Monday, 14 March 2016

बंगलों में रमण



चहेबच्चा की शोभा में झील कर मेरी रूह अब बंगलों में रमण करना चाहती हैं --मेरे दिल की इच्छा जानते ही मेहरों के सागर आप श्री राज जी मुझे बंगलों में लेकर जाते हैं --मैं बंगलों के चबूतरा के सामने बगीचा में हूँ --नूरमयी बगीचा --चेतन बगीचा देखिए तो ,श्रीराज-श्यामा जी और रूहों के अभिनंदन पर फूलों की बरखा -- ,सुगंधित समा और नहरों चहेबच्चों में हिलोरें लेता जल ---मैं सीढ़ियाँ चढ़ रहीं हूँ --सीढ़ी पर कदम रखा तो लगा मानों कोमल फूलों की पांखुड़ियों पर चल रही हूँ --जगमगाते कठेड़े की झलकार --सीढ़ियाँ चढ़कर चबूतरा पर पहुँची

तो देखा कि किनार पर नूरमयी थम्भ शोभित हैं ,नूर से भरे ,उनमें सजे चेतन चित्रामन और उनकी ऊँची भोमे --एक ही भोंम में पाँच भोंम समाई हुई और थम्भो के मध्य कठेड़े की अति सुंदर मनोहारी शोभा --
कठेड़े को पकड़ कर खड़ी हूँ मैं ,और   चबूतरा के चारों और की शोभा निरखती हूँ --चारों और तथा कोनों में आएँ बगीचा की अनुपम शोभा --उनमें खेलती मेरी धाम की निसबती सखियाँ --बगीचों में पशु-पक्षियों की अस्वारी के सुख लेती हुई और कोई सखी तो विशालकाय हाथी पर सवार होकर के आती हैं और हाथी से कदम उतारती हैं तो खुद श्रीराज-श्यामा जी के सिंहासन के सम्मुख बंगलों के चबूतरा पर महसूस करती हैं

रोंस पर सजी सुंदर बैठक --रोंस की बाहिरी किनार पार आएँ ऊँचे थम्भ और भीतरी और आएँ स्वर्णिम महक से महकते मंदिर --नीचे पशमी गिलम और थम्भो की महेराबों पर आईं पाँच भोम ऊँची छत पर नूरी झलकार करता चंद्रवा की जोत --

श्री राज जी रूहों को दिखाते हैं अद्भुत शोभा --चारों दिशा में घेर कर आएँ मंदिरो के  भोम दर भोम चार छाते दिखाई दे रहे हैं  और पाँचवी छत ने चबूतरा की किनार पार आईं थम्भो की पहली छत से मिलान किया हैं --और बगीचा की भोमे देखी तो देखा क़ि फूलों से लबरेज पाँच भोंम तो चबूतरा की ऊँचाई तक आईं हैं और देखा कि जब बगीचों की दस भोंम ग्यारहवीं चाँदनी आईं तो बगीचा की ग्यारहवीं  चाँदनी और बंगलों के चबूतरा की किनार पर आएँ  थम्भो की पहली छत और मंदिरों की पाँच भोम छठी चाँदनी का (इन तीनों स्थानो का )एक रूप मिलान हुआ हैं---तो बगीचा में चलते  हैं मेरी सखी -- और बगीचों की ग्यारवी चाँदनी से दौड़ते हुए मंदिरों की छठी भोंम से बंगलों में प्रवेश करते हैं -

प्यारा सा अहसास ना --बगीचा में आए तो वृक्षों के नूरी तनों ने रास्ता दे दिया --ऊपर जाने का ----तनों में सुंदर सीढ़ियाँ सुशोभित हैं उनसे चढ़ कर वनों की दस भोंम ऊपर आकर वन की ग्यारहवीं चाँदनी पर आएँ --फुलो की मखमली चाँदनी --सुगंधी ही सुगंधी --पशु-पक्षियों की मधुर स्वरों की गूँज ---वनों की चाँदनी से होते हुए बाहिरी हार थम्भो की पहली छत पर आए तो एक अलग ही अहसास --नूरी नगन जडित रोंस --जगमगाती हुई --रोंस के भीतरी किनार पर मंदिर --मध्य में मुख्यद्वार --श्रीराज-श्यामा जी के संग मुख्यद्वार से मंदिरों की हार पार की तो देखा ---कि हम छज्जा पर हैं जिसकी भीतरी किनार पर थम्भ शोभित हैं और थम्भो के मध्य कठेड़ा हैं --

अगले ही पल खुद को चबूतरा पर आएँ सुंदर बैठक में बैठा हुआ महसूस किया  --सामने युगल जोड़ी -उनकी मोहनी छब ,श्री राज-श्यामा जी की जुगल जोड़ी का तेज -,

रूहों पर इश्क लुटाती उनकी निगाहें -कोई रूह चबूतरा की किनार पर  थम्भ को टेक लगा कर खड़ी हैं और एकटक श्रीराज -श्यामा जी को निहार रही हैं तो कोई श्री श्यामा जी की जोड़े बैठ उनसे बाते करती हैं और देखिए तो प्रियतम का इशारा हुआ कि देखो तो ज़रा नज़र घुमा कर --चारों दिशा में आएँ मंदिरों से खूब खुशालियाँ उमड़ उमड़ कर बाहर आ रही हैं और भोंम दर भोंम 25 भोमों में खूब खुशालियाँ --मंदिरों के भीतरी और आएँ थम्भो की महेराबों के दरम्यान कठेड़े से लगकर श्रीराज-श्यामा जी और सखियों का दीदार करती हैं --कुछ उनके लिए नृत्य पेश करती हैं तो कोई भोजन आरोगवाने की सेवा कर प्रसन्न होती हैं --कुछ देर चबूतरा पर हांस विलास किया फिर श्रीराज-श्यामा जी उठते हैं बंगलों की चाँदनी पर जाने के लिए --थम्भो में आईं नूरी सीढ़ियों से   पलक झपकते ही 25 भोंम ऊँची चाँदनी पर पहुँचे --

चाँदनी पर चबूतरा की सिर पर चबूतरा आया हैं जिसकी किनार पर थम्भ आएँ हैं जिनकी छत पर गुम्मत की शोभा आईं हैं --कलश ,ध्वजा की अपार शोभा हैं --चबूतरा पर आईं बैठको में अर्शे मिलावा आसीन होता हैं --मनोरम समा --अचरज में डालने वाला --देखा कि चबूतरा के चारों और आए बगीचे भी यहाँ तक आए हैं और 1600 मंदिर के  चौक के चारों किनारों पर जो चहेबच्चा आए हैं उनसे 

 उठते फव्वारे गुम्मत की नोक को छूटे हुए महेराब बनाते हैं

चारों कोनों से आती जल की धारा गुम्मत को छूटी हैं --घेर कर देखा तो 48 की 48 हार बंगलों यूँ ही शोभा ले रहे हैं और ऊपर नज़र की तो एकल छत ---बडो बन और फिलपायों की आईं छत --इन्हीं छत के नीचे बंगलों और चहेबच्चा अपार शोभा ले रहे हैं ---शीतलता ही शीतलता -रूहों को सुखदायी अहसास कराती हुईं - ये मेरे धाम धनी का लाड़ ही तो हैं |

Sunday, 13 March 2016

बंगलों और चहेबच्चा की शोभा में से चहेबच्चा की अलौकिक शोभा और सुख


आज मैं पिया जी की अंगना उनके संग झीलन की आस लेकर बंगला जी के चबूतरा पहुँचती हूँ --ठीक मध्य जहाँ बंगलों और चहेबच्चों की अपार शोभा आईं हैं --एक बंगला एक चहेबच्चा इस क्रम से 48 की 48 हारें बंगलों और चहेबच्चों की आईं हैं --आड़ी खड़ी नहरों के दरम्यान 1600 मंदिर  के लंबे चौड़े  चौक आएँ हैं --उनमें से एक चौक में आती हूँ और देखा कि चौक के ठीक मध्य भाग में 800 मंदिर  का लंबा चौड़ा चबूतरा एक भोंम ऊँचा उठा हैं  --मैं चबूतरा के नज़दीक पहुँचती हूँ --और देखती हूँ कि चबूतरा की चारों दिशा से सीढ़ियाँ उतरी हैं--मैं सीढ़ियाँ  चढ़ रही हूँ --अति सुंदर ,मनोहारी शोभा से युक्त सीढ़ियाँ 

सीढ़ियों की शोभा निरखते निरखते मैं ऊपर की और जाती हूँ --सीढ़ियों पर सुंदर चित्रामन से सुसज्जित पशमी गिलम बिछा हैं --अत्यंत ही नरम मेरे धाम की सोहनी सीढ़ियाँ --मैं सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ --दोनों और सुंदर कठेड़े झलकार कर रहे हैं --मैं भोम भर ऊँचे चबूतरा पर आ पहुँची और सबसे पहले किनार की शोभा देखती हूँ --अनुपम ,अद्भुत शोभा

चारों दिशा से उतरती सीढ़ियाँ और उनकी सुखदायी जोत --और घेर कर आया कठेड़े की स्वर्णिम झलकार --आपस में जब टकराती हैं बहुत ही प्यारी लगती हैं मेरी रूह को

और चबूतरा की चारों दिशा में लगते बगीचा  और चारों कोनों में आएँ बगीचा की शोभा --मैं देख रहीं हूँ मनोहारी बगीचे --नहरों और चहेबच्चों की अपार शोभा उनमें आएँ फल ,फूलों के बेशुमार वृक्ष --फ़िज़ा में सुगंधी ,रस फैलाते --और उनकी भोमे--

चबूतरा की एक भोम में बगीचों में आएँ नूरी वृक्षों की पाँच भोम समाई हुई--ऊपरा ऊपर जाती भोमे ---और पच्चीस भोम ऊपर गयी हैं --मनोरम शोभा --भोम दर भोम आएँ वृक्षों के शीतल ,सुगंधित छज्जे  और छज्जो की किनार पर आए फूलों के नरम नरम कठेड़े--

चबूतरा की किनार से भीतर नूरी रोंस --अत्यधिक विशालाता लिए --घेर कर एक सौ मंदिर की रोंस घूमी हैं --रत्नों और नंगों से जगमगाती रोंस और मध्य में 600 मदिर की लंबाई चौड़ाई लिए ताल की शोभा तो मैं अपलक देखती रह जाती हूँ

उज्ज्वल जल --शीतल ,सुगंधित ,निर्मल जल --मीठा जल --


मैं शोभा देख रही हूँ --ताल की-- जिसे चहेबच्चा के नाम से भी जाना जाता हैं मेरी धाम की सखियों के बीच --चहेबच्चा को घेर कर आईं नूरी जगमगाती रोंस और चबूतरा को घेर कर आएँ बगीचे जिनकी भोमे मानो बंगला के चबूतरा पर आईं बडो वन और फिलपायों की पाँच भोंम ऊँची एकल छत को छूने का प्रयास कर रही हो

इलम से याद आया कि इन्हीं शोभा के माँहे  मुझे श्री राज जी मिलेंगे | कहाँ हो पिया जी आप ? 

एक मधुर आवाज़ मेरे कानों में गूँजी --देख तो सही मैं तो तेरे अंग संग हूँ --नज़र उठी तो अंग प्रत्यंग उल्लास में --सामने मेरे प्राणवल्लभ श्रीराज जी श्री श्यामा जी ताल के तट पर सुंदर कंचन जडित सिंहासन पर विराजे और घेर कर सखियाँ भी विराजमान हैं और मैं तो उनके सामने ही हूँ --ओह मेरे पिया ,मेरे धाम धनी तेरी मेहरों का कोई पार नहीं | पल पल इश्क के जाम के जाम पिलाते हो मेरे धनी धाम --

साकी पिलावें सराब, रूहें प्याले लीजिए ।

हक इसक का आब जो, भर भर प्याले पीजिए ।।

उनका नूर ,उनका स्वरूप कितना तेजोमयी हैं ,तेज में भी उनका इश्क ,लाड़ ,प्रीत जो वो पल पल रूहों पर लुटाते हैं ,उनकी तिरछी चितवन ,उनका मुस्कराना और मीठे लबों से मीठी रूहों से मीठी मीठी रसना से मीठे मीठे वचनों से मीठी मीठी बाते करना --


और श्रीराज जी ने दिखाई शोभा घेर कर आए वन भी मानों इठला उठे ,खिल उठे माशूक श्रीराज-श्यामा जी का दीदार पाकर --और उल्लासित होकर फूलों की बरखा --हर और महकता आलम और ऐसे समा मैं एक रूह की इच्छा कि सामने नूरी जल जल हैं तो क्यों ना श्रीजी के संग जल क्रीड़ा के सुख मिले |

जल क्रीड़ा के अखंड सुख लूँ यह विचार आते ही श्रीराज-श्यामा जी ने रूहों की दिल की इच्छा जान कर झीलन के लिए उठते हैं ...सखियाँ भी संग में --नूरी तनों पर नूरी वस्त्र झीलन के सज़ गये--अंग -अंग में उल्लास कि पिया जी के संग जल क्रीड़ा के अखंड सुख लेंगे - -दूध से भी उज्ज्वल ,मिश्री से भी मीठा जल भी प्रसन्न कि आज मेरे प्राण प्रियतम को जी भर के रिझाऊँगा --और चबूतरा के चारों दिशा और चारों कोनों में बगीचे ,उनमें आएँ चेतन वृक्ष भी पुलकित हो उठे
युगल स्वरूप श्रीराज जी के संग ब्रह्म प्रियाएँ तैयार जल क्रीड़ा के लिए --श्रीराज-श्यामा जी जल में उतरते हैं --साथ में सखियाँ भी --उनके जल में प्रवेश करते ही जल की उमंग देखिए ,जल की उछाले मारती लहरें और वृक्षों ने फूलों की बारिश कर सुगंधी बिखरी |

युगल स्वरूप श्रीराज जी के संग ब्रह्म प्रियाएँ तैयार जल क्रीड़ा के लिए --श्रीराज-श्यामा जी जल में उतरते हैं --साथ में सखियाँ भी --उनके जल में प्रवेश करते ही जल की उमंग देखिए ,जल की उछाले मारती लहरें और वृक्षों ने फूलों की बारिश कर सुगंधी बिखरी |


कुछ सखियाँ चहेबच्चे के किनारे खड़ी खड़ी लीला के सुख लेती हैं | आज भर कर पिया जी का दीदार कर तो लूँ | उनको अपनी पलको में बसा लूँ | जल की उछलती बूंदियो में प्रियतम का दीदार --भीगी भीगी जुल्फे

श्री श्यामा महारानी के लंबे केश ---गौरी लालिमा लिए पीठ पर लहराते हुए --


और कुछ सखियों की मस्ती ---वनों की ऊपरी भोंम में जाकर छज्जों से गहरे जल में कूदना --एक के ऊपर एक --हाँसी बेसुमार --तो एक सखी जल में पाँव लटका कर लीलाओं का रसपान कर रही हैं --एक दूजे के ऊपर जल उछालना तो चारों और बस जल ही जल नज़र आया --मेरे धामधनी का इश्क रूहों को इश्क में सराबोर करता हुआ --

झीलन के अपार सुख ले रूहें श्रीराज-श्यामा जी के संग ताल से निकल कर रोंस पर आते हैं और वनों में आएँ फूलों के मंदिरों में सिनगार सजते हैं | फूलों का सिनगार --फूलों के वस्त्र और फूलों के ही आभूषण --यह तो आज सेवा हैं सखियों  की --चित्त चाहे भूखन सजते हैं पर सेवा सबको प्यारी हैं | हर लाड़ली रूह के भाव कि धाम धनी को रिझाऊं ,उनके लिए रूच रूच कर वस्त्र तैयार कर उनके नूरी अंगों को सजाऊं ,

सिनगार सज कर श्री श्यामा महारानी और सखियों को संग में लेकर श्रीराज जी ताल की रोंस पर पधारते हैं तो देखिए तो कुछ ब्रह्म प्रियाएँ पहले से  हाजिर थाल के थाल भोजन सामग्री लेकर --प्रियतम को नूरी चाकलों पर बैठा कर बड़े ही प्यार से आरोगवाती हैं --श्रीराज जी यह मिठाई लीजिए ,बहुत ही लज़ीज़ हैं --श्रीराज-श्यामा जी बड़े ही भाव से भोजन आरोगते हैं --उन सुखों की क्या कहे जब पिया जी आरोगते आरोगते मुख से मेवा काड़ मेरे मुख में डालते हैं कि यह खाओ मेरी प्रिय --यह बहुत ही स्वादिष्ट हैं |

ये मेरे धाम के अखंड सुख हैं ,श्री राज जी के इश्क के प्याले हैं जो वह खुद प्याले पर प्याले भर रूहों को पिलाते हैं |

Friday, 4 March 2016

पुखराज पहाड़ की हज़ार हांस की चाँदनी







प्रणाम जी
मेहरों के सागर मेरे धाम धनी श्री राज जी की अपार मेहर से मेरी रूह की निज नज़र
पुखराज पहाड़ की हज़ार हांस की चाँदनी पर पहुँची
मेरी रूह खुद को चाँदनी में आएँ बगीचों में महसूस करती हैं ---नज़ारे ऊपर की तो बगीचों की मनोहारी शोभा --कलकल करती निर्मल उज्ज्वल और सुगंधित जल की लहरे और चहेबच्चों की अनोखी शोभा

चहेबच्चों से उठता जल --फूलों से प्रतिबिंबिबत् होकर अजब रंग बिखेर रहा हैं | कोई चहेबच्चा से उठता फव्वारा फूलों की मानिंद शोभा दे रहा हैं तो आसमान को छूटा प्रतीत हो रहा हैं --चारों और निर्मल जल की बूँदीयाँ बिखरती हुई --शीतल अहसास और समा में सुगंधी ,मेरे प्राण प्रियतम का इश्क समाया हुआ
इन रमणीक स्थल पर युगल पिया श्रीराज -श्यामा जी और सखियाँ भी संग में हो तो सुखों का वर्णन किन मुख से हो ?
बगीचों में वृक्षों के बीच बने फूलों से महकते चौक और उनमें सजी सुंदर बादशाही बैठक हमारे बादशाह के लिए --हमारे प्राण वल्लभ श्री राज-श्यामा जी के लिए --
और बड़े ही प्यार से मानो वो बैठक भी मनुहार कर उठी --आइए मेरे धाम धनी --कुछ पल तो मुझे भी धनी कीजिए | अक्षरातीत श्री राज जी अपनी बड़ी रूह श्री श्यामा जी के संग नूरी सिंहासन पर विराजे---सोहनी छबि मेरे युगल पिया जी - चरण कमलों को नूर की चौकी पर धर उनका अदा से बैठना
मैं भी उनके सामने कुर्सी पर बैठी और उन्हें अपला निहार रही हूँ --उनकी मुस्कराहट उनकी चंचल निगाहें और उनके लब और पिऊ जी जब मीठे वचनों से रूह से बाते कर रहे हैं तो उनके उज्ज्वल दन्तावली के दर्शन --और घुघराले केशों को लहराना

चाँदनी पर आएँ बाग बगीचों में सखियाँ रमण करती हैं --फूलों की वादियों में सखियों के संग रमण --छोटी चिटी चिड़ियो की चहचाहत और भंवरों का गुंजन --और नूरी फूलों के आभूषण सज तैयार होना और नूरी कोमल कलियाँ चुन चुन कर श्रीराज-श्यामा जी के लिए अत्यंत ही सुंदर हार पिरोना --देखो ना फूल भी इतरा उठे अपने भाग्य पर --कि मैं पिऊ जी के कंठ में जगह पाऊँगा --

बगीचों में रमण कर अब श्रीराज-श्यामा जी रूहों को दिखाते हैं चाँदनी की किनार पर आई मनोहारी शोभा --

हज़ार हांस की चाँदनी की किनार पर कमर भर ऊँचे चबूतरा पर घेर कर हज़ार हांसों में मोहोलातें आईं हैं इसी कारण यह हज़ार हांस मोहोलातों के नाम से जाने जाते हैं --एक एक हांस की प्यारी शोभा --रंगों की प्यारी जुगत और फूलों से महकती शोभा --चार हवेलियों की चार हारे ,और दो हांस के मध्य गुर्ज की अलौकिक शोभा --

हज़ार हांसों में घेर कर आईं मोहोलाते और उनके मुख्य द्वारो की झलकार ---द्वारों के दोनों और आएँ चौरस चबूतरा जो भोम दर भोम ऊपर गुर्ज माफक जाते हैं | अष्ट महेराबी बैठको की शोभा --

धाम धनी इन बैठकों में सखियों के संग आकर के   बैठे --और भी एक शोभा किनार की दिखाई श्री राज जी --चारों दिशा में चार मुख्यद्वार आएँ हैं --महाबिलंद द्वार --द्वार की एक भोंम पांच भोंम ऊँची

और द्वार के ऊपर भी महल --शोभा चकित करने वाली
बैठको में धनी संग बैठी रूहें --श्रीराज जी की मेहर से देख रही हैं अपने धाम की शोभा


किनार पार आईं शोभा और चारों दिशा में आएँ मुख्यद्वार और भीतर बगीचों की अपार शोभा और ठीक मध्य 1000 भोम ऊँचे आकाशी महल की शोभा --स्वर्णिम शोभा खुशहाल करती रूहों को --द्वारों ,झरोखो और गुर्जों में आईं हज़ार भोंम तक की मनोहारी शोभा और चाँदनी पर आईं गुम्मट ,कलश ,ध्वजाएँ और घुँगरियों की झंकार

अपने श्यामा जी श्याम के आगमन पर उल्लास का समा --खुशियों के बिखरते रंग और बादल भी झूम झूम कर आ  गये --बादलों की गर्जना और रिमझिम बारिश

नूरी रंगों से रंगीन हुई रंगबिरंगी बूँदीयाँ और इनमें से झलकता आकाशी महल --वाह --कितना सुंदर --हर शह भीगी-भीगी--पिऊ के इश्क में भीगी --
बगीचों में पड़ती बूंदे --फूलों ,पत्तियों पर जब बूंदे विराजी तो उनकी अजब शोभा रूह देखती ही रह जाती हैं --और भीगे भीगे समय में सुरज भी प्रकट हो गया उनकी रोशनी से हर चीज़ जगमगा उठी --इंद्रधनुष के रंग से बिखर गये

और ऐसे समय में उत्तर और पश्चिम के बड़े द्वारों की और नज़र गयी तो पिया जी ने दिखाई --घाटियों की शोभा --बड़ी बड़ी सीढ़ियाँ और उनसे आते हाथी ,घौड़े ,गेंडा ,चीता ,शेर
बड़े बड़े जानवर चाँदनी पर आकर तरह तरह के करतब दिखाते हैं --हाथी सुंड में जल भर कर आसमान की और फेकते हैं तो यह दृश्य बड़ा ही सुहाना प्रतीत होता हैं और शेर की दहाड़
चीता की ऊँची छलाँग मानो आकास से उतार कर चीते आएँ हों
और घौड़े अस्वारी के लिए अनुनय करते हैं आओ मुझ पर अस्वार होइए
आओ सखियों ,घौड़ो पर स्वारी करें --और देखे चाँदनी की शोभा ऊँचे आसमान में जाकर
घौड़ो पर स्वार हुई मेरी रूह
हर रूह की चाहत की मेरा घौड़ा श्रीराज-श्यामा जी सवारी के संग संग चले --कोई आगे तो कोई पीछे --श्रीराज जी और एकटक निहारना --शीतल ,सुखदायी समय
और घौड़ो के साथ मानो आसमान में हैं हम
नीचे नज़र करी तो एक नज़र में चाँदनी की शोभा

किनार पर घेर कर आईं मोहोलाते ,चार बड़े द्वारों के भीतर बेशुमार बाग बगीचे और ठीक मध्य भाग में आकाशी महल --आसमान को छूटा हुआ
आकाशी महल की चाँदनी पर उतरते हैं

चाँदनी के मध्य आए तीन सीढ़ी ऊँचे चबूतरे पर मिलावा उतरा और देखी शोभा
आकाशी मोहोल की चाँदनी मानो आसमान में हैं हम बादलों के बीच
मध्य में आए चबूतरा के नीचे जल स्तून खुलता हैं जिसके जल के पूर चबूतरा की चारों दिशा से नहरों की भाँति निकल रहे हैं

चबूतरा को घेर कर बगीचा ,नहरे ,चहेबच्चे और किनार पर दिवाल की शोभा --द्वारों के कमानी द्वार यहाँ तक आएँ हैं
और जानते हैं यह जल स्तून कोनसा  हैं ?अरे --यह वही हैं जो खजाने के ताल से मध्य के पेड़ में आया था वही जल 2000 भोंम ऊपर आ कर प्रगट हुआ हैं हमे इश्क में भिगोने के लिए

Thursday, 3 March 2016

पुखराज पहाड़ के चबूतरा पर रमण

मेरी रूह आज पुखराज पहाड़ पर श्री राज जी के साथ रमण करना चाहती हैं तो मेहरों के सागर आप पिया श्री प्राणनाथ जी मुझे एक पल में पुखराज पहाड़ के हज़ार हांस चबूतरे पर लेकर आते हैं
और अंगूरी के इशारों से दिखाते हैं स्वर्णिम महक से महकते पुखराज पर्वत की अलौकिक शोभा --
श्रीरंगमहल की उत्तर  दिशा में पुखराज पहाड़ का चबूतरा गोलाई में घेर कर परमधाम की ज़मीन से एक भोम ऊंचा सुशोभित हैं --श्री राज जी रूह को दिखाते हैं --घेर कर आएँ हज़ार हांस और प्रत्येक हांस में आईं नई नई शोभा--

हांस हांस पर गुर्जों की अपार शोभा आईं हैं | इन गुर्जों से नूरी सीढ़ियाँ पुखराज के चबूतरा पर चढी हैं | हांस -हांस पर न्यारी शोभा --रूह देख देख खुशहाल होती हैं --
श्रीराज जी के साथ मानो पंख लगा रूह उनके साथ दौड़ दौड़ कर हज़ार हाँसो की शोभा निहारती हैं |प्रत्येक हांस की शोभा पहले से सरस --जिस भी हांस पर पहुँचे लगा कि ये शोभा सबसे उत्तम --
मेरे श्री राज जी भी मुस्करा उठा --ऐसा ही हैं तेरा घर परमधाम --जानती हैं कि परमधाम का जर्रा जर्रा मेरेे  धाम हृदय का प्रकट स्वरूप हैं
किसी हांस में गुलाबी फूलों की अनोखी जुगत --भीनी भीनी सुगंधी से महकती -महकाती हर शह --वहाँ पहुँच कर मेरी रूह भी गुलाबी हो उठी पिऊ के प्यार में --वो रूह का शरमाना
तो कोई हांस नंगों से जडित --रंगों -नंगों की सुखदायी झलकार और उनके तेज की किर्ने आसमान तक जाती हुई --इतनी प्यारी शोभा में जब मेरी रूह के प्रियतम लेकर के आएँ तो मेरी रूह अपलक उन्हें निहारती रही --वो मेरे महबूब की मोहनी सुरत ,उनकी तिरछी चंचल चितवन --भेद गयी रूह के जियरा को

और जब रूह श्वेत जोत फिलाते इन हांस में पहुँची तो वहाँ की उज्ज्वलता में खो गयी | हर शह में उज्ज्वल श्वेत जोत ,उनकी तेजोमयी किरणें और श्वेत अश्व हाजिर  -खूब खुशालियों का जुत्थ भी सेवा में हाजिर --उनका बड़े ही प्यार से मधुर ध्वनि में आग्रह करना --देखो मेरे श्री राज जी ,आपके लिए रूच रूच कर मेवे-मिठाई लेकर के आएँ हैं इन्हें आरोगिए और श्रीराज जी का लाड़ भीतो  महसूस करे --कैसे वो प्यार से भोजन आरोग रहे हैं |

अश्व यानी धाम के नूरी घौड़े ,पिया जी के आशिक वो भला कैसे पीछे रहते | उन्होने भी पिया जी से अरज करी कि हम पर विराजिए ,हम आपको पुखराज की सैर कराएँ

और युगल पिया श्रीराज-श्यामा जी और रूहें नूरी घौड़ो पर अस्वार हुई और घौड़े मदमस्त चाल से ले चले सैर कराने को
किनार पर दौड़ते अश्व --एक रोमांच
चबूतरा के किनारे पर स्वारी --हांस हांस में आएँ गुर्जों की अद्भुत शोभा और चबूतरा को घेर कर आईं दो भोंम की शोभित पुखराजी रोंस और फिर महावन के हज़ार भोमे ,
वन भी झुक कर सिजदा बजाते हुए ,फूलों की बरखा और आसमान से भी रिमझिम बारिश --शीतलता सुगंधी का आलम
और अब  चबूतरा के मध्य की शोभा में रमण करे
चबूतरा के ठीक मध्य भाग में आएँ और देखा एक भोम ऊँचा चौरस चबूतरा

श्रीराज जी का इलम बड़े ही हक से प्यार से रूहों को बता रहा हैं कि यह चबूतरा तरहती में आएँ खजाने के ताल के ठीक ऊपर सुशोभित हैं

घौड़ो से नीचे उतरे ,सबसे पहले मेरे श्रीराज  जी ने अपने चरण चबूतरा पर धरे ,फिर उन्होने हाथ थाम कर अपनी नूरी कोमल बाँहों में ले श्री श्यामा महारानी जी को बड़े ही प्रेम के साथ अश्व से नीचे उतारा | एक एक सखी को पिया जी ने अपनी नरम ,उज्ज्वल ,अति नरम ,गुलाबी हथेलियों में थाम बड़े ही प्रीत के साथ उतारा |

अश्वों से उतरने के सुख -प्रीतम श्रीराज जी के हस्तकमलों का कोमल ,सुखद स्पर्श और उनकी मेहर भरी नज़रों में अपनी छबि का दर्शन और अपनी ही छबि के नयनों में प्रियतम की मनमोहनी छबि --
और आभूषणों की मधुर झंकार --
सुहाना समया
और सामने चौरस चबूतरा और उनसे उतरती सीढ़ियाँ
अब मेरी रूह श्रीराज-श्यामा जी के संग सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं ,सीढ़ियों पर अत्यंत नरम गिलम और दोनों और आए सुंदर कठेड़े-स्वर्णिम झलकार से जगमगाते हुए --
सीढ़ियाँ चढ़कर चबूतरा पर आएँ --और देखा कि चारों दिशा से 44000 हज़ार के लंबे चौड़े इन चबूतरा से चारों दिशा में सीढ़ियाँ उतरी हैं | शेष जगह घेर कर कठेड़े की अलौकिक शोभा आईं हैं

[ कठेड़े को पकड़ कर खड़ी मेरी रूह महसूस करती हैं -- कठेड़े की चेतनता

चेतन  कठेड़ा और जब रूह कठेड़े को पकड़ कर खड़ी होती हैं तो ऐसा लगता हैं मानो कठेड़ा रूह की हथेलियों को सहला खुद ही मुस्करा उठा --और उंसकी मुस्कराहट रूह के लबो पर--रूह भी महसूस करती हैं पिया के इश्क को --नयन झलक उठे उनके प्यार की इस अनोखी अदा पर😍


और कठेड़े के भीतरी और नूरी रोंस --और रोंस के भीतरी तरफ जगमगाते मोहोल
चारों दिशा में 13-13 मोहोलो की अपार शोभा
बेशुमार रंगों से सुसज्जित मोहोल और एक और मनोहारी शोभा --चारों दिशा के ठीक मध्य का महल और चबूतरा के बीचो बीच का महल यह वही पेड़ हैं जो तरहती के खजाने के ताल से प्रगट हुए हैं | यही पाँच पेड़ पुखराज के आधार स्तंभ हैं
नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,मनोहारी मोहोल --आधार स्तम्भ कहे जाने वाले पेड़ पाँच भोम तक सीधा गये हैं और शेष मोहोल दो भोम तीसरी चाँदनी के आएँ हैं |अतन्त ऊँची भोमे --लंबाई ,चौड़ाई और ऊँचाई को कोई पारावार नहीं | नज़रों में बस मोहोलो की शोभा समा गयी | मोहोलो के किवाड़ ,उनके छज्जों की शोभा ---स्वर्णिम बादशाही शोभा से सजे द्वार --और सामने आते ही रूह के द्वार स्वतः ही खुल गये --भीतर की शोभा का क्या वर्णन हो ?

सुखसेज्या ,हिंडोलों ,साजो समान --सब रूह के लिए --मेहरों के सागर आज पिया आज इश्क के प्याले पर प्याले पीला रहे हैं |
नूर ही नूर ,मनोहारी हर दृश्य --रूह को अखंड सुखों की अनुभूति करा रहा हैं | मोहोलों में आईं सीढ़ियों से मोहोल की दो भोंम तीसरी चाँदनी पर रूह आती हैं |
अत्यंत ही प्यारी शोभा --खुली खुली सी शोभा और मोती की पुतलियाँ ने बैठक सज़ा दी | आइए इन धाम की अपनी बैठक पर विराजिए मेरे श्यामा जी श्याम |

धाम की प्यारी बुज़रक बैठक और यहाँ बैठकर एक नज़र में महबूब श्रीराज जी के संग पुखराज पहाड़ के दर्शन
वाह क्या नज़ारा हैं मेरे धाम का --अद्भुत ,अलौकिक ,अनुपम ,मनोहारी --सभी उपमाएँ फीकी ---रूह मेरी अपनी निज नज़र से और श्री राज जी के अपार मेहर से महसूस कर शोभा


हज़ार हांस के पुखराज पहाड़ के चबूतरे पर 44000 हज़ार कोस का भोंम भर ऊँचा चबूतरा और चबूतरा के किनारे आईं मोहोलों की चाँदनी पर खड़ी रूहें श्रीराज-श्यामा जी का संग --

यहाँ से श्रीराज जी ने रूहों को दिखाई शोभा आधार स्तंभ कहे जाने वाले पाँच पेड़ की --चारों दिशा के मध्य के पेड़ और चबूतरा के ठीक बीच में आया पेड़ --यह पाँच भोंम सीधा चले गये हैं --

रूह फेर फेर शोभा देखती हैं इन पेड़ो की --नूर ही नूर -अजब सी शोभा -जितना जितना रूह देख रही हैं शोभा बढ़ती हुई प्रतीत हो रही हैं | ऊपरा-ऊपर पाँच भोंम --भोम दर भोम छज्जा ,झरोखा और जगमगाते किवाड़--रूह को अपनी और खेंचते हुए

 और पाँचवीं भोंम से बढ़ते छज्जा --पाँचो पेड़ो से पाँचवीं भोम से छज्जे बढ़ते हैं आगे आगे दहेलान पीछे पीछे मोहोल आते चले गये हैं --दिशा के पेड़ दिशा की और छज्जा निकालते हैं और दिशा के पेड़ मध्य के पेड़ की और भी छज्जे बढ़ा रहे हैं और रूह ने देखा कि मध्य का पेड़ भी दिशा के पेड़ो की और छज्जा बढ़ा रहा हैं और पूर्व का पेड़ बंगला की और छज्जे बढ़ाता हैं  ,उत्तर और पश्चिम दिशा के पेड़ घाटियों की और छज्जे बढ़ाते रूहों को खुशहाल करते हैं

 आगे आगे दहेलान -अति-सुंदर बैठक धाम की और पीछे पीछे मोहोल बनते जा रहे हैं --पाँचो पेड़ो का बढ़ता विस्तार --250 भोंम तक और 250 भोम में पाँचो पेड़ मेहराब बना कर चबूतरा पर एक छत देते हैं | इन छत तले आठ महेराबे
आठ महेराबों की शोभा रूहें फेर फेर देखती हैं

 और एक प्यारी सी शोभा --250 भोंम में बंगला और दोनों घाटियों की तरफ भी  आने जाने एक रास्ता हुआ हैं --दोनों और से छज्जे बढ़ कर आपस में मिलान कर पुल बनाते हैं --एक पुल --लंबा मनोहारी पुल बंगला की और आया है और दो पुल घाटियों की ओर आएँ हैं और इन पुलों के नीचे की ओर ठीक मध्य में महावन वृक्ष आने से एक एक पुल  की शोभा दो महेराबों के समान प्रतीत हो रही हैं --

छः महेराबे यह हुई और आठ चबूतरा पर कुल 14 महेराबों की अलौकिक शोभा आईं हैं --

250 भोंम में एक और शोभा आईं हैं --पुखराज पहाड़ को घेर कर आईं महावन के वृक्षों की डालियां छतरिमंडल बना कर  पहली हार अपनी मर्यादा उलंघ कर भीतर आती हैं और चौरस छत को गोलाई प्रदान करती हैं --और अब यहाँ से घेर कर गोलाई में छज्जे बढ़ते हैं --भोम दर भोम विस्तार और 1000 भोंम तक संपूर्ण विस्तार --नीचे आएँ हज़ार हांस चबूतरा पर हज़ार हांस चाँदनी आ जाती हैं |


 रूहें फेर फेर इन अलौकिक शोभा को निरखती हैं --श्रीराज श्यामा जी के संग बढ़ते छज्जों में रमण करती हैं --हज़ार भोंम तक आईं दहेलाने और उनमें सजी बैठके --रूहें इनमें बैठ कर धाम धनी के संग हांस विलास करती हैं

श्री राज जी रूह के संग चौरस चबूतरा की किनार पर खड़े हैं और रूहों का खाविंद उनके श्री राज जी उनके लिए पशु पक्षियों को हुकम देते हैं मुज़रा करने के लिए

 श्रीराज जी के दिल में आते ही बड़े बड़े पशु पक्षियों के झुंड के झुंड उपस्थित --उत्तर पश्चिम की लंबी घाटी के चबूतरा से आते हुए तो कुछ बंगला से आते --गिरती जल की धाराओं में से प्रगट होते --और हज़ार हांस पुखराज के चबूतरा पर आकर तरह तरह के करतब कर रिझाते हुए --बड़ी बड़ी छः महेराबो में बनी शोभा के नीचे --

और श्वेत हंसों का जुत्थ पास में आकर के कहे चलो --बढ़ते छज्जों से बनी उल्टी सीढ़ी के मफाक आए विस्तार की शोभा नज़दीक से देखाऊँ --उन के पंखों पर अस्वार होकर कभी 650 भोंम में आईं छज्जों की बैठक के सुख लिए तो कभी 999 भोंम ऊँची दहेलान में आईं  बैठक पर बैठ सखियों को आवाज़ लगाई आ जाओ ना --यहाँ से नज़ारा देखों

 फेर फेर शोभा दिखाई श्रीराज जी ने --हज़ार हांस चबूतरा --हज़ार रंगों में झिलमिलाता हुआ

मध्य चौरस चबूतरा पर पाँच पेड़ो का प्रकट होना --उनका पाँच भोंम तक सीधे जाकर छज्जा बढ़ाना--भोम दर भोम बढ़ता विस्तार फिर एक रूप हो गोलाई में घेर कर छज्जा बढ़ना

एक एक पेड़ बेशुमार शोभा लिए -नूर से लबरेज --फेर कर देखा तो मानो यह पाँच पेड़ श्री राज जी के नूर ,इश्क ,इलम ,जोश और मेहर के प्रतीक हैं  | पल पल रूहों के लिए बढ़ती मेहर ,जोश ,इश्क ,इलम उन्हें श्रीराज जी की वाहिदत में ले जाता हैं