पच्चीस पक्ष ,संपूर्ण सिंगार सज श्री राज जी महाराज हमारे धाम धनी हमारे आत्मा के प्राण वल्लभ हमारे धाम हृदय में ही विराजमान हैं --हम देख नहीं पा रहे क्योंकि माया का परदा पड़ा हैं तो बस दिल से उन्हें याद करे ,अपने धनी को अपने प्रीतम को तो देखिए कैसे एक पल में हम श्यामा -श्याम के संग परमधाम की गलियों में रमण करता खुद को पाएँगे ---आज हमारे धाम दूल्हा हमे लेकर के जा रहे हैं कि आज मैं अपनी अर्शे अरवाहों को बांग्ला की ज़रा सैर तो करा दूं
पुखराज पहाड़ की पूर्व दिशा में एक लाख कोस का लंबा चौड़ा चबूतरा मनोहारी शोभा को धारण किए हैं --चबूतरा की हर दिशा में 250-250 हांस हैं जिनके प्यारी सी शोभा हैं --हर हांस में नये ही रंग की झिलमिलाहात ---और दो हँसो के मध्य अत्यंत ही सुंदर बादशाही द्वारो
सें कोट गुणी शोभा लिए द्वार जिनसे तरहती में सीढ़ियाँ उतरती हैं
हम रूहें श्री राज -श्यामा जी के संग तरहती में जाने का विचार मन में लेते हैं तो सामने आया द्वार स्वतः ही खुल गया --सुगंधी का झोंके और ठीक सामने उतरती अद्भुत शोभा को लिए सीढ़ियाँ --सीढ़ियाँ उतर रहे हैं --सीढ़ियों पर आईं गिलम अत्यंत कोमल हैं कि पाँव घुटनों तक मानो धँस रहे हैं --एक दूजी को गलबहियाँ कर (एक दूजे के हाथों में हाथ उनके गले में हाथ ) सीढ़ियाँ उतर रहे हैं --नैन से नैन मिला और दोनों और आएँ कठेड़े और उनमें आएँ सजीव चित्रामन --पेड़ फूल बरसाने लगे श्यामा जी श्याम के अभिनंदन में --फूल अपनी सुगंधी खूबसूरती और भी बढ़ा देते हैं और पशु पक्षी चाहचहा उठते हैं और पुतलियाँ का लुभावना नृत्य और संगीत की मधुर धुन --अखंड सुखों में झीलते हुए सीढ़ियाँ उतर कर सीढ़ी वाले रोंस पर श्रीराज- श्यामा जी के संग हम सब सखियाँ आ पहुँची
और देखते हैं कि नूरी सीढ़ी वाले रोंस की शोभा --हंस -हांस से उतरती सीढ़ियाँ--तेज के अंबार और अब नज़रों में आईं कि प्रत्येक हांस से तीन तीन सीढ़ियाँ बगीचा की रोंस पर उतरी हैं --बड़ी नाज़ुकता से कदम बढ़ते हुए बगीचा की रोंस पर आए --आती सुंदर रोंस --हरियाली बिखेरती --खुशियों के दीप जलाती और फूलों के सिंहास्ं कुर्सियाँ सज गयीं अर्शे मिलावे के लिए
युगल जोड़ी सिंहासन पर विराजमान हुई और हम सब सखियाँ भी विराजी --सामने 38 हारे बगीचों की --मनोहारी शोभा ..फूलों की अनोखी जुगत --आड़ी-खड़ी नहरों की शोभा और निर्मल जाम के उछलते फव्वारे --
कुछ सखियाँ बगीचों में जाकर नरम -नरम फूल चुन युगल पिया जी के लिए हार पिरोती हैं ,श्रवनों में फूलों के कुंडल और श्री श्यामा जी की माँग में गुलाबी गुलाब का बेन्दा --रूच रूच कर कर सखियाँ युगल जोड़ी को सिंगार सजाती हैं
तो कुछ सखियाँ 38 हार बगीचों को पार कर तीन सीढ़ी चढ़कर मोहोलातों की रोंस पर आती हैं और आगे 39 हार मोहोलातों की शोभा में रमण करती हैं --मोहोलों में जाकर झूलों में झूलना --नूरी सेज्या पर बैठना और पिऊ के अखंड सुखों की बात करना तो पिया जी भी सम्मुख आ विराजे --जहाँ उनकी बात हो धनी तो वही हैं
अब चले मोहोलों को पार कर भीतर की और --पुनः मोहोलातों की रोंस --
और यहाँ कुछ पाल रुकें और देखे ...तीन सीढ़ी नीचे ताल की पाल और उससे भी तीन सीढ़ी नीचे ताल रोंस और आगे विशाल कुंड लहराता हुआ --सुगंधित धाम का नूरी जल और पूर्व पश्चिम से आती नहेरें --देखिए तो हम मस्ती से भर कुंड में छलाँग लगा रहे हैं --मस्ती में जल क्रीड़ा --जल उछालना ..शीतल जल के सुख ले मोहोलातों में सिंगार सज़ा जो मेरे पिऊ के दिल को भावे
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