Wednesday, 12 July 2017

bat pipal ki chouki ke sukh

प्रणाम जी

सावन का मौसम ,रिमझिम बरसता पानी ,शीतलता का अहसास
रूह ने महसूस किया खुद को बट पीपल की चौकी में  ---विशाल चौकी धाम की ,अति सुन्दर शोभा --बट पीपल के वृक्षों की सुन्दर जुक्ति ---जहाँ वृक्षों की डालियों में मिलान किया वहां नूरी फूलों का हिंडोला --
हिंडोलों में श्री राज जी के संग रूह झूल रही हैं ,उनकी नज़रों अपने लिए बेशुमार प्यार देख रूह निहाल हो रही हैं ,उल्लास में धाम धनी संग झूलों में झूलना और झूलों के नीचे चेहेबच्चों से छूटते हव्वारे --उज्जवल जल की नेहेरें बहती हुई 
धनि संग झूलों में ऊंची उड़ान भरना ,पिया से मीठी मीठी बाते करते उनके कन्धों पर सर टिका होले होले झूले में झूलना --
सखियों का आवाज लगाकर बुलाना तो धाम सखियों के संग हिंडोलों में झूलने  के सुख मेरी रूह महसूस कर रही हैं ,कभी खड़े खड़े हिंडोलों में झूल रही हूँ तो कभी लेट कर शयन मुद्रा में झूलने के सुख ले रही हूँ --इन समय पशु पक्षी उमड़ उमड़ कर रहे हैं --

बदलियां भी घिर आयीं तो मोरों ने नृत्य प्रारम्भ कर दिया ,उनकी कुहू कुहू की मीठी आवाज और आँखे मटका कर पंख फैला कर नृत्य पेश करना रूह को प्रिय लग रहा हैं

झूलते समय युगल स्वरूप हक़ श्री राज जी श्री श्यामा जी के नूरी स्वरूप रूह निरख रही हैं ,उज्जवल रेती और वृक्षों के नूर से रोशन हर शह और नूरी स्वरूपों का तेज
बारिश की नूरी बुँदियाँ और उठते फव्वारों से भीगा भीगा समा -

हिंडोलों के आनंद ले रूह अब चलती हैं धाम धनि श्री राज जी श्री श्यामा जी और सखियों को संग --बट पीपल की चौकी के एक सुन्दर चौक की और --

गुलाबी  आभा से झिलमिलाता चौक इतना नूर मानो पुकार रहा हो इधर भी आइये मेरे श्री राज जी

गुलाब के मीठी महक के बीच चौक में गए ,नूरी बैठके हाजिर ,आप श्री राज जी श्री श्यामा जी उन अति सुन्दर नूरी सिंघासन पर विराजते हैं --इन समय की उल्लास को रूह महसूस करती हैं ,मेरी रूह श्री राज जी के नूरी मुख की और अपलक देख रही हैं ,उनकी वो चंचल अदाएं ,उनका वो मुस्कराना और जब पिया मुझसे पुकारते हैं तो उनके लब --फूल की पंखुड़ी से भी कोमल मेरे धनि के अधूर
वन भी पिया की चंचल मुस्कान देख कर मुस्करा उठे ,नूरी फूलों की बरखा के बीच चौक की नूरी रेती पर मैं थिरक उठी --
धाम दूल्हा संग बट पीपल की चौकी में चबूतरों को घेर कर आयीं रेती में नृत्य करना ,क़दमों की थाप से रेती को उड़ाना ,नूरी रेती ने भी समां रंगीन बना दिया --सुगन्धि ही सुगन्धि पसरी हुई और मद्धम मद्धम संगीत की थाप पर अर्श के नूरी स्वरूप झूम उठे
चौक की रेती में तो कभी चबूतरा पर मस्ती कर अब झीलन की इच्छा हुई --मेरे धनि ,अब जल क्रीड़ा के सुख दो --
चबूतरा की चारों दिशा में आयीं नूरी नहरों में चले जल क्रीड़ा के लिए --नहरों का जल भी उछाल उछल कर ख़ुशी व्यक्त कर रहा हैं ,नूरी उज्जवल जल में रूहे झिलना कर रही हैं ,अर्श का नूरी जल कोमलता से रूह को स्पर्श कर रहा हैं -जल को मुट्ठी में कर एक दूजे पर उछाल रूहें मस्ती में हैं
जल में मस्ती और जल जीवों का अचरज भरी निगाहो से देखना --झिलना कर तनों में आएं फूलों के छोटे छोटे मोहोलों में सिंगार सज रहे हैं ,वन में रहने वाले वन्य पशु फूलों के आभूषण पेश करते हैं उन्हें पहन कर हमारा इठलाना और धनि के लबों की मुस्कराहट --
जल में मस्ती और जल जीवों का अचरज भरी निगाहो से देखना --झिलना कर तनों में आएं फूलों के छोटे छोटे मोहोलों में सिंगार सज रहे हैं ,वन में रहने वाले वन्य पशु फूलों के आभूषण पेश करते हैं उन्हें पहन कर हमारा इठलाना और धनि के लबों की मुस्कराहट --
और फिर धनि ले चले बट पीपल की चांदनी पर --फूलों की गिलम की तरह सुशोभित चांदनी और चहबच्चे से उठते रंगीन बूंदों उछालते फुहारें --

धनी ने कहा अभी वन में निरत किया चलों अब चले निरत की हवेली में --नृत्य के रस में डूब जाएं

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