मैं रंगमहल की उत्तर दिशा में स्वर्णिम आभा से झिलमिलाते पुखराज पहाड़ की शोभा में विहार कर रही हूँ ..मैं देखती हूँ क़ि हज़ार हांस के भोम भर ऊँचे चबूतरे की शोभा --हर हांस में न्यारी शोभा ,नये नये रंगों की झिलमिलाती ज्योति और हांस हांस पर अति सुंदर शोभा से युक्त गुर्ज --और मैं देखती हूँ कि इन गुर्जों से सीढ़ियाँ चबूतरे पर ले कर आती हैं प्यारी रूहों ---और दो गुर्जो के मध्य अत्यन्त ही मनोहारी शोभा लिए द्वार जिनसे पुखराज पहाड़ की तरहती में सीढ़ियाँ उतरी हैं
हांस हांस में जुदि जुदि युक्ति से सजे बादशाही शोभा से कोट गुणी शोभा लिए द्वार --
मैं द्वार के अंदर जा रही हूँ और सामने उतरती सीढ़ियाँ बहुत ही प्यारी लग रही हैं
मैं सीढ़ियाँ उतर रही हूँ ,अत्यंत कोमल गिलम सीढ़ियों पर आईं हैं और सीढ़ियों के दोनों और कठेड़े की शोभा मुझे खुशहाल कर रही हैं --
शोभा निरखते हुए मैं धीरे धीरे गुनगुनाती हुई उतर रही हूँ ---नज़रें घुमाई तो देखी एक प्यारी सी शोभा -
घेर कर आएँ हांसों से उतरती सीढ़ियाँ अलग अलग रंगों की जोत बिखेरते हुए अति मनोहारी लग रही हैं मेरी रूह को
सीढ़ियो से उतर कर मैं एक प्यारी सी जगमगाती रोंस पर आईं यह सीढ़ियों की रोंस हैं और अब मैं देखती हूँ कि इन रोंस से हांस हांस में तीन तीन सीढ़ियाँ बगीचा की रोंस पर उतरी हैं तो मैं भी नाज़ुकता से कदम बढ़ा कर बगीचे की रोंस पर आती हूँ
अत्यंत ही मनोरम यह रोंस ---सुंदर फूलों की शाही बैठक सज़ उठी
मैं एक कुर्सी पर बैठती हूँ कि खुद को सखियों के बीच पाया --मेरी अखंड निसबती सखियाँ
और अब हम सब मिलकर देखते हैं --पुखराज पहाड़ की तरहती की अलौकिक शोभा
दो भोम की ऊँची यह तरहती बहुत ही सुंदर शोभा को धारण किय हैं --
नज़ारे घुमा कर देख तो शोभा मेरी सखी
हांस हांस से तरहती में उतरती सीढ़ियों के साथ आती धाम की नूरी ज्योति मानो इश्क ,प्रेम ,प्रीति ,लाड़ सब न्यामते तरहती में लेकर उतर रही हैं रूह के वास्ते
और नज़ारे भीतर कि तो बगीचा की रोंस के आगे 52 हारे बगीचों की ,नूर ही नूर ,सुगंधी की ल़हेरें और शीतल ,सुगंधित जल की नहेरें और नूर बरसाते फव्वारे --और चहेबच्चों की ठीक मध्य फीलपाए मानों फूलों के थम्भ दो भोम ऊपर जाकर तरहती की छत से जा मिले हैं ---बगीचों में आईं नहरे और उनकी पाल की शोभा तो देख मेरी सखी ---यह पाल बगीचा की रोंस से एकरूप मिलान किए हैं मेरी
तो आ मेरी सखी ,नरम ,अत्यंत ही कोमल पाल से दौड़ते हुए 52 हार बगीचों की पार करे ,सुगंधी महसूस करते हुए ,धाम के नूर में भीगते हुए 52 हार बगीचों की पार की और अरे ! फिर से बगीचे की रोंस और नज़र ऊपर की तो ठीक सामने
बगीचे की रोंस के आगे कमर भर ऊँची मोहोलातों की रोंस आईं हैं | रोंस के आगे 53 हार मोहोलो की शोभित हैं |मोहोलों के मध्य त्रिपोलियों की अपार शोभा आईं हैं | 53 हार मोहोल जब रूह पार करती हैं खुद को पुनः मोहोलातों की रोंस पर पाती हैं –
और रूह ने देखा कि मोहोलातों की रोंस के आगे तीन सीढ़ी नीचे घेर कर 400 कोस की ताल की पाल की रोंस आईं हैं | ताल की पाल की रोंस से तीन सीढ़ी नीचे 250 कोस में ताल रोंस शोभा ले रही हैं |और आगे खजाने के ताल की अद्भुत शोभा रूह निरख निरख बलिहारी जाती हैं |
मेरी सखी अपनी निज नज़र से शोभा को निरख --- ताल रोंस के भीतर की ओर 44000 हज़ार कोस में खजाने का ताल सुशोभित हैं | खजाने के ताल में अथाह जलराशि हैं | उज्जवल ,निर्मल ,सुगंधित जल राशि और रूह देख --- एक और शोभा -चारों दिशा में नहरें आईं हैं |400 कोस मे नहरें आईं हैं और 250 कोस मे जल रोंस और 400 कोस मे पाल आई हैं | खजाने के तालाब से चारों दिशा से यह चार नहेरें निकली हैं |इन नहरों का जल चारों और विचरण करता हैं || इन नहरों के कारण बगीचे और मोहोलाते कुछ कम हो गये हैं |
खजाने के ताल में पाँच पैड़ आएँ हैं | चार पैड़ तो चारों दिशाओं में आएँ हैं ओए एक पैड़ मध्य ताल में शोभित हैं |यह पैड़ मोहोल माफिक आएँ हैं |400 कोस में मोहोल आएँ हैं जिन्हे घेर कर 250 कोस की रोंस आईं हैं तो 900 कोस में पैड़ की शोभा कही जाती हैं |इनकी सभी शोभा मोहोलातों के समान ही आईं हैं | मध्य के पैड़ की शोभा कुछ जुदा हैं | 900 कोस में आएँ इन पैड़ में 250 कोस की रोंस आईं हैं जिसकी बाहिरी तरफ कठेड़ा हैं और भीतर की ओर मंदिरों की हार घेर कर आईं हैं |इन मंदिरों की भीतरी दीवार में द्वार नहीं आएँ हैं क्योंकि भीतर जल स्तून आया हैं जो आकाशी मोहोल की चाँदनी पर जाकर खुलता हैं | इन मोहोलातों और पैड़ की ऊँचाई दो भोम की आईं हैं |तरहती की भी दो ही भोम आईं हैं | एक भोम परमधाम की ज़मीन के भीतर हैं और एक ऊपर -
मेरी रूह इन अलौकिक ,मनिहारी शोभा को फेर फेर निरख ,यही तेरे असल सुख हैं