच्चों की जगह आईं हैं -आड़ी खड़ी नहरों के दरम्यान 96 की 96 हार चौक आएँ हैं --यह चौक भोंम भर ऊँचे उठे हैं इन्ही पर  बंगलो और चहेबच्चों की शोभा आईं हैं  ---
 तो जो यह आड़ी खड़ी नहेरें हैं यहाँ भी जहाँ नहेरे कटती हैं वहाँ चहेबच्चा आया हैं
तो घौड़ो ,हाथी के मुखों से निकलता जल का पूर बडो वन की महेराबो से होता हुआ पहली हार चहेबच्चों में गिरता हैं
तो साथ जी यह अद्भुत ,अति मनोहारी  दिल को छू जाने वाली शोभा निहारीए
हम सब सखियाँ बडो वन में हैं
 हिंडोलें खुल कर नीचे आ गये
 आइए उन पर बैठे
 झूला झूले
 और नज़रे ऊपर तो दिखी
 जल की धाराएँ
 जो फिलपायों के मुखों से निकल कर चहेबच्चों में जाकर गिर रही है
 तो कुछ बूँदीयाँ आको भी भिगो रही है
 भीगे ना
 आपको भी
 वृक्षों की शीतल छाया
 सखियों का साथ
 और ऊपर से जल का महेराब बना कर गुजरना
 कहीं देखा ऐसा नज़ारा
 ये तो हमारे पिया का  लाड़ जो  हमे भिगो रहा हैं

 और एक शोभा बंगले के पूर्व मे मध्य मे दहलान आई है जिसकी वजह से पैड और फीलपाए कुछ कम हुए हे ! यह दहलान अधबीच के कुंड मे पश्चिम मे आई दहलान से मिलान किए है ! इस दहलान मे चौड़ाई तरफ 8 और लंबाई तरफ 14 थम्ब आने से दहलान मे 4 नहरो ओर तीन बैठक की शोभा आई है !

PHULBAG KI ADBHUT SHOBHA


प्रणाम जी

मेरी सखी चले ,रंगमहल के पश्चिम दिशा में आएँ मंदिरों में

मंदिर में आए और देख रहे हैं शोभा --मंदिर की उत्तर ,पूर्व और दक्षिण की नूरमयी दिवाले

एक बड़ी नक्काशी युक्त मेहेराब और महेराब के कोने और दोनों और आएँ नूरी माणिक के फूल लालिमा बिखेरते और फिर देखी उन एक बड़ी महेराब में तीन महेराब...देख मेरी सखी -मध्य की महेराब में रत्नों से जडित अति सुंदर द्वार और दाएँ बाएँ की महेराब में मनोहारी चित्रामन ,चेतनता लिए

मंदिर में सुख सुविधा के सारे साजो समान

सिनगार की सामग्री ,हिंडोलें ,सुंदर आरामदायक बैठके

और अब नज़र करी तो पश्चिम की दीवार नज़र आईं

अद्भुत शोभा

एक बड़ी महेराब में नौ महेराब ,अति सुंदर जाली द्वार और दो द्वारों की शोभा ,फूलों की सुगंधी की ल़हेरे

नौ महेराबों के ठीक मध्य एक छोटा प्यारी सी शोभा लिए द्वार

कदम खुद से बढ़ गये द्वार की और

द्वार स्वतः की खुल गया और

महसूस किया एक स्नेहिल स्पर्श जो मेरा हाथ थम के मुझे अपनी और खींच रहा हैं

मैं बस खींची चली जा रही हूँ

गोलाई में आईं सीढ़ियाँ ...22 सीढ़ियाँ पार की तो सामने पुनः एक द्वार

द्वार पार करते ही खुद को एक मनोहारी शोभा से युक्त झरोखे में महसूस किया ,फूलों की अद्भुत शोभा ,झरोखा मानो फुलो से निर्मित हो और सामने प्रीतम मुस्कराते हुए ,उनकी मोहनी छब ,मस्ती से भरे नयन ,नयनों की मस्तियाँ

प्रीतम ने दिखाई धाम की अद्भुत प्यारी सी शोभा ,उनकी नज़रों में सब समाया

कभी उनके साथ झरोखों में बैठे महसूस किया

तो कभी धाम रोंस पर

तो कभी हाथों में हाथ थामे धाम रोंस से लगती पहली नहर

जहाँ मध्य में नहर में अद्भुत शोभा आईं हैं ,3000 चहेबच्चे और उनसे उठते ऊँचे जल के फव्वारे ...जो कभी दीवार रूप में दिखे तो कभी फूलों की तरह उठते हुए

और देख मेरी लाड़ली सखी , धाम का चेतन चहेबच्चा ने कुछ यूँ  जल उछाला कि जल की बूँदीयाँ हथेली में आते ही फूलों का गुलदस्ता बन गयी ,ऐसा कि नजरे उन से हटे ही ही नही ,फूल की हर पंखुड़ी में पिऊ का अक्स नज़र आया

Saturday, 13 February 2016

रंगमहल की शोभा --घेर कर आएँ हांस

रंगमहल की शोभा --घेर कर आएँ हांस



🌷धनी श्री धाम 🌷

मेरी रूह धाम द्वार की शोभा देख --दो भोंम ऊँचा धाम द्वार

दर्पण रंग का झिलमिल करता द्वार और हरित बेनी

और एक सीढ़ी ऊँची सेंदुरियाँ रंग की चौखट

दर्पण के द्वार के ऊपर छोटी महेराब की शोभा और महेराब के ठीक ऊपर मनोहारी झरोखा

और देखिए दूजी भोंम में शोभा बढ़ाते दो द्वार ओए छः जाली द्वार

धाम द्वार के दोनों और दो चबूतरा जिनकी छत  दूजी भोंम में झरोखा बन शोभा दे रही हैं

2 मंदिर का हमारा धाम द्वार और द्वार के दोनों और चार चार मंदिर की जगमगाते चबूतरा जिनकी पूर्व किनार पर हीरा ,माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के थम्भ सुशोभित हैं

तो इस प्रकार मेरी रूह तुमने धाम द्वार के लिए आए दस मंदिर के पूर्व की और हांस की शोभा देखी और अब देख तू घेर कर आए 200 हांस की शोभा 🌺

भोम भर ऊँचे चबूतरे पर झलकार करता रंगमहल 201 पहल का आया हैं | दरवाजे का हांस 10 मंदिर का हैं और घेर कर 30-30 मंदिर के हांस आएँ हैं |

दरवाजे की शोभा के वास्ते बने दस मंदिर की मनोहारी शोभा रूह निरखती हैं – मध्य में आएँ दो मंदिर के चौड़े और ऊँचे धाम द्वार की शोभा अत्यंत ही सुंदर ,मनभावन हैं -मध्य में नूरमयी दर्पण का द्वार और द्वार में झलकते सामने आएं अमृत वन के दृश्य ,पशु पक्षियों की लीला –हरित रंग में जगमगाती बेनी और सेंदुरियाँ रंग की चौखट | द्वार के दाएँ बाएँ आएँ चबूतरे द्वार की शोभा को कोट गुणा बड़ा रहें हैं |

रूह देखती हैं ,,घेर कर आएँ हांसों की शोभा -दस मंदिर के हांस के दाएँ बाएँ 25-25 मंदिर के हांस आएँ हैं और घेर कर आएँ शेष हांस 30-30 मंदिर के हैं | चबूतरे की किनार पर जवेरातों से जडित कठेड़ा और भीतरी तरफ घेर कर आईं एक मंदिर की धाम रोंस –रूह के कदम अपने आप ही बढ़ जाते हैं ,मैं अपने घर को चारों ओर से देखूं —रूह देखती हैं पूर्व मे आएँ सात वन ,दक्षिण में बटपीपल की चौकी की झलकार और पश्चिम में फूलों की महक रूह ने महसूस की और उत्तर दिशा में लाल चबूतरा ,ताड़ वन और स्वर्णिम महक से झिलमिलाता आसमान को स्पर्श करता हुआ पुखराज पहाड़ |
और रूह देखती हैं ,घेर कर आएँ मंदिरों की बाहिरी दीवार की शोभा – बाहिरी दीवार में दो-दो द्वार हैं और मध्य में झरोखा सुशोभित हैं | और एक मनभावन शोभा ,द्वारों और झरोखे के दोनों और नूरमयी जवेरातों से जगमग करते और फूलों से भी कोमल जाली द्वार शोभा ले रहे हैं |
उत्तर दिशा में झरोखे के स्थान पर भी द्वार हैं |
अब रूह देखती हैं कि एक मंदिर की अलौकिक शोभा -मंदिर 100 हाथ का लंबा चौड़ा आया हैं | चारों और द्वारों की शोभा बेमिसाल हैं |हे मेरी रूह ,इन द्वारों में आएं कमाड़ो पर बहुत ही महीन चित्रामन सुसज्जित हैं | इन चित्रामन में जो तू रंग ,नंग देख रही हैं और जो ऊपर से फूल पत्तियों हैं वह सब जवाहारतों का हैं ,चेतन हैं | हो भी क्यों ना ? संपूर्ण शोभा श्रीराज जी के नूर हैं | श्रीराज जी ने ही रूहों को रिझाने के लिए विध-विध के रूप धरे हैं |
मंदिर नई नई जुगति से शोभा ले रहें हैं | कहीं फूलों से महकते मंदिर आएं हैं तो कई जवेरातों से जड़े मंदिर हैं ,कोई कोई मंदिर एक ही रंग में झलकार कर रहा हैं तो दूसरे मंदिर में अनेक रंग रोशन हैं | मेरी रूह ,इन मंदिरों की शोभा को बार बार निरख ,

मंदिरों के भीतर आईं शोभा ,साजो समान का क्या वर्णन हो
एक मंदिर मे क्या कुछ नहीं -सिंघासन ,कुरिसयों की शोभा ,हिंडोलें ,नूरी सेज्या ,चौकिया़ं ,संदूक ,सिनगार की सर्व सामग्री -,हर जोगबाई मंदिरों में हाजिर हैं रूह को रिझावन खातिर —

ए मैं क्यों कर करूं बरनन, तुम लीजो कर चितवन ।
नव भोम सबों के मंदर, देखो बस्तां अपनी चित धर ।3/70 परिक्रमा

सेज्या सबन के सिनगार, हिरदें लीजो कर निरधार ।
सब जोगवाई है पूरन, कमी नाहीं काहूंमें कीन ।। 3/71

हांस बिलास सनेह प्रेम प्रीत, सुख पियाजी को सबदातीत ।
डबे तबके सीसे सिकीयां, कै देत देखाई लटकतियां ।3/72

चौकियां माचियां सिंघासन, कै हिडोले जंजीर कंचन ।
कै बासन धात अनेक, कै वाजंत्र विविध विसेक ।3/73

कै झीले चाकले दुलीचे विछौंनें, कै विध तलाई सिरानें ।
कै रंग ओछाड गालमसुरे, कै सिरख सोड मन पूरे ।।3/74

हे मेरी रूह,जैसी शोभा प्रथम भोम में देखी हैं वैसे ही ऊपर की नौ भोमों में समझना |

Friday, 12 February 2016

बंगला की तरहती की शोभा

पच्चीस पक्ष ,संपूर्ण सिंगार सज श्री राज जी महाराज हमारे धाम धनी हमारे आत्मा के प्राण वल्लभ हमारे धाम हृदय में ही विराजमान हैं --हम देख नहीं पा रहे क्योंकि माया का परदा पड़ा हैं तो बस दिल से उन्हें याद करे ,अपने धनी को अपने प्रीतम को तो देखिए कैसे एक पल में हम श्यामा -श्याम के संग परमधाम की गलियों में रमण करता खुद को पाएँगे ---आज हमारे धाम दूल्हा हमे लेकर के जा रहे हैं कि आज मैं अपनी अर्शे अरवाहों को बांग्ला की ज़रा सैर तो करा दूं smile emoticon

पुखराज पहाड़ की पूर्व दिशा में एक लाख कोस का लंबा चौड़ा चबूतरा मनोहारी शोभा को धारण किए हैं --चबूतरा की हर दिशा में 250-250 हांस हैं जिनके प्यारी सी शोभा हैं --हर हांस में नये ही रंग की झिलमिलाहात ---और दो हँसो के मध्य अत्यंत ही सुंदर बादशाही द्वारो
सें कोट गुणी शोभा लिए द्वार जिनसे तरहती में सीढ़ियाँ उतरती हैं
हम रूहें श्री राज -श्यामा जी के संग तरहती में जाने का विचार मन में लेते हैं तो सामने आया द्वार स्वतः ही खुल गया --सुगंधी का झोंके और ठीक सामने उतरती अद्भुत शोभा को लिए सीढ़ियाँ --सीढ़ियाँ उतर रहे हैं --सीढ़ियों पर आईं गिलम अत्यंत कोमल हैं कि पाँव घुटनों तक मानो धँस रहे हैं --एक दूजी को गलबहियाँ कर (एक दूजे के हाथों में हाथ उनके गले में हाथ ) सीढ़ियाँ उतर रहे हैं --नैन से नैन मिला और दोनों और आएँ कठेड़े और उनमें आएँ सजीव चित्रामन --पेड़ फूल बरसाने लगे श्यामा जी श्याम के अभिनंदन में --फूल अपनी सुगंधी खूबसूरती और भी बढ़ा देते हैं और पशु पक्षी चाहचहा उठते हैं और पुतलियाँ का लुभावना नृत्य और संगीत की मधुर धुन --अखंड सुखों में झीलते हुए सीढ़ियाँ उतर कर सीढ़ी वाले रोंस पर श्रीराज- श्यामा जी के संग हम सब सखियाँ आ पहुँची

और देखते हैं कि नूरी सीढ़ी वाले रोंस की शोभा --हंस -हांस से उतरती सीढ़ियाँ--तेज के अंबार और अब नज़रों में आईं कि प्रत्येक हांस से तीन तीन सीढ़ियाँ बगीचा की रोंस पर उतरी हैं --बड़ी नाज़ुकता से कदम बढ़ते हुए बगीचा की रोंस पर आए --आती सुंदर रोंस --हरियाली बिखेरती --खुशियों के दीप जलाती और फूलों के सिंहास्ं कुर्सियाँ सज गयीं अर्शे मिलावे के लिए

युगल जोड़ी सिंहासन पर विराजमान हुई और हम सब सखियाँ भी विराजी --सामने 38 हारे बगीचों की --मनोहारी शोभा ..फूलों की अनोखी जुगत --आड़ी-खड़ी नहरों की शोभा और निर्मल जाम के उछलते फव्वारे --

कुछ सखियाँ बगीचों में जाकर नरम -नरम फूल चुन युगल पिया जी के लिए हार पिरोती हैं ,श्रवनों में फूलों के कुंडल और श्री श्यामा जी की माँग में गुलाबी गुलाब का बेन्दा --रूच रूच कर कर सखियाँ युगल जोड़ी को सिंगार सजाती हैं

तो कुछ सखियाँ 38 हार बगीचों को पार कर तीन सीढ़ी चढ़कर मोहोलातों की रोंस पर आती हैं और आगे 39 हार मोहोलातों की शोभा में रमण करती हैं --मोहोलों में जाकर झूलों में झूलना --नूरी सेज्या पर बैठना और पिऊ के अखंड सुखों की बात करना तो पिया जी भी सम्मुख आ विराजे --जहाँ उनकी बात हो धनी तो वही हैं

अब चले मोहोलों को पार कर भीतर की और --पुनः मोहोलातों की रोंस --
और यहाँ कुछ पाल रुकें और देखे ...तीन सीढ़ी नीचे ताल की पाल और उससे भी तीन सीढ़ी नीचे ताल रोंस और आगे विशाल कुंड लहराता हुआ --सुगंधित धाम का नूरी जल और पूर्व पश्चिम से आती नहेरें --देखिए तो हम मस्ती से भर कुंड में छलाँग लगा रहे हैं --मस्ती में जल क्रीड़ा --जल उछालना ..शीतल जल के सुख ले मोहोलातों में सिंगार सज़ा जो मेरे पिऊ के दिल को भावे

Saturday, 6 February 2016

चितवन धाम दरवाजे तक

प्रणाम जी

चितवन धाम दरवाजे तक

मेरी रूह ,मेरी सखी ,चल अपने घर

हद बेहद से परे परमधाम

और परमधाम के ठीक मध्य में स्थित भोम भर ऊँचा चबूतरा और

चबूतरा पर झलकार करता 2000 मंदिर का लंबा चौड़ा नौ भोंम दसवीं आकाशी का रंगमहल

हम रूहों का असल मुकाम

निज घर

रंगमहल की पूर्व दिशा में सात वन आएँ हैं जिनमें से तीन वन रंगमहल की दीवार से लगे हैं ..ठीक मध्य में अमृत वन

अमृत वन के तीसरे हिस्से में चाँदनी चौक की शोभा आई हैं
चाँदनी चौक में खुद को महसूस कर मेरी रूह

166 मंदिर का लंबा चौड़ा चौक जिनमें उज्ज्वल रेती मोती माणिक की तरह  बिछी हैं --नरम रेती ,पिऊ की आशिक रेती जो रूह के आगमन और भी कोमल हो उठी

ठीक मध्य में 2 मंदिर की रोंस जो पात घाट से सीधी रंगमहल की सीढ़ियों की और ले जा रही हैं

इन रोंस की वजह से चाँदनी चौक दो हिस्सों में सुशोभित हो रहा हैं

रूह अपना मुख रंगमहल की और कर तो दाएँ हाथ को लाल वृक्ष ..आम का वृक्ष और

बाएँ हाथ को हरा वृक्ष -अशोक का वृक्ष

रूह चलती हैं दाईं हाथ -- लाल वृक्ष की शोभा को देखने ..

नरम रेती की पाँव घुटनो तक धँस र्हें ..पिऊ मिलन की उमंग   में गीत गुनगुनाती पहुँचे -मध्य में रोंस से चाँदनी चौक की शोभा दो हिस्सों में दिखती हैं ..तो उन एक चौक की ठीक मध्य में --

 --33 मंदिर के लंबे चौड़े चबूतरा की किनार पर जिस पर वृक्ष सुशोभित हैं ..चबूतरा की चारों दिशा से सीढ़ियाँ चाँदनी चौक की रेती में उतरी हैं और घेर कर कठेड़ा और चबूतरा के ठीक मध्य दो भोम तीसरी चाँदनी का वृक्ष --जिस दिशा में भी बैठने की इच्छा हुई वहीं सिंघासन कुर्सियाँ हाजिर --

चाँदनी चौक की शोभा देखकर ठीक मध्य की रोंस पर आईं रूह और चली रंगमहल की और 

यह रोंस उसे सीढ़ियों तक ले जा रही हैं
रूह सीढ़ियों तक आ पहुँची और सीढ़ियाँ चढ़ना शुरू करती  हैं 

चाँदनीचौक के पश्चिम दिशा से दो मन्दिर की जगह से सीढियां रंगमहल के चबूतरे पर चढ़ी है |शुरु मे 5 सीढी़ एक हाथ की ऊंची और चौड़ी आयी हैं | पाचवी सीढ़ी के साथ ही पाँच हाथ का चाँदा आया हैं फिर दसवी सीढ़ी के साथ चाँदा हैं ।सीढी़ और चाँदा एक ही लेवल मे आये हैं !

रूह बड़ी ही मोहक अदा से सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं ..सीढ़ियों पर कोमल गिलम --

सीढ़ियों के दोनों और आएँ  कमर भर ऊचे कठेड़े ,उनमें आयी नक्कशकारी ,चित्रामन की शोभा --चेतन चित्रामन में आएँ पशु पक्षी भी गीत गुणगना उठे रूह के स्वागत में ..पुतलियों का नृत्य --मोरों का पंख फैलाना

सीढ़ियों की अद्भुत सुंदरता दिल में बसाते हुए रूह 100 सीढ़ी 20 नूरमयी चाँदे सहित  पार कर दो मंदिर के लंबे चौड़े मन्दिर के चौक मे आई

धामधनी अपनी रूह को दो मन्दिर के चौक की शोभा
दिखा रहे है |हमाऱे धामधनी ने हमे 25 पक्षों की सुध परिक्रमा ग्रन्थ मे दी हैं |
इस चौक के चारों और हीरे के दो भोम के ऊँचे थम्भ अपनी नूरी आभा से जगमग़ा रहे हैं |इस चौक के दोनों दिशा में उत्तर – दक्षिण नूर से भरपूर चबूतरे अपनी और बुला रहे हैं कि य़हां आ कर चादनी चौक मे पशु पक्षियों की लीलाओं
का आनऩ्द लिजिए ।दूसरी भोम के झरोखे भी रुह को उलासित कर रहे हैं। पूर्व दिशा मे दो भोम का धामदरवाजा मानो कह रहा है कि आइए ‘आपका अपने वतन मे स्वागत हैं । दर्पण रंग के किवाड और लाल रगं की चौखट फिजाँ को महका रही हैं . रुह धामदरवाजे की शोभा देख रही है |दो भोम ऊंचे धामदरवाजे की शोभा बेमिसाल है |दर्पण रँग का द्वार शोभा ले रहा हैं जिसमें सामने बनों की झलकार होती हैं –लाल रंग की चौखट और हरे रंग के बेनी मे अदभुत नक्कशकारी आयी हैं -दूसरी भोम में आये झरोखे –दो द्वार –छः नूरी जालियां आपको बुला रही हैं –मेरी रुह , निजवतन मैं आपका स्वागत हैं |
रूह दो मंदिर के चौक मे खड़े होकर दस मंदिर के हांस की ,जो मुख्यद्वार के वास्ते आया हैं ,शोभा देख रही है | दो मंदिर का लंबा चौड़ा चौक और इस चौक के दाएँ बाएँ दो मंदिर के चौड़े ओर चार मंदिर के लंबे एक सीढ़ी ऊंचे चबूतरे आएं हैं | इन चबूतरों की पूर्व किनार पर हीरा ,माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के थम्ब आए हैं उनमें रत्नो जड़ित कठेड़े की शोभा हैं | पश्चिम में भी पाँच अकशी थम्भ शोभा ले रहे है | इन चबूतरों पर दूसरी भोंम मे झरोखे आए हैं —दो मंदिर के चौक के चारों दिशा में आएं हीरे के थम्ब दो भोंम के आएं हैं | चबूतरों पर नीचे गिलम हैं और ऊपर चंद्रमा की शोभा हैं | यहाँ बैठ कर धामधनी हक श्री राज जी हमे चाँदनी चौक मे पशु पक्षियों की लीला के दर्शन कराते हैं |

दो मंदिर के लम्बे चोड़े चौक में खड़ी हो कर आत्म देख रही हैं धाम द्वार की मनोहारी शोभा – दो भोंम ऊँचे धाम दरवाजे की पहली भोंम मे 88 हाथ का दर्पण का द्वार हैं | जिसके दाएँ बाएँ मणि रत्नो से जड़ित दिवाल हैं |एक हाथ ऊंची लाल रंग की चौखट है | हरे रंग की बेनी की अद्भुत शोभा देख रूह सुकून पाती है | नूरी दर्पण के द्वार पर 12 हाथ की छोटी मेहराब मनमोहक है | दर्पण रंग के किवाड़ मे सामने आए अमृत बन का प्रतिबिंब में रूह खो जाती हैं—अब आत्म की नज़र जाती हैं—दूसरी भोंम में–हीरे की बड़ी मेहराब में नो छोटी मेहराबें हैं—मध्य की मेहराब मे नूरी झरोखा —6 जालीद्वार —दो द्वारो की शोभा अनुपम आई है |